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बाइडेन के US President बनने से भारत संग रिश्तों पर नहीं होगा असर

विदेश मंत्रालय में बैठे अधिकारियों और विदेश नीति बनाने वाले विशेषज्ञों के बीच अमेरिका के अगले राष्ट्रपति को लेकर बहुत ज़्यादा चिंता या उत्साह नहीं है.

Updated on: 08 Nov 2020, 07:08 AM

नई दिल्ली:

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2020 (American Presidential Elections 2020) को लेकर एक बड़ा सवाल लगभग प्रत्येक भारतीय के मन में कौंध रहा था कि कई मसलों पर भारतीय रुख के विरोध में टिप्पणी कर चुके जो बाइडेन (Joe Biden) अगर अमेरिका के अगले राष्ट्रपति बनते हैं, तो उनके भारत से संबंध कैसे होंगे. खासकर वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के बीच दोस्ती को देखते हुए. ऐसे में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और जो बाइडेन का 46वां राष्ट्रपति बनना तय है. हालांकि विदेश मंत्रालय में बैठे अधिकारियों और विदेश नीति बनाने वाले विशेषज्ञों के बीच अमेरिका के अगले राष्ट्रपति को लेकर बहुत ज़्यादा चिंता या उत्साह नहीं है.

अमेरिका की केंद्रीय विदेश नीति में रहेगा चीन
विशेषज्ञों खासकर विदेश नीति के जानकारों का मानना है कि अमेरिका में सत्ता बदलने से भारतीय उपमहाद्वीप क्षेत्र में हालात नहीं बदलेंगे. इसे देखते हुए अमेरिका अपनी प्राथमिकताएं भी नहीं बदलेगा. हालांकि यह ज़रूर है कि डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडन की विदेशी नीतियों को अमली जामा पहनाने के तरीक़े अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन उद्देश्य एक ही होगा. इस समय अमेरिका की सबसे बड़ी चिंता चीन है. ऐसा डेमोक्रैटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी के लगभग सभी नेता मानते हैं. इसलिए ट्रंप हों या बाइडन उनकी प्राथमिकता होगी चीन के बढ़ते वैश्विक असर को कम करना और इसके साथ जारी 'टैरिफ़ युद्ध' से जूझना ही रहेगा.

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अमेरिका फर्स्ट केंद्रित होगी विदेश नीति
पूर्व राजनयिक और मुंबई-स्थित थिंक टैंक 'गेटवे हाउस' की नीलम देव कहती हैं कि अमेरिका की तरह भारत और दूसरे देश भी विदेशी नीतियां देश के हित में तय करते हैं. वह मानती हैं कि अगर भारत सरकार को लगा कि चीन से क़रीब होना देशहित में है, तो अमेरिका का राष्ट्रपति कोई भी जीत कर आए, इससे भारत को अधिक फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. वैसे भी डेमोक्रैटिक पार्टी और जो बाइडन के बारे में जानकारों का कहना है कि वे अहम अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर आम सहमति हासिल करने पर विश्वास रखते हैं, जबकि डोनाल्ड ट्रंप पर आरोप है कि वे एकतरफ़ा फ़ैसले लेते रहे हैं.

क्लिंटन के दौर से भारत-अमेरिका संबंधों में प्रगाढ़ता
भारत की विदेश नीति शीत युद्ध से लेकर सोवियत संघ के अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़े के दौरान गुट निरपेक्षता पर आधारित रही है. हालांकि 1996 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 2000 में भारत की एक ऐतिहासिक यात्रा की. इस दौरान राष्ट्रपति ने भारत को अमेरिका की ओर लुभाने की भरपूर कोशिश की. उनका संबंध डेमोक्रेटिक पार्टी से है. किसी अमेरिकी राष्ट्रपति की वह भारत की सबसे लंबी यात्रा (छह दिन की) थी. इसे भारत-अमेरिका संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा गया था. पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश की भारत यात्रा के दौरान परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर ने रिश्ते में रणनीतिक गहराई जोड़ दी. वह रिपब्लिकन पार्टी से चुने गए राष्ट्रपति थे. इसी तरह से डेमोक्रेटिक पार्टी के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दोनों पक्षों के बीच बढ़ती निकटता को दर्शाते हुए भारत की दो यात्राएं कीं.

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चीन को लेकर बाइडेन की सोच 
बाइडेन ने अपने चुनाव प्रसार के दौरान भारतीय-अमेरिकियों से संपर्क किया है. वह भारत के लिए उदार सोच रखते हैं. चूंकि अमेरिका और भारत के रिश्‍ते अब संस्‍थागत हो चले हैं, ऐसे में उसमें बदलाव कर पाना मुश्किल होगा. टीम बाइडेन में चीन को लेकर मतभेद हैं. इसका असर भारत-अमेरिका और भारत-चीन के रिश्‍तों पर भी देखने को मिलेगा. बाइडेन के कुछ सलाहकारों ने चीन को लेकर ट्रंप जैसी राय रखी है. बाकी कहते हैं कि अमेरिकी और चीनी अर्थव्‍यवस्‍थाओं को अलग करना नामुमकिन है. ऐसे में राष्‍ट्रीय सुरक्षा और क्रिटिकल टेक्‍नोलॉजी के क्षेत्र में अलगाव हो सकता है, इससे ज्‍यादा कुछ नहीं।

व्यापारिक रिश्ते कैसे?
बाइडेन के चुनाव अभियान में भारतीय-प्रशांत क्षेत्र को लेकर रणनीति साफ नहीं की गई है. चूंकि यह इलाका भारतीय विदेश नीति के केंद्र में है, इसलिए इसपर नजर रखनी ही पड़ेगी. भारत और अमेरिका के व्‍यापारिक रिश्‍तों में परेशानी रहेगी, चाहे सत्‍ता में कोई भी हो. ओबामा प्रशासन के दौरान भी नई दिल्‍ली और वॉशिंगटन में इस क्षेत्र को लेकर तनातनी रहती थी. बाइडेन प्रशासन में भी भारत को व्‍यापार में कोई खास छूट मिलने के आसार नहीं हैं. इसके अलावा बाइडेन का 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' का अपना वर्शन भी है.

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एच-1बी वीजा का क्या?
बाइडेन प्रशासन भारत में मानवाधिकार उल्‍लंघन पर नजर रख सकता है. इसके अलावा हिंदू बहुसंख्‍यकवाद, जम्‍मू और कश्‍मीर का भी संज्ञान लिया जा सकता है. डेमोक्रेट्स से भरी कांग्रेस में भारत के खिलाफ ऐसी चीजों पर पैनी नजर रह सकती है. एच-1बी वीजा के पुराने रूप में लौटने की संभावना न के बराबर है. हालांकि इससे भारतीयों पर असर पड़ सकता है लेकिन महामारी ने जिस तरह से रिमोट वर्किंग को बढ़ावा दिया है, उससे वह असर कम होने की उम्‍मीद है.