ममता बनर्जी जीत कर भी 'हारती' दिख रहीं पश्चिम बंगाल में, जानें क्यों
सूबे की सत्ता में लगातार तीसरी बार वापसी से टीएमसी खेमे में भले ही खुशी हो लेकिन ममता बनर्जी के लिए यह कम तनाव वाली बात नहीं है.
highlights
- ममता बनर्जी की बंगाल में जीत भी भविष्य के लिए सुखद संकेत नहीं
- विकास से जुड़े कामों से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े मसले चुनौती
- बीजेपी एक मजबूत विपक्ष के रूप में लगातार पेश करेगी अड़चनें
नई दिल्ली:
दोपहर एक बजे के बाद पश्चिम बंगाल (West Bengal) की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने अपने लिए राहत की सांस ली होगी. यह पहली बार था कि नंदीग्राम (Nandigram) में वह भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी और कभी खास रहे सिपाहसालार शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) से मतों की गिनती में आगे निकलीं. हालांकि इसके पहले रूझानों ने टीएमसी (TMC) को बहुमत से कहीं ज्यादा सीटें मिलने के संकेत दे दिए थे. इस लिहाज से देखें तो सूबे की सत्ता में लगातार तीसरी बार वापसी से टीएमसी खेमे में भले ही खुशी हो लेकिन ममता बनर्जी के लिए यह कम तनाव वाली बात नहीं है. वजह यही है कि उन्हें अच्छे से मालूम है कि इस प्रचंड जीत के बावजूद भारतीय जनता पार्टी (BJP) आने वाले समय में इसका रंग फीका कर सकती है.
बीजेपी विकास पर लगातार रहेगी घेरती
अगर जमीनी हकीकत की बात करें तो पश्चिम बंगाल में रोजगार, सड़क और अस्पतालों की स्थिति बहुत बुरी है. इसको लेकर लोगों में भी नाराजगी है. परिणामस्वरूप 2016 में महज तीन सीटों पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी 2021 में बंगाल में बहुत मजबूत होती नजर आ रही है. फिलहाल बीजेपी 90 सीटों के आसपास है. ऐसे में इन मुद्दों पर ममता बनर्जी को कड़ा प्रतिरोध झेलना होगा. बीजेपी इस मसलों के बल पर डबल इंजन की सरकार समेत विकास का मुद्धा उठाती रहेगी.
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नंदीग्राम की कमजोर जीत छोटा कर देगी कद
भले ही फिलहाल दो राउंड्स से नंदीग्राम विधानसभा सीट पर ममता बनर्जी अपने प्रतिद्वंद्वी शुभेंदु अधिकारी से आगे चल रही हों, लेकिन खुदा ना खास्ता यदि वह हार जाती हैं तो ममता बनर्जी का टीएमसी में अन्य नेताओं के बीच कद बहुत घट जाएगा. ऐसे में मुख्यमंत्री पद को लेकर भी टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है. ऐसी स्थिति अगर आती है तो बीजेपी यहां भी कर्नाटक दोहराना चाहेगी और टीएमसी को टूट का सामना करना पड़ सकता है.
केंद्रीय योजनाएं लगातार बनेंगी चुनौतियां
ममता बनर्जी भलीभांति जानती हैं कि इस जीत के बावजूद बीजेपी का बढ़ता कद बंगाल में उनके लिए कड़ी चुनौती का सबक होगा. बंगाल का हेल्थ सिस्टम कोरोना महामारी को देखते हुए बहुत कमजोर है. ऐसे में टीएमसी की सरकार बनने पर भी विपक्ष की ओर से ममता के सामने ढेरों सवाल होंगे. खासकर जब पीएम नरेंद्र मोदी औऱ गृह मंत्री अमित शाह लगातार आयुष्मान योजना को लेकर उन्हें कठघरे में खड़ा करते आए हों.
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बीजेपी का 90 के करीब आना यानी मतदाता हैं नाराज
बीजेपी का बीते विधानसभा चुनाव की तीन सीटों से नब्बे के आसपास पहुंचाना इशस बात को संकेत है कि ममता बनर्जी के प्रति लोगों में नाराजगी बढ़ी है. ऐसे में आगे चलकर यह नाराजगी कहीं भारी नहीं पड़ जाए यानी उसे दूर करना भी दीदी के लिए एक बड़ी औऱ दुरूह चुनौती होगा. नब्बे सीट पर बीजेपी का मतलब है कि अब ममता बनर्जी को एक मजबूत विपक्ष से दो-चार होना पड़ेगा. कांग्रेस और लेफ्ट के समक्ष यह चुनौती उनके सामने इतनी बड़ी नहीं थी.
परिवारवाद का भूत तो खैर है ही पीछे
टीएमसी में अभिषेक बनर्जी के बढ़ते दखल का आरोप लगाते हुए कई नेताओं ने ममता बनर्जी से बगावत कर दी थी. बीजेपी के मजबूत होने की स्थिति में इसी आरोप के साथ कई ओर टीएमसी नेता नेतृत्व में अविश्वास को लेकर 'भगवा पार्टी' के साथ शामिल हो सकते हैं. इसे इस तरह भी देख सकते हैं कि परिवारवाद का आरोप भी उनका साथ छोड़ने वाला नहीं है.
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