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आखिर क्यों मुर्मू को छोड़ना पड़ा J&K, कहीं मोदी की नीतियों को विस्तार ना देने की सजा तो नहीं?

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल रहे गिरीश चंद्र मुर्मू ने बुधवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. जब राज्य में अनुच्छेद 370 हटे एक साल पूरा हुआ, ठीक उसी दिन दिए जीसी मुर्मू के इस्तीफे से हर कोई चौंक गया.

Updated on: 07 Aug 2020, 02:57 PM

नई दिल्ली:

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल रहे गिरीश चंद्र मुर्मू ने बुधवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. जब राज्य में अनुच्छेद 370 हटे एक साल पूरा हुआ, ठीक उसी दिन दिए जीसी मुर्मू के इस्तीफे से हर कोई चौंक गया. गुजरात कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी ने पिछले साल 29 अक्टूबर को इस केंद्र शासित प्रदेश के प्रथम एलजी के रूप में कार्यभार संभाला था. लेकिन 1985 बैच के आईएएस अधिकारी के जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल के पद से इस्तीफे के कारणों पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.

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मगर इस इस्तीफे के पीछे की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी. क्योंकि मुर्मू कई मोर्चों पर केंद्र सरकार के फैसलों में अड़चन पैदा कर रहे थे. जम्मू कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया को लेकर जीसी मुर्मू और चुनाव आयोग के बीच विवाद चल रहा था, जिसे लेकर केंद्र में खासी नाराजगी सामने आई थी. इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि मुर्मू के हटने और मनोज सिन्हा को जम्मू कश्मीर का राज्यपाल बनाए जाने के बाद ही राज्य के डिप्टी सीएम रहे कविंद्र गुप्ता ने एक बयान दिया और कहा कि जम्मू कश्मीर में जल्द ही राजनीतिक प्रक्रिया शुरू हो जाएगी.

कवींद्र गुप्ता के अनुसार, उप राज्यपाल के रूप में मनोज सिन्हा की नियुक्ति इसी के मद्देनजर की गई है. उनके मुताबिक मनोज सिन्हा एक राजनीतिक व्यक्ति है और दो बार केंद्र में मंत्री रह चुके हैं. ऐसे में वह जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया को शुरू करने में अहम भूमिका निभाने में सक्षम है. उन्होंने कहा कि धारा 370 हटने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन किन्ही कारणों से लगाया गया था. जिसके बाद प्रदेश में कई बड़े काम हुए. लेकिन इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि प्रशासनिक अधिकारियों का संपर्क जनता से कम होता है. ऐसे में राजनीतिक प्रक्रिया शुरू होने ही जनता के हित में है.

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दरअसल, सरकार ने मार्च 2020 में एक कमीशन बनाया था, जिसका काम परिसीमन का नया रास्ता तलाशना था. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज आरपी देसाई इस कमीशन की अगुवाई कर रहे थे. कमीशन को जम्मू-कश्मीर, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड राज्य में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र की नई सीमाएं तय करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. नियम के अनुसार, लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र के लिए कमीशन की राय मानी जाएगी, लेकिन चुनाव कब होंगे इसका फैसला चुनाव आयोग तय करेगा.

बतौर उपराज्यपाल जीसी मुर्मू ने जम्मू-कश्मीर में चुनाव को लेकर कई बयान दिए. उन्होंने कई बार इस बात को भी दोहराया कि राज्य में चुनाव परिसीमन के बाद ही होंगे. इसके बाद मुर्मू और चुनाव आयोग के बीच तनातनी होने लगी. जवाब में चुनाव आयोग ने कहा था चुनाव कब कराया जाना है, इसका फैसला सिर्फ चुनाव आयोग ही कर सकता है, ऐसे में इस तरह के बयानों को नहीं दिया जाना चाहिए.

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अगर अंदर खाने की बात करें तो आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया को लेकर दो चीजें होने की संभावना है. पहली जम्मू-कश्मीर में उप राज्यपाल के नेतृत्व में एडवाइजरी काउंसिल का गठन किया जा सकता है, जिसमें सभी दलों के नेताओं को लिया जा सकता है. दूसरा, डिलिमिटेशन के बाद जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने के बाद यहां चुनाव कराए जा सकते हैं.

इसके अलावा जम्मू कश्मीर के कई मसलों पर उपराज्यपाल रहे गिरीश चंद्र मुर्मू और राज्य के मुख्य सचिव के बीच भी जीसी मुर्मू और चीफ सेक्रेटरी के बीच भी तनाव देखने को मिला था. इतना ही नहीं है, राज्य में लगातार हो रही बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या से भी केंद्र सरकार नाराज बताई जा रही है. अगर जम्मू कश्मीर में बीजेपी नेताओं की हत्या की बात करें तो पिछले पिछले 48 घंटे में ही बीजेपी से जुड़े दो सरपंचों की हत्या कर दी गई है.

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इस बात पर भी गौर करना जरूरी है कि मुर्मू ही जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित राज्य बनने के बाद वहां के पहले उप राज्यपाल बनाए गए थे. ऐसे में मुर्मू के रवैए से कहीं ना कहीं केंद्र को परेशानी खड़ी हो रही थी. आखिर इन्हीं सब बातों से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि केंद्र सरकार की नजरों में गिरीश चंद्र मुरमू खटक चुके थे और इसी का नतीजा है कि उन्हें जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल के पद से खुद इस्तीफा देना पड़ा.