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राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में 17 सांसदों 126 विधायकों ने की क्रॉस वोटिंग

देश की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को हर राज्य से वोट मिला, जबकि विपक्ष के प्रत्याशी और 'अंतरात्मा की आवाज' पर वोट देने की अपील करने वाले यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) को आंध्र प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम से एक भी वोट नहीं मिला.

Updated on: 22 Jul 2022, 11:07 AM

highlights

  • यशवंत सिन्हा को आंध्र प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम से एक भी वोट नहीं मिला
  • मुर्मू ने केरल जैसे राज्य से भी एक वोट भी हासिल किया, जहां बीजेपी है ही नहीं
  • उपराष्ट्रपति चुनाव की तस्वीर अभी से साफ, जगदीप धनखड़ की जीत है तय

नई दिल्ली:

पहली आदिवासी और भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) की शानदार जीत से यह बिल्कुल साफ हो गया है कि 'कथित' संयुक्त विपक्ष ने उनके पक्ष में जमकर क्रॉस वोटिंग की. आलम यह रहा कि केरल में एनडीए का एक भी वोट नहीं था, लेकिन वहां के भी एक विधायक ने द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान किया. आंकड़ों को देखें तो साफ हो जाता है कि देश की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को हर राज्य से वोट मिला, जबकि विपक्ष के प्रत्याशी और 'अंतरात्मा की आवाज' पर वोट देने की अपील करने वाले यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) को आंध्र प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम से एक भी वोट नहीं मिला. बीजेपी (BJP) के दावे और आंकड़ों के विश्लेषण से साफ है कि संसद के दोनों सदनों के 17 सांसदों और राज्यों के 126 विधायकों ने अपनी-अपनी पार्टी लाइनों की अवहेलना कर एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान किया.

क्रॉस वोटिंग का राज्यवार ब्योरा
गौरतलब है कि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने कुल 4701 वैध मतों में से 2824 मत हासिल किए, जबकि संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा को सिर्फ 1877 वोटों से ही संतोष करना पड़ा. मुर्मू को कुल वैध मतों का 64.03 प्रतिशत वोट मिला. हालांकि द्रौपदी मुर्मू को मिले वोट 2017 में निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से कम है. उस वक्त रामनाथ कोविंद को कुल वैध मतों में से 65.65 प्रतिशत वोट मिले थे. जाहिर है कि केंद्र की एनडीए या बीजेपी के खिलाफ कई क्षेत्रीय दलों ने अपनी अलग राजनीतिक विचारधारा से परे जाकर राष्ट्रपति भवन में द्रौपदी मुर्मू को भेजने का मन बना लिया था. गुजरात के 10, असम के 22, उत्तर प्रदेश के 12, बिहार और छत्तीसगढ़ के 6-6 और गोवा के 4 विधायकों ने मुर्मू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की.

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तेलंगाना की वोटिंग पैटर्न बीजेपी के लिए संकेत
राष्ट्रपति चुनाव के लिए रिटर्निंग ऑफिसर ने जो आंकड़े जारी किए उस आधार पर कह सकते हैं कि गुजरात के 10, असम के 22, उत्तर प्रदेश के 12, बिहार और छत्तीसगढ़ के 6-6 और गोवा के 4 विधायकों ने द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया. द्रौपदी मुर्मू को आंध्र प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम में पूरे सदन का समर्थन मिला, क्योंकि यशवंत सिन्हा ने इन राज्यों से एक भी वोट नहीं मिला. मुर्मू ने केरल जैसे राज्य से भी एक वोट भी हासिल किया, जबकि वहां भाजपा विधानसभा या लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत सकी. विधानसभा चुनाव के लिए अभी से तेलंगाना में ताकत झोंक देने वाली बीजेपी के लिए इसे अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि यहां से एनडीए उम्मीदवार को केवल 3 वोट मिले, जबकि संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा को 113 वोट मिले. 

काम आया इस बार भी पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष की रणनीति शुरू से ही कमजोर रही. बीजेपी ने दौर्पदी मुर्मू को एनडीए प्रत्याशी घोषित कर मास्टर शॉट खेल दिया था. इस वजह से कई विपक्षी दल धर्म संकट में फंस गए कि वो अब क्या करें. रही सही कसर चुनाव से कुछ दिन पहले शिवसेना के ऐलान से पूरी हो गई जब उद्धव ठाकरे की ओर से कहा गया कि उनका दल द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करेगा. हालांकि एकनाथ शिंदे गुट पहले ही इसकी घोषणा कर चुका था. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी द्रौपदी मुर्मू का विरोध नहीं कर पाए, क्योंकि उन्हें अपने राज्य के आदिवासी समुदाय को भी साधे रखना है. क्रॉस वोटिंग करने वाले ज्यादातर सांसदों और विधायकों का यही पसोपेश द्रौपदी मुर्मू की जीत में काम आया.

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उपराष्ट्रपति चुनाव की भी तस्वीर है साफ
जाहिर है राष्ट्रपति पद के लिए हुए मतदान में क्रॉस वोटिंग ने उपराष्ट्रपति चुनाव को भी और रोचक बना दिया है. राष्ट्रपति चुनाव नतीजे के दिन ही ममता बनर्जी की पार्टी की ओर से ऐलान किया गया कि टीएमसी इस चुनाव से दूर रहेगी. गौरतलब है कि 6 अगस्त को उपराष्ट्रपति का चुनाव है और विपक्ष की ओर से मार्गरेट अल्वा को उम्मीदवार बनाया गया है. उनके सामने एनडीए की ओर से जगदीप धनखड़ हैं. एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने बीते रविवार को ही मार्गरेट अल्वा के नाम का ऐलान यह कहते हुए किया था कि 17 विपक्षी दलों की उनके नाम पर मंजूरी है. यहां भी खेल तय लग रहा है क्योंकि ममता बनर्जी यहां भी दूर-दूर ही हैं. गौरतलब है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में विधायकों को वोट नहीं देना होता है. इससे पहले ही एनडीए की जीत लगभग तय है और उससे पहले विपक्षी दलों में फूट से मार्गरेट अल्वा टक्कर देने में और कमजोर पड़ रही हैं.