काश... 2001 में तालिबान चला जाता बॉन कांफ्रेंस में, तो बच जाती 1.5 लाख जानें

यदि तालिबान (Taliban) और हिज्ब-ए-इस्लामी ने 2001 में जर्मनी की बॉन कांफ्रेंस में भाग ले लिया होता, तो अफगानिस्तान (Afghanistan) एक बार फिर युद्ध का मैदान बनने से बच जाता.

यदि तालिबान (Taliban) और हिज्ब-ए-इस्लामी ने 2001 में जर्मनी की बॉन कांफ्रेंस में भाग ले लिया होता, तो अफगानिस्तान (Afghanistan) एक बार फिर युद्ध का मैदान बनने से बच जाता.

author-image
Nihar Saxena
एडिट
New Update
Bonn

2001 में जर्मनी के बॉन में हुई अफगानिस्तान में भावी सरकार पर चर्चा.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

यदि तालिबान (Taliban) और हिज्ब-ए-इस्लामी ने 2001 में जर्मनी की बॉन कांफ्रेंस में भाग ले लिया होता, तो अफगानिस्तान (Afghanistan) एक बार फिर युद्ध का मैदान बनने से बच जाता. अफगानिस्तान के राजनीतिज्ञों की माने तो अमेरिकी सेना द्वारा तालिबान राज के खात्मे के बाद नवंबर के आखिरी में बॉन कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था, जिसमें अफगानिस्तान में भावी सरकार के मसले पर चर्चा हुई थी. इस कांफ्रेंस में अफगानिस्तान की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों ने शिरकत की थी, सिवाय तालिबान और हिज्ब-ए-इस्लामी को छोड़कर. गौरतलब है कि अमेरिका (America) पर 9/11 आतंकी हमलों (Terror Attack) के बाद अमेरिका औऱ नाटो सेना ने अफगानिस्तान में आतंक के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था. दो दशकों तक चले इस युद्ध में विदेशी सैनिकों, अफगान बलों और तालिबान के लड़ाकों समेत नागरिकों को लाखों की तादाद में अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.

Advertisment

अब तालिबान फिर दोहरा रहा बॉन जैसी गलती
बॉन कांफ्रेंस के दो दशक बाद कुछ राजनीतिज्ञों का मानना है कि तालिबान और हिज्ब-ए-इस्लामी की अनुपस्थिति ने ही अफगानिस्तान को अस्थिरता की ओर ढकेला. अफगानिस्तान के नेशनल सॉलिडेरिटी मूवमेंट के प्रमुख सैयद इश्कार गैलानी कहते हैं, 'उस समय हमने जलमै खलीलजाद से दो-टूक कहा था कि कांफ्रेंस में तालिबान और हिज्ब-ए-इस्लामी को भी भाग लेने का न्योता दिया जाए. इसके जवाब में खलीलजाद ने कहा था कि दोनों नहीं आ रहे हैं.' इस बीच अन्य विश्लेषकों का मानना है कि अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में दो दशकों बाद तालिबान ने फिर अंतरिम सरकार की घोषणा कर दी है. वह बेलौस अंदाज में कहते हैं कि अब तालिबान फिर वही गलती दोहरा रहा है. उसने भी राजनीतिक पार्टियों और जातीय गुटों से नई सरकार को लेकर कोई चर्चा नहीं की है. उन्होंने तालिबान से अंतरिम सरकार में हरेक जातीय समूह और राजनीतिक दलों को प्रतिनिधित्व देने की मांग की है. 

यह भी पढ़ेंः  9/11 आतंकी हमले के पीछे सऊदी... FBI के सीक्रेट दस्तावेज दे रहे संकेत

समावेशी सरकार ही दूर कर सकेगी अफगानिस्तान की अस्थिरता 
स्वतंत्र पत्रकार अब्दुल हई सहर के मुताबिक, 'तालिबान ने दो दशक पहले बॉन कांफ्रेंस में हिस्सा नहीं लिया था. अब 2021 में भी वह एक ऐसा मंत्रिमंडल बना चुके हैं, जो तमाम अफगानियों समेत राजनीतिक दलों और वैश्विक बिरादरी को मंजूर नहीं है.' सिर्फ अफगानिस्तान के राजनीतिक दल ही नहीं, बल्कि आम अफगानी भी तालिबान से उम्मीद कर रहे हैं कि वह एक समावेशी सरकार का गठन करेगा. वक्त से मिले सबक को समझते हुए तालिबान बॉन कांफ्रेंस की असफलता को फिलवक्त अफगानिस्तान पर हावी नहीं होने देगा. अफगानियों का मानना है कि बॉन कांफ्रेंस के बाद बनी सरकार ने अफगानिस्तान के लिए काम नहीं किया, बल्कि अपने निहित स्वार्थों के लिए काम किया. ऐसे में एक समावेशी सरकार के गठन से ही अफगानिस्तान की अनिश्चितता और हिंसक संघर्ष को खत्म किया जा सकता है. 

युद्ध ने बर्बाद कर दिया अफगानिस्तान को
गौरतलब है कि भले ही 2001 में तालिबान राज को समाप्त कर दिया गया, लेकिन हिंसक संघर्ष खत्म नहीं हुआ था. तालिबान प्रमुख विपक्षी गुट बन कर उभरा था और बॉन कांफ्रेंस के बाद गठित अफगानिस्तान की नई सरकार के खिलाफ काम कर रहा था. यही वजह है कि बीते दो दशकों से युद्ध लगातार जारी रहा. अमेरिकी सेना ने इस दौरान शादियों, अंतिम क्रिया-कर्म, बैठकों, गांवों और अन्य स्थानों पर ढेरों बम गिराए. इस युद्ध में तालिबान लड़ाकों, अफगान सुरक्षा बलों के जवानों समेत सरकारी कर्मचारियों और निर्दोष नागरिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. यही नहीं, अमेरिकी और नाटो सेना को भी इस दौरान जान-माल का खासा नुकसान उठाना पड़ा. इस युद्ध ने न सिर्फ हजारों की जान ली, बल्कि अफगानिस्तान की आधारभूत संरचना को बर्बाद कर आर्थिक तौर पर भारी चोट पहुंचाई है. 

यह भी पढ़ेंः दो मुंहा है पाकिस्तान... तालिबान की तरफदारी कर दुनिया से कर रहा ये अपील

अफगानिस्तान में दो दशकों के युद्ध के हताहत

    • एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका नीत सैनिकों, अफगान सुरक्षा बलों, तालिबान के लड़ाकों समेत नागरिकों को इस युद्ध में जान से हाथ धोना पड़ा. दो दशकों में सभी गुटों के 1.5 लाख से ऊपर लोग मारे गए.
    • लगभग 2,500 अमेरिकी सैनिकों समेत नाटो के 1,150 सैनिक बीते 20 सालों में मारे गए हैं. इसी अवधि में 3,846 अमेरिकी ठेकेदारों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.
    • अफगानिस्तान में दो दशकों से जारी युद्ध में लगभग 66 हजार अफगान बलों के जवान, 51,191 तालिबान लड़ाकों और 48 हजार के आसपास नागरिकों की भी जानें गई हैं. 
    • इनके अलावा 444 बचाव दल के सदस्य और 72 पत्रकारों को भी युद्ध की इस अग्नि में स्वाहा होना पड़ा. स्वतंत्र तौर पर पत्रकारिता कर रहे सूत्रों के मुताबिक इस दौरान 16 विदेशियों समेत 100 पत्रकारों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. 

HIGHLIGHTS

  • अफगानिस्तान की स्थिरता के लिए सभी समूहों की हो सरकार में भागीदारी
  • अब फिर समावेशी सरकार का गठन नहीं कर भारी गलती कर रहा तालिबान
  • यही बड़ी गलती की थी तालिबान ने बॉन कांफ्रेंस से 2001 में दूरी बनाकर
अफगानिस्तान आतंकी हमला taliban afghanistan Bonn Conference तालिबान terror attack America बॉन कांफ्रेंस अमेरिका
      
Advertisment