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सर्वे में खुलासा, दलितों से 6 वर्ष ज्यादा जीते हैं सवर्ण, मुसलमानों पर( Photo Credit : File Photo)
क्या जातीय स्वाभिमान का असर व्यक्ति की उम्र पर भी पड़ता है. क्या दलित और शूद्र जाति के मुकाबले सवर्णों की उम्र ज्यादा जीते हैं. आज के इस आधुनिक युग में भले ही इस तरह की बातों को दकियानूसी करार दे दिया जाए, लेकिन यह सच है. दरअसल, नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के दूसरे और चौथे चरण के आंकड़ों का विश्लेषण इसी ओर इशारा कर रहे हैं. पॉपुलेशन एंड डेवलपमेंट रिव्यू जर्नल में छपी एक अध्ययन के अनुसार भारत में सवर्ण जाति के लोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लोगों के मुकाबले औसत 4 से 6 साल ज्यादा जीते हैं. इसी प्रकार अध्ययन में पाया गया कि सवर्ण जातियों और मुसलमानों के बीच औसत उम्र का अंतर ढाई वर्ष तक का है. यानी सवर्णों के मुकाबले मुसलमान भी 2.5 साल कम ही जीते हैं. इस अध्ययन में सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि ये अंतर किसी एक इलाके, वक्त या आय के स्तर तक सीमित नहीं है और इन वर्गों के स्त्री-पुरुष दोनों में नजर आता है.
सर्वे में जातिवार जीवन प्रत्याशा के ये आंकड़े आए सामने
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक इस अध्ययन के दौरान 1997-2000 और 2013-16 के बीच किए गए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों की जब तुलना की गई तो कई चौंकाने वाले तथ्य उभरकर सामने आए. इस अध्ययन के मुताबिक, 1997-2000 के दौरान पुरुषों के मामले में जीवन प्रत्याशा अपर कास्ट में 62.9 साल थी, जबकि अनुसूचित जाति (एससी) में 58.3 और अनुसूचित जनजाति (एसटी) में 54.5 वर्ष थी. वहीं, दलितों के मुकाबले मुस्लिमों और ओबीसी की हालत बेहतर है. हालांकि, सवर्णों के मुकाबले मुस्लिमों और ओबीसी की जीवन प्रत्याशा कम है. मुस्लिम पुरुषों में जीवन प्रत्याशा 62.6 और ओबीसी में 60.2 वर्ष सामने आई है. वहीं, 2013-16 के सर्वे के अनुसार
सवर्ण पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 69.4 वर्ष, मुस्लिमों पुरुषों की 66.8, ओबीसी की 66, एससी की 63.3 और एसटी का 62.4 वर्ष थी. वहीं, अगर बात महिलाओं की करें तो 1997-2000 के सर्वे के मुताबिक महिलाओं की औसत उम्र 64.3 वर्ष, मुस्लिम महिलाओं की औसत उम्र 62.2, ओबीसी महिलाओं की औसत उम्र 60.7, अनुसूचित जाति (एससी) 58 और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की महिलाओं की औसत उम्र 57 साल थी. वहीं, 2013-16 के सर्वे के मुताबिक सवर्ण जाति की महिलाओं की औसत उम्र 72.2 वर्ष, मुस्लिम महिलाओं की औसत उम्र 69.4, ओबीसी महिलाओं की औसत उम्र 69.4, अनुसूचित जाति (एससी) 67.8 और एसटी 68 साल रही.
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साल दर साल अंतर में हुआ इजाफा
अध्ययन में इन आंकड़ों के विश्लेषण से निष्कर्ष निकाला गया है कि सवर्ण जातियों और अनुसूचित जातियों के लोगों में जीवन प्रत्याशा (Life expectancy) का अंतर 1997-2000 के सर्वे के आंकड़े के हिसाब से 4.6 साल था. वह 2013-16 में बढ़कर 6.1 साल तक पहुंच गया है. वहीं, सवर्णों पुरुषों और मुस्लिम पुरुषों की बात करें तो अंतर और भी गहरा होता दिखाई देता है. सवर्ण और मुस्लिमों में अंतर पहले यह अंतर 0.3 वर्ष का था, जो 2013-16 में बढ़कर 2.6 वर्ष हो गया. इसके साथ ही सवर्ण और मुस्लिम वर्ग की महिलाओं के बीच इस दौरान जीवन प्रत्याशा का अंतर 2.1 से बढ़कर 2.8 साल हो गई है. हालांकि, निचली जातियों और सवर्ण जातियों की महिलाओं के बीच जीवन प्रत्याशा में मामूली गिरावट ,सामने आई, लेकिन अनुसूचित जाति, मुस्लिम और अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के पुरुषों में सवर्णों की तुलना में आयु बहुत कम हो गई है. गौरतलब है कि सवर्णों के मुकाबले अनुसूचित जनजाति (एससी) के पुरुषों में तो ये अंतर 8.4 साल तक पहुंच गई, जबकि इन वर्गों की महिलाओं में 7 साल का अंतर देखा गया है. इन आंकड़ों के आधार पर एक दूसरे अध्ययन में पाया गया कि औसत उम्र का ये अंतर चाहे जन्म के समय से मापा जाए या फिर जीवन के बाकी वर्षों से, इस परिणाम बदलता नहीं है. मतलब निचली जातियों में नवजातों की ज्यादा मृत्यु दर और आर्थिक स्थिति में अंतर का भी औसत उम्र के इस फैसले पर फर्क नहीं पड़ता.
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बीमारू राज्यों में जीवन प्रत्याशा कम
इस सर्वे में जो खास बात निकलकर सामने आई है, वह यह कि बीमारू राज्यों के नाम से मशहूर यूपी, बिहार, राजस्थान, उत्तराखंड, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे हिंदी भाषी लोगों में जीवन प्रत्याशा बाकी जगहों के मुकाबले सबसे कम है. देश में पूर्वोत्तर राज्यों ने एक अलग ही कहानी लिखी है. दरअसल, इस सर्वे के मुताबिक यह इकलौता ऐसा क्षेत्र है, जहां पर अनुसूचित जातियों (एससी) की औसत उम्र सवर्ण जातियों से भी ज्यादा है.
HIGHLIGHTS
- अनुसूचित जनजाति की उम्र होती है सबसे कम
- देश में सबसे ज्यादा जीते हैं सवर्ण जाति के लोग
- मुसलमानों की हालत भी है सवर्णों से खराब