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जिनपिंग के अति राष्ट्रवाद ने ड्रैगन का अपनी ही समस्याओं से मोड़ दिया मुंह

चीनी कॉलेजों में पढ़ रहे विद्यार्थी शिद्दत से मानकर चलते हैं, 'दुनिया में सिर्फ चीन ही निर्दोष है, जबकि शेष सारे देश खासकर पश्चिमी देश दुष्ट हैं और चीन से शुरुआते से नफरत करने के लिए बाध्य हैं.'

Updated on: 11 Aug 2022, 04:17 PM

highlights

  • नैंसी पेलोसी की ताईपे यात्रा से शी जिनपिंग के समक्ष चुनौतियां बढ़ीं
  • जिनपिंग के अति राष्ट्रवाद से आवाम में पनप रहा है बड़ा अहंकार
  • इस फेर में ड्रैगन ने वास्तविक समस्याओं से मोड़ रखा है मुंह

बीजिंग:

खुद को संकट से घिरा देख शुतुरमुर्ग अपना सिर रेत में घुसा लेता है वाली कहावत फिलवक्त ड्रैगन पर बिल्कुल सटीक बैठ रही है. चीन का अति राष्ट्रवाद इसमें भी खासकर शी जिनपिंग (Xi Jinping) का बार-बार देशवासियों से दोहराया जा रहा दावा कि बीजिंग (Beijing) पश्चिमी की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है, वास्तव में अपनी समस्याओं की ओर से आंख मूंद लेने जैसा ही है. अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी (Nancy Pelosi) की ताईपे यात्रा के बाद चीन के बड़े सैन्य अभ्यास से ताइवान स्ट्रेट में तनाव बढ़ता जा रहा है. इसके साथ ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के समक्ष बड़ी चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं. नैंसी पेलोसी के ताइपे दौरे के बाद शी जिनपिंग का ताइवान (Taiwan) के प्रति रवैया अति राष्ट्रवादी (Extreme Nationalism) भावनाओं के अनुरूप नहीं रहा है. दूसरे अमेरिका (America) के साथ कूटनीतिक संबंध भी कमजोर और संवेदनशील हो गए हैं. इसकी बीजिंग को भारी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ेगी, यह भी तय माना जा रहा है. 

राजनीतिक रूप से जिनपिंग के लिए संवेदनशील समय
भले ही अमेरिका से नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा का आक्रामक ढंग से विरोध जता बीजिंग की ओर से भयंकर परिणाम भुगतने की घुड़की दी गई हो, लेकिन कूटनीतिक जानकार समझ रहे हैं कि शी जिनपिंग अभी तक नैंसी की ताइपे यात्रा पर सही और प्रभावी प्रतिक्रिया का रास्ता नहीं खोज सके हैं. नैंसी की ताईपे यात्रा ने चीन को भड़का दिया है. राजनीतिक रूप से शी जिनपिंग के लिए यह बेहद संवेदनशील समय है, क्योंकि 20वीं पार्टी कांग्रेस का समय तेजी से नजदीक आ रहा है. न्यूयॉर्क टाइम्स की स्तंभकार ली युआन तर्क देते हुए कहती हैं कि शी जिनपिंग चीनी आवाम को आत्मविश्वास से भर रहे हैं. वह युवा पीढ़ी को समझा रहे हैं कि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था दुनिया के साथ आंख में आंख डालकर बात कर सकती है. शी जिनपिंग लगातार कहते आ रहे हैं कि चीन दुनिया के बड़े विकसित देशों के साथ बराबरी के पायदान पर खड़ा हुआ है. 'पूर्व का उदय हो रहा है और पश्चिम का पतन हो रहा है' जैसी घोषणा के साथ चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग चीनी आवाम से अपनी संस्कृति, शासन का तंत्र और भविष्य की महाशक्ति  पर गर्व करने को कह लगातार आत्मविश्वास से लबरेज कर रहे हैं. 

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अति आत्मविश्वास बीजिंग के लिए बड़ी कमजोरी न बन जाए 
हालांकि न्यूयॉर्क टाइम्स की स्तंभकार ली युआन तार्किक ढंग से कहती हैं कि चीन के राष्ट्रीय स्वाभिमान से जुड़ी सारे बातें सही हो सकती हैं, लेकिन अति राष्ट्रवाद अहंकार भी पैदा कर रहा है. शी जिनपिंग के पूरी दृढ़ता के साथ किए गए दावे चीनियों में अति राष्ट्रवाद को भी उभार रहे हैं, जो चीनी श्रेष्ठता का दंभ भरकर नैंसी पेलोसी के ताइपे दौरे के बाद ताइवान के खिलाफ सैन्य संघर्ष की मांग कर रहे हैं. ली कहती हैं अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के संदर्भ में अगर इसे देखें तो अति आत्मविश्वास की यह प्रवृत्ति बीजिंग के लिए बड़ी कमजोरी साबित हो सकती है. ड्रैगन ने अति आत्मविश्वास के फेर में अपने समक्ष विद्यमान चुनौतियों के प्रति आंखें बंद कर रखी हैं. यह स्थिति अमेरिका के लिए किसी वरदान सरीखी साबित हो सकती है. बशर्ते वॉशिंगटन सधे कदमों से बीजिंग को घेरने की कोशिश करे. 

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अति श्रेष्ठता के भाव से ग्रसित चीनी युवा
ऐसा भी नहीं है कि शी जिनपिंग को लोगों ने इसको लेकर आगाह नहीं किया. जनवरी में बीजिंग कांफ्रेंस के दौरान शिंगहुआ यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर यैन जुटोंग ने बेलौस अंदाज में कहा था कि चीन के कॉलेजों में पढ़ रहे विद्यार्थियों को अभी दुनिया के बारे में और जानने की जरूरत है. वे अभी भी दुनिया को दो ही नजरिये से देख रहे हैं. चीनी कॉलेजों में पढ़ रहे विद्यार्थी शिद्दत से मानकर चलते हैं, 'दुनिया में सिर्फ चीन ही निर्दोष है, जबकि शेष सारे देश खासकर पश्चिमी देश दुष्ट हैं और चीन से शुरुआते से  नफरत करने के लिए बाध्य हैं.' न्यूयॉर्क टाइम्स की इस रिपोर्ट के मुताबिक चीनी विद्यार्थियों में श्रेष्ठता की प्रबल भावना विद्यमान है. वे खुद को अंतरराष्ट्रीय संबंधों का जानकार मानते हैं और इस फेर में दूसरे देशों को कृपालू नजरिये से देखते हैं. प्रोफेसर यान कहते हैं कि चीनी विद्यार्थियों के अंतरराष्ट्रीय मामलों में वास्तविकता से परे आशा पर टिके नजरिये से उन्हें लगता है कि चीन अपनी विदेश नीति से सभी उद्देश्य हासिल कर लेगा. यही वजह है कि वह ऑनलाइन उपलब्ध कांस्पिरेसी थ्योरी और अन्य निराधार राय पर आंख बंद कर यकीन कर रहे हैं, जो एक दिन पतन का कारण बन सकता है.