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World Order Changing Now! फिर चीन को बढ़ाएगा फ्रांस? US को आंख दिखाने के मायने क्या?

इमैनुएल मैक्रों चीन के दौरे पर थे. उन्होंने शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद कहा कि यूरोप को अमेरिका का पिछलग्गू नहीं बनना चाहिए. यहां याद दिलाने वाली बात ये भी है कि कुछ समय पहले ही ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका ने ऑकस समझौता...

Updated on: 10 Apr 2023, 05:38 PM

highlights

  • फ्रांस फिर से बदलने वाला है वर्ल्ड ऑर्डर
  • चीन को बढ़ावा देना साबित होगी बड़ी भूल?
  • ताईवान को झटका दे रहा या रूस के चक्कर में बर्बाद होगा यूरोप?

नई दिल्ली:

World Order Changing Now : फ्रांस में 5th Republic व्यवस्था सत्ता में है. ये व्यवस्था 4th Republic के डूबने के बाद शुरू की गई थी, जो कॉलोनियल व्यवस्था के खत्म होने के बाद उभरी थी. फ्रांस की 5th Republic के शुरुआती नायक थे चार्ल्स डे गॉल ( Charles de Gaulle ). उन्हें फ्रांस की व्यवस्था को कई बार तारने वाला राजनीतिज्ञ माना जाता है. कभी फ्रांस के लिए लड़ाई लड़कर सालों युद्ध बंदी रहे, तो कभी बिखरे फ्रांस को एकजुट करके सत्ता दूसरी ताकतों को सौंप दी और फिर से जब 1960 के दशक में फ्रांस अल्जीरिया क्राइसिस की वजह से परेशानी में पड़ा, तो उन्होंने फिर से आगे आकर फ्रांस को न सिर्फ उबारा, बल्कि अब तक चल रही फ्रांस की पांचवीं रिपब्लिक व्यवस्था की स्थापना साल 1958 में की. इतना सबकुछ बताने की वजह ये है कि उसी फ्रांस की पांचवीं रिपब्लिक व्यवस्था में अभी के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने चीन का दौरा किया है. उन्होंने बयान दिया है कि अब यूरोप को अमेरिका का पिछलग्गू नहीं बनना चाहिए, बल्कि अपने बारे में खुद को सोचना चाहिए. देखा जाए तो ये बयान कूटनीतिक बयानों की फेहरिस्त में शामिल एक बयान भर है, लेकिन ये बयान 1964 के दौर की याद दिला रहा है, जिसकी वजह से वैश्विक व्यवस्था में बेहद अहम बदलाव आया था. 

चार्ल्स डे गॉल ( Charles de Gaulle ) के एक कदम ने बदली थी दुनिया की तकदीर

आज हम जिस दौर में जी रहे हैं, उसमें चीन बड़ी ताकत है. लेकिन साल 1964 तक चीन अलग-थलग पड़ा था. वो सैन्य ताकत तो था, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उसकी कोई अहमियत नहीं थी. तब तक च्यांग काई शेक की अगुवाई में रिपब्लिक ऑफ चाइना ( आज का ताईवान ) ही चीन का असली प्रतिनिधित्व करता था. लेकिन चार्ल्स डे गॉल ने तब अमेरिका को झटका देते हुए चीन के साथ संबंधों को जोड़ने की पहल की थी. ये वो समय था, जब शीतयुद्ध अपने चरम पर था. पश्चिमी शक्तियों को कम्युनिष्ट व्यवस्था से चुनौतियां दुनिया के हर कोने में मिल रही थी. फ्रांस भी इंडो-चाइना से लेकर अल्जीरिया तक तबाही में उलझा हुआ था. सोवियत लाबी हावी हो रही थी. लेकिन सोवियत लाबी को चुनौती दे रहा था माओवादी चीन. माओ जेडांग की अगुवाई में रूस के साथ उसकी तनातनी थी. झगड़े थे और विचारधारा को लेकर अलगाव भी था. ऐसे में फ्रांस के तत्कालीन मुखिया चार्ल्स डे गॉल ने कहा कि सोवियत रूस को चुनौती देने वाली ताकतों को अब एकजुट होना चाहिए. इसमें उसे पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ( कम्युनिष्ट चीन ) को भी शामिल करना चाहिए. उन्होंने कहा कि फ्रांस और यूरोप को अब अमेरिका का पिछलग्गू नहीं बनना चाहिए. ध्यान दीजिए, कुछ ऐसा ही बयान अब इमैनुएल मैक्रों ने दिया है. 

ताईवान ने तोड़े थे फ्रांस से संबंध और बदल गया था वर्ल्ड ऑर्डर...

उस समय असली चीन होने का भ्रम पाले ताईवान कम्युनिष्टों के खिलाफ जंग भी लड़ रहा था. दुनिया से संबंध भी बनाए हुए था. लेकिन हकीकत में वो पिछड़ रहा था अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ के बावजूद. फ्रांस के मुखिया चार्ल्स डे गॉल के बयान के बाद ताईवान ने फ्रांस के साथ अपने राजनयिक संबंधों को खत्म कर दिया, और यहीं से कम्युनिष्ट चीन को आगे बढ़ने का मौका मिल गया. फिर क्या पश्चिमी देश, क्या अमेरिका. सभी ने चीन के साथ संबंध बना डाले. 1990 के आते-आते सोवियत संघ बिखर गया. लेकिन अब उसे चुनौती मिलने लगी चीन से. 

अब क्या बदलाव होंगे?

इमैनुएल मैक्रों चीन के दौरे पर थे. उन्होंने शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद कहा कि यूरोप को अमेरिका का पिछलग्गू नहीं बनना चाहिए. यहां याद दिलाने वाली बात ये भी है कि कुछ समय पहले ही ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका ने ऑकस समझौता किया है. जिसके तहत परमाणु पनडुब्बियां ऑस्ट्रेलिया को मिलनी हैं. ऑस्ट्रेलिया ने पहले 6 पनडुब्बियों का समझौता फ्रांस के साथ किया था, जिसने उसे रद्द कर दिया. इसके बाद से ही फ्रांस इन देशों से चिढ़ा हुआ है. वहीं, चीन एक बार फिर से ताईवान पर दबाव बढ़ा चुका है. फ्रांस की शह उसे मिल चुकी है. यूक्रेन में पश्चिमी देश रूस से अघोषित लड़ाई में उलझे हुए हैं. रूस से उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही है और इधर ताईवान में भी अमेरिका पूरा जोर लगाए हुए है. लेकिन चीन ने ताईवान की घेरेबंदी करके युद्ध अभ्यास किया है. वो भी ऐसे मौके पर, जब ताईवान के पूर्व राष्ट्रपति अमेरिका दौरे पर हैं. ऐसे में फ्रांस का अमेरिका को आंख दिखाना इस बात का संकेत है कि फ्रांस फिर से चीन को शह दे रहा है. चीन को उसकी शह देने की नीति ने ही आज दुनिया को फिर से द्विध्रुवीय व्यवस्था की ओर ढकेल दिया है. आज चीन दुनिया की सभी ताकतों को आंख दिखा रहा है. वो रूस को शह दे रहा है. कम्युनिष्ट व्यवस्था में वो रूस का बड़ा भाई बन चुका है.

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भारत पर क्या असर?

भारत हमेशा से बहुध्रवीय दुनिया का पैरोकार रहा है. लेकिन वो सोवियत संघ के साथ ही रूस का भी पारंपरिक सहयोगी रहा है. चीन से उसे हमेशा चुनौती मिली है. सीमा विवाद भी है. सैन्य क्षमता भी अब चीन को ध्यान में रखते हुए ही बढ़ाई जा रही है. पश्चिमी देश अब साथ आ रहे हैं. रूस धीरे-धीरे ही सही, कमजोर हो रहा है. चीन अब स्थिति में आ चुका है कि वो रूस पर दबाव डालकर भारत को हो रही हथियारों की आपूर्ति पर भी असर डाल दे. हालांकि चीन एक साथ कई मोर्चों पर उलझना नहीं चाहेगा. वो इस समय कूटनीतिक तौर पर दुनिया को अपना दम दिखा रहा है. अब तक पश्चिमी एशिया में अमेरिका बुरी तरह से उलझा था, लेकिन चीन ने हथियारों की जगह पैसों के दम पर पश्चिमी एशिया की व्यवस्था को ही बदलकर रख दिया है. सऊदी अरब-ईरान जैसे कट्टर दुश्मन साथ आ रहे हैं. यमन में भी शांति-वार्ता की चर्चा हो रही है. ऐसे में भारत का ध्यान अभी अपने आर्थिक विकास के साथ ही हथियारों के दम पर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने पर है. लेकिन फ्रांस की शह पर चीन अगर ताईवान को टारगेट करता है, तो अमेरिका न चाहते हुए भी फिर से एशिया-प्रशांत इलाके में उलझ जाएगा. अगर वो बचता है, तो चीन खुद ब खुद ताईवान को हड़प लेगा. ऐसे में भारत पर चीन का दबाव बढ़ जाएगा. वहीं, भारत के लिए तेजी से अपनी ताकत को बढ़ाना उसकी मजबूरी हो जाएगी. लेकिन बदलती वैश्विक परिस्थितिओं में वो खुद को कितना प्रासंगिक रख पाएगा, ये देखने वाली बात होगी.

( फ्रांस में मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था को 5th Frence Republic कहा जाता है. 4 अक्टूबर 1958 से लागू फ्रांस के संविधान के आधार पर ये व्यवस्था चल रही है. अभी तक फ्रांस की लोकतांत्रिक व्यवस्था में पांचवी लोकतांत्रिक व्यवस्था दूसरी सबसे लंबे समय तक चलने वाली व्यवस्था है. साल 2028 तक यही व्यवस्था चलती रही और फ्रांस में कोई संवैधानिक बदलाव नहीं आया तो ये फ्रांस में चलने वाली सबसे लंबी संवैधानिक व्यवस्था होगी. फ्रांस कई बार राजतंत्र, लोकतंत्र, गुलामी और क्रांति से गुजर चुका है. कभी वो दुनिया की सबसे बड़ी कॉलोनियल व्यवस्था में से एक था और अमेरिका का सहयोगी था, लेकिन अब फ्रांस से ज्यादा ताकतवर कई सारे देश हैं. ऐसे में फ्रांस कूटनीतिक स्तर पर खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए इस तरह के कदम उठा भी सकता है.)