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कौन हैं बारबरा मेटकाफ, AMU ने क्यों दिया सर सैयद उत्कृष्टता पुरस्कार? 

वार्षिक पुरस्कार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) द्वारा इसके संस्थापक सर सैयद अहमद खान की जयंती पर दिया जाता है. इस साल एएमयू सर सैयद की 205वीं वर्षगांठ मना रहा है.

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Pradeep Singh
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BARBARA

बारबरा मेटकाफ, अमेरिकी इतिहासकार( Photo Credit : NewsNation)

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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का प्रतिष्ठित 'सर सैयद उत्कृष्टता अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार-2022'  सोमवार यानि 17 अक्टूबर को अमेरिकी इतिहासकार और दक्षिण एशियाई इतिहास और इस्लाम के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित विद्वान, बारबरा डी मेटकाफ  को दिया गया. वार्षिक पुरस्कार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) द्वारा इसके संस्थापक सर सैयद अहमद खान की जयंती पर दिया जाता है. इस साल एएमयू सर सैयद की 205वीं वर्षगांठ मना रहा है. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष ताहिर महमूद इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार के महानिदेशक चंदन सिन्हा विशिष्ट अतिथि थे.

अमेरिका से इस कार्यक्रम में  वर्चुअली रूप से शामिल हुई मेटकाफ ने कहा कि भारतीय मुसलमानों के इतिहास को "समझा गया" है. अपने स्वीकृति भाषण में उन्होंने इतिहासकारों से "तय खांचे से ऊपर उठने" का भी आह्वान किया क्योंकि "सिर्फ इतिहास से सिर्फ राजनीति होती है." उन्होंने भारत में "गंभीर साक्ष्य-आधारित इतिहास" को बढ़ावा देने के महत्व पर भी जोर दिया."

बारबरा मेटकाफ कौन है?

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस, मेटकाफ में इतिहास की प्रोफेसर एमेरिटा बारबरा  ने 1974 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में अपनी पीएचडी पूरी की. अपने स्नातकोत्तर अध्ययन के दौरान उन्होंने दक्षिण एशिया उलेमा (धार्मिक विद्वानों) के आधुनिक इतिहास में रुचि विकसित की. 

उनका डॉक्टरेट शोध प्रबंध देवबंद के मुस्लिम धार्मिक विद्वानों के इतिहास पर था, जो 19 वीं शताब्दी के अंत में स्थापित उत्तर भारत में एक सुधारवादी धार्मिक मदरसा था. अमेरिकन हिस्टोरिकल एसोसिएशन के अनुसार, उलेमा के उर्दू लेखन पर उनके काम से पता चलता है कि वे "परंपरावादी" या "कट्टरपंथी" नहीं थे, जैसा कि अक्सर चित्रित किया जाता है, बल्कि एक अधिक जटिल बौद्धिक और संस्थागत दुनिया में रहते हैं. मेटकाफ ने 2010-11 से संगठन के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया.

मेटकाफ के लेखन ने विशेष रूप से औपनिवेशिक काल के दौरान भारत और पाकिस्तान की मुस्लिम आबादी के इतिहास को समझने में बहुत योगदान दिया है. उन्होंने तब्लीगी जमात पर भी काम किया है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न धार्मिक सुधार के अंतर्राष्ट्रीय सुन्नी मिशनरी आंदोलन है. टीआरटी वर्ल्ड के अनुसार, समूह में अपनी अकादमिक छात्रवृत्ति के अलावा, उन्होंने क्यूबा में अमेरिकी हिरासत शिविर - ग्वांतानामो बे में कैदियों की ओर से विशेषज्ञ गवाही दी है, जिन्हें तब्लीगी मण्डली में भाग लेने के लिए हिरासत में लिया गया था.

इस्लाम पर उनका अध्ययन

बारबरा मेटकाफ (और थॉमस आर मेटकाफ की) क्लासिक किताब, ए कॉन्सिस हिस्ट्री ऑफ इंडियन (2002) का व्यापक रूप से दक्षिण एशियाई इतिहास के छात्रों के लिए पाठ्यपुस्तक के रूप में उपयोग किया जाता है. इसके के अलावा उनके अन्य लेख जो ज्यादा प्रशंसित है, उनमें शामिल हैं: इस्लामिक रिवाइवल इन ब्रिटिश इंडिया: देवबंद, 1860- 1900 (1982), उत्तरी अमेरिका और यूरोप में मुस्लिम स्पेस बनाना (1996), इस्लामी प्रतियोगिताएं: भारत और पाकिस्तान में मुसलमानों पर निबंध (2004), हुसैन अहमद मदनी: इस्लाम और भारत की स्वतंत्रता के लिए जिहाद (2008)

अपने भाषण के दौरान, मेटकाफ ने कहा कि स्वतंत्रता के समय एक चौथाई आबादी होने और भारत गणराज्य में नागरिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होने के बावजूद, भारतीय मुसलमानों का इतिहास "समझा गया" है. उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास को अच्छी तरह से बताने के लिए भारतीय मुसलमानों पर विद्वानों का काम जरूरी है.

मेटकाफ ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में भारतीय मुसलमानों और इस्लामी विद्वानों की भूमिका पर उनके अध्ययन से पता चला है कि उलेमा एक सामाजिक समूह हैं जिन्हें "अक्सर उनकी वेष-भूषा को देखकर कट्टर औप परंपरावादी माना जाता है" और उन्होंने इतिहासकारों से अपील की कि " रूढ़ियों से ऊपर उठें. ” 

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देवबंद स्कूल के मौलाना हुसैन अहमद मदनी जैसे भारतीय विद्वानों की मुख्य विचारधारा का उल्लेख करते हुए मेटकाफ ने कहा कि भारतीय मुसलमान भारत की मिट्टी को पवित्र मानते हैं. "उनके लिए, भारत के प्राकृतिक चमत्कार ईडन के बगीचे की तरह थे." 

पुरस्कार किसके नाम पर रखा गया है?

इस पुरस्कार का नाम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से संस्थापक सर सैयद अहमद खान (1817-1898) के सम्मान में रखा गया है, जो आधुनिक भारत के अग्रणी सामाजिक और राजनीतिक सुधारकों में से एक हैं. उन्होंने 1875 में मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल (एमएओ) कॉलेज की स्थापना की, जो ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों से प्रभावित था, और मुस्लिम समुदाय में एक वैज्ञानिक स्वभाव पैदा करने और भारतीयों को अपनी भाषाओं में पश्चिमी ज्ञान तक पहुंचने की अनुमति देने की मांग की.

पुरस्कार किसे दिया जाता है?

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) प्रसिद्ध विद्वानों या संगठनों को एक वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय सर सैयद उत्कृष्टता पुरस्कार प्रदान करता है जो सर सैयद अध्ययन, दक्षिण एशियाई अध्ययन, मुस्लिम मुद्दे, साहित्य, मध्यकालीन इतिहास, सामाजिक सुधार, सांप्रदायिक सद्भाव, पत्रकारिता और अंतर-धार्मिक संवाद के क्षेत्रों में मौलिक कार्य करने वालों को दिया जाता हैं. 

पुरस्कार की राशि कितनी है?

सर सैयद अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार में 200,000 रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है. जबकि सर सैयद राष्ट्रीय पुरस्कार 100,000 रुपये का दिया जाता है. इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मेटकाफ और राष्ट्रीय पुरस्कार मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाउंडेशन, नई दिल्ली को दिया गया.

Source : Pradeep Singh

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