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कैसे हुई इंडोनेशिया में फुटबॉल मैच हिंसा, जिसमें मारे गए 174 लोग

फुटबॉल के साथ उसके प्रशंसकों के उन्माद से जुड़ी हिंसा का चोली-दामन वाला साथ रहा है. अब इंडोनेशिया के पूर्वी जावा में मलंग में इडोनेशियाई लीग मैच के तहत शनिवार रात खेले जा रहे मैच के बाद भगदड़ और फिर दंगे में 174 लोगों की मौत हो गई.

Updated on: 02 Oct 2022, 07:22 PM

highlights

  • अरेमा के प्रशंसकों को हार बर्दाश्त नहीं हुई औऱ वे उतरे हिंसा पर
  • पुलिस ने दागे आंसू गैस के गोले जिससे मच गई भगदड़
  • स्टेडियम के बाहर विपक्षी टीम के प्रशंसक भी हो गए बेकाबू

नई दिल्ली:

अभी तक 174 लोग आधिकारिक तौर पर मारे गए हैं और 180 से अधिक घायल हुए हैं, वह भी इंडोनेशिया के एक फटबॉल मैच के बाद हुए दंगे और इस कारण मची भगदड़ में. पूर्वी जावा के मलंग के कंजूरुहान स्टेडियम में आखिर ऐसा क्या हुआ जिस कारण इतनी बड़ी संख्या में लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा? प्रारंभिक तौर पर इसके लिए कुप्रबंधन और पुलिस की अति सक्रियता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. सभी को पता था कि इंडोनेशिया में फुटबॉल का जुनून उसके प्रशंसकों के सिर चढ़ कर बोलता है, फिर भी एक टीम के प्रशंसकों को स्टेडियम में प्रवेश और दूसरे को नहीं ने स्थिति को नियंत्रण से बाहर कर दिया. जानते हैं पूरा घटनाक्रम.  

इंडोनेशिया में फुटबॉल मैच के दौरान आखिर हुआ क्या
फुटबॉल इंडोनेशिया में बेहद लोकप्रिय खेल है. इसका जुनून हर बड़े मैच से पहले खिलाड़ियों समेत प्रशंसकों के सिर चढ़ कर बोलता है, जिसकी अक्सर परिणति हिंसा के रूप में होती है. मलंग में स्थिति को बद् से बद्तर बनाया स्टेडियम में क्षमता से अधिक दर्शकों को प्रवेश देकर और पुलिस द्वारा आंसू गैस के गोलों के प्रयोग से फैली घबराहट ने. इंडोनेशियाई लीग मैच के तहत अरेमा एफसी का अपने चिर प्रतिद्वंद्वी परसेबाया सुराबया से शनिवार रात को मैच था. यह मैच अरेमा के लिए उसके घरेलू स्टेडियम में खेला जा रहा था, इसलिए स्टेडियम में सिर्फ अरेमा एफसी के प्रशंसकों को ही प्रवेश दिया गया. मकसद यही था कि दोनों टीमों के प्रशंसक हार-जीत का परिणाम आने के बाद दंगाई नहीं बने. हालांकि परसेबाया ने मैच 3-2 से जीत लिया, जिससे उत्तेजित अरेमा के प्रशंसक हिंसा पर उतारू हो गए. विपक्षी टीम के खिलाड़ियों और अधिकारियों पर बोतलें और अन्य चीजें फेंकने लगे. इसकी भनक लगते ही बाहर एकत्र प्रशंसक उत्तेजित हो गए. इस कारण मची हायतौबा में लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे. उन्मादी दंगाइयों ने पुलिस की कारें क्षतिग्रस्त कर दीं. उधर मैदान के अंदर स्थिति नियंत्रण से बाहर जाते देख पुलिस बल ने आंसू गैस के गोले दागने शुरू कर दिए. इससे फैली घबराहट से दर्शक निकास द्वार की ओर हुजूम के रूप में दौड़ पड़े. स्टेडियम प्रबंधन ने 42 हजार टिकटों की बिक्री की, जबकि क्षमता महज 38 हजार दर्शकों की थी. इस वजह से भगदड़ और दम घुटने से 174 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, जिनमें एक पांच साल का बच्चा और दो पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं. घायलों में दर्जनों की हालत बेहद गंभीर बताई जा रही है. बीबीसी ने पूर्वी जावा के पुलिस प्रमुख निको अफिंता के बयान के हवाले से लिखा है, 'पूरी स्थिति अराजक हो गई थी. उन्होंने अधिकारियों पर हमले कर कारें क्षतिग्रस्त करनी शुरू कर दीं. हम कहना चाहते हैं कि सभी दर्शक अराजक नहीं थे. महज 3 हजार की भीड़ ने मैदान में घुस कर अराजकता की स्थिति पैदा कर दी'.

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अब क्या होगा
फीफा ने सुरक्षा कारणों से मैच के दौरान किसी आपातकालीन स्थिति के उभरने पर भी भीड़ नियंत्रण करने वाली गैस या आग्नेयास्त्रों का प्रयोग प्रतिबंधित कर रखा है. हालांकि अभी यह नहीं पता है कि पूर्वी जावा पुलिस को फीफा के इस प्रतिबंध की जानकारी थी या नहीं. इस बारे में अभी तक कोई आधिकरिक टिप्पणी भी नहीं की गई है. हालांकि फीफा ने इंडोनेशिया की पीएसएसआई फुटबॉल एसोसिएशन से पूरे हादसे और घटनाक्रम पर रिपोर्ट तलब की है. इसके अलावा पीएसएसआई की एक टीम मलंग भेजी गई है, जो पूरे मामले की जांच करेगी. 

मलंग के हताहतों को सरकार देगी मुआवजा
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने मामले की विस्तृत जांच के आदेश दिए हैं. इसके साथ ही उन्होंने प्रमुख फुटबॉल लीग को निलंबित भी कर दिया है, जब तक कि सुरक्षा की तैयारियों की पुनर्समीक्षा नहीं हो जाती. इंडोनेशिया के खेल और युवा मामलों के मंत्री जैनुद्दीन अमली कहते हैं, 'हम बारीकी से मैच के आयोजन और समर्थकों की उपस्थिति से जुड़े पहलुओं की जांच कर रहे हैं. मैच में प्रशंसकों की उपस्थिति रहे या नहीं इस पर फैसला हम जांच रिपोर्ट आने के बाद करेंगे.' इस बीच इंडोनेशिया के फुटबॉल संघ ने अरेमा को बाकी पूरे सीजन के दौरान मैच का आयोजन करने से प्रतिबंधित कर दिया है. 

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फुटबॉल में हिंसा क्यों होती है
इंडोनेशिया में फुटबॉल बेहद लोकप्रिय खेल और घरेलू लीग से प्रशंसकों का गहरा जुड़ाव है. यही जुनून और उन्माद अक्सर हिंसा और दंगे के रूप में सामने आता है. हालांकि प्रशंसकों के बीच भिंड़त अमूमन स्टेडियम के बाहर ही होती आई है. सबसे ज्यादा सुर्खियों में आने वाला हिंसक संघर्ष परसिजी जाकार्ता और परसिब बैंनडुंग के बीच हुआ. दोनों क्लब के प्रशंसक कई मैचों के दौरान भिड़े, जिसमें कई की जान गईं. 2018 में परसिजी जर्काता के एक प्रशंसक की परसिब बैंनडुंग के प्रशंसकों ने पीट-पीट कर मार डाला था. इंडोनेशियाई फुटबॉल संघ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके देश के प्रशंसकों द्वारा की गई हिंसा से त्रस्त है. 2019 में ही फीफा वर्ल्ड कप के क्वालीफायर मैच में चिर प्रतिद्वंद्वी इंडोनेशिया और मलेशिया के प्रशंसक भिड़ गए थे. यहां तक कि हिंसक संघर्ष देख मलेशिया के खेल मंत्री को स्टेडियम से बाहर ले जाना पड़ा था. इसके दो महीने बाद ही दोनों के प्रशंसक कुआलालंपुर में भिड़ गए थे. इंडोनेशिया की फुटबॉल वॉचडॉग संस्था 'सेव आर सॉकर' के मुताबिक 1995 से अबतक 86 फुटबॉल प्रशंसकों को अपने पसंदीदा क्लब को चियर करने से फैली हिंसा से जान से हाथ धोना पड़ा है. 

भारत में घटी घटना
16 अगस्त 1980 को 16 लोगों को कोलकाता के ईडन गार्डन में मची भगदड़ में जान से हाथ धोना पड़ा था. उस वक्त वहां मोहन बगान और ईस्ट बंगाल टीम के बीच फुटबॉल लीग मैच खेला जा रहा था. हिंसा की शुरुआत मैदान में ईस्ट बंगाल के खिलाड़ी दिलीप पाटिल और मोहन बगान के बिदेश बोस के बीच हुई नोंकझोंक से हुई. स्टेडियम की दर्शक दीर्घा में दोनों टीमों के प्रशंसकों के अलग-अलग बैठने की व्यवस्था नहीं थी, सो वह यह देख आपस में भिड़ गए. इस बीच मैदान पर खेल चलता रहा, क्योंकि किसी को नहीं आभास था कि स्टैंड में स्थिति कितनी तेजी से बिगड़ रही है. इस हिंसा के बाद ही 16 अगस्त को फुटबॉल लवर्स डे के रूप में मनाने का फैसला किया गया. भारत के पड़ोसी देश नेपाल में मार्च 1988 में काठमांडू के नेशनल फुटबॉल स्टेडियम में ओले पड़ने लगे. यह देख प्रशंसक ताला बंद गेट की तरफ भागे और इस फेर में मची भगदड़ में 90 लोग मारे गए.