What is Dark Oxygen: प्रकृति रहस्यों से भरी पड़ी हुई है. हम उसके बारे में जितना भी जानते हैं, वो बहुत कम है. हालिया खोज के बाद ये कहना गलत नहीं होगा. वैज्ञानिकों ने समुद्र में हजारों फीट की गहराई में डार्क ऑक्सीजन का पता लगाकर एक नया कीर्तिमान रच दिया है. डार्क ऑक्सीजन की खोज किसी चमत्कार से कम नहीं है, क्योंकि इसने उस वैज्ञानिक सोच की धज्जियां उड़ गई हैं, जिसके तहत ये माना जाता था कि सूर्य के प्रकाश के बिना ऑक्सीजन का उत्पादन नहीं किया जा सकता. ऐसे में आइए जानते हैं कि डार्क ऑक्सीजन क्या है?
डार्क ऑक्सीजन की खोज
डार्क ऑक्सीजन की खोज एंड्रयू स्वीटमैन ने की है. वो स्कॉटिश एसोसिएशन फॉर मरीन साइंस (SAMS) में प्रोफेसर हैं. साथ ही वो SAMS के सीफ्लोर इकोलॉजी एंड बायोजियोकेमिस्ट्री रिसर्च ग्रुप के टीम लीडर भी हैं. स्वीटमैन का डार्क ऑक्सीजन की खोज से जुड़ा रिसर्ज वर्क नेचर जियोसाइंस जर्नल में पब्लिश हुआ है.
स्वीटमैन का रिसर्च इस बात के सबूत देता है कि प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) से उत्पन्न ऑक्सीजन के अलावा धरती पर एक अलग ऑक्सीजन स्त्रोत भी है. ये भी पता चलता है कि लगभग 13,000 फीट नीचे समुद्र तल पर जो जमा खनिज हैं, उसने भी ऑक्सीजन उत्पन्न होती है.
क्या है डार्क ऑक्सीजन?
चौंकाने वाली बात तो ये सामने आई है कि हम जितनी ऑक्सीजन सांस के साथ लेते हैं, उसका लगभग आधा हिस्सा समुद्र से आता है. नहीं तो अबतक यही समझता जाता था कि पृथ्वी पर ऑक्सीजन का एकमात्र स्त्रोत पौधे और शैवाल जैसे प्रकाश संश्लेषक जीव हैं, जो इंसानों और अन्य जानवरों को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं.
हालांकि, इसके लिए इन पौधों को प्रकाश (Sunlight) की जरूरत होती है. फिर चाहे स्थलीय पौधे हों या फिर जलीय पौधे बिना प्रकाश के ऑक्सीजन को उत्पादन नहीं कर सकते हैं. नई खोज साबित करती है कि बिना प्रकाश के भी ऑक्सीजन का उत्पादन होता है. इस उत्पादित ऑक्सीजन को 'डार्क ऑक्सीजन' नाम दिया गया है.
कैसे बनती हैं डार्क ऑक्सीजन?
प्रशांत महासागर में हजारों फीट गहराई में समुद्र तल पर कोयले जैसी खनिज चट्टानें हैं, जिन्हें पॉलीमेटेलिक नोड्यूल (Polymetallic Nodules) नाम दिया गया है, जिनमें आम तौर पर मैंगनीज और लोहा होता है.
ये खनिज चट्टानें समुद्री में इतनी गहराई पर हैं, जहां प्रकाश का नामोनिशान तक नहीं है. ये नोड्यूल प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के बिना ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं. अब आइए जानते हैं कि कैसे.
स्वीटमैन के मुताबिक, पॉलीमेटेलिक नोड्यूल समुद्री जल (H2O) को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित कर देते हैं. परिणामस्वरूप डार्क ऑक्सीजन बनती है.
स्वीटमैन बताते हैं कि उन्होंने पहली बार 2013 में यह पाया कि समुद्र तल में बहुत मात्रा में ऑक्सीजन का उत्पादन किया जा रहा था. तब उन्होंने इसे अनदेखा कर दिया, क्योंकि उनको लगता था कि केवल प्रकाश संश्लेषण के जरिए से ऑक्सीजन का उत्पादन होता है और बिना प्रकाश के ये संभव नहीं है, जबकि समुद्र तल में दूर-दूर तक अंधकार था.
कैसे बनते हैं ये पॉलीमेटेलिक नोड्यूल
आखिरकार उन्होंने इसके पीछे के रहस्य को सुझलाने का फैसला लिया. इसके लिए उन्होंने हवाई और मैक्सिको के बीच गहरे समुद्र में अपना रिसर्च शुरू किया. उन्होंने पाया कि समुद्र तल के एक विशाल हिस्से में पॉलीमेटेलिक नोड्यूल में फैले हुए हैं. समुद्र जल में घुली हुईं घातुएं जब शैल के टुकड़ों या अन्य मलबों पर जमा हो जाती है, तो ये पॉलीमेटेलिक नोड्यूल (गांठें) बनती हैं. यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें लाखों साल लगते हैं.
अब वैज्ञानिकों को क्या है डर?
इन गांठों में लिथियम, कोबाल्ट और तांबे जैसी धातुएं होती हैं. ये सभी धातुएं बैटरी बनाने के लिए जरूरी होती हैं. अब कई खनन कंपनियों ने इन नोड्यूल्स को समुद्र तल से इकट्ठा करने की प्लानिंग बनाई है, जिसके बारे में समुद्री वैज्ञानिकों को डर है कि यह नई खोजी गई प्रक्रिया को बाधित कर सकता है और किसी भी समुद्री जीवन को नुकसान पहुंचा सकता है, जो उनके द्वारा बनाई गई ऑक्सीजन पर निर्भर करता है.