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CWG में 44 साल बाद लांग जंप में मुरली के सिल्वर मेडल जीतने का रहस्य खुला, कह उठेंगे वाह-वाह

लंबी कूद के लिए अपनाई जाने वाली तकनीक में फेरबदल कर मुरली ने यह उपलब्धि अपने नाम की है. जानते हैं किस तरह तकनीक में मामूली बदलाव ने न सिर्फ उन्हें कॉमनवेल्थ मेडल से नवाजा बल्कि उनका निजी प्रदर्शन भी उत्तरोत्तर निखरता जा रहा है.

Updated on: 07 Aug 2022, 01:08 PM

highlights

  • मुरली श्रीशंकर ने बजाय हैंग के हिच किक तकनीक से लगाई थी लंबी छलांग
  • 44 साल बाद भारतीय ने कॉमनवेल्थ खेलों की लांग जंप स्पर्धा में जीता सिल्वर
  • कॉमनवेल्थ खेलों में ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं में भारत को मिले सिर्फ 30 मेडल

नई दिल्ली:

बर्मिंघम, इंग्लैंड में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games 2022) में लांग जंप स्पर्धा में 23 साल के मुरली श्रीशंकर (Murali SreeShankar) सिल्वर मेडल हासिल करने वाले पहले भारतीय लांग जंपर बन गए हैं. इसके पहले लांग जंप (Long Jump) में सुरेश बाबू ने 1978 में ब्रांज मेडल जीता था. यानी मुरली 44 साल बाद लांग जंप के पुरुष वर्ग में मेडल हासिल करने का सूखा खत्म करने में कामयाब रहे. आंकड़ों की भाषा में देखें तो भारत को कॉमनवेल्थ खेलों में लांग जंप में अब तक सिर्फ चार पदक ही मिले हैं. सुरेश बाबू और मुरली श्रीशंकर के अलावा 2002 में अंजू बॉबी जॉर्ज (Anju Bobby George) ने सिल्वर और 2010 में एमए प्रजूषा (MA Prajusha) ने सिल्वर मेडल हासिल किया था. हालांकि मुरली कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में फाउल के गलत फैसले के चलते गोल्ड से चूक गए, लेकिन लंबी कूद के लिए अपनाई जाने वाली तकनीक में फेरबदल कर मुरली ने यह उपलब्धि अपने नाम की है. जानते हैं किस तरह तकनीक में मामूली बदलाव ने न सिर्फ उन्हें कॉमनवेल्थ मेडल से नवाजा बल्कि उनका निजी प्रदर्शन भी उत्तरोत्तर निखरता जा रहा है. 

कॉमनवेल्थ ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धा में भारत को अब तक महज 30 मेडल
गौरतलब है कि कॉमनवेल्थ गेम्स के 92 सालों के इतिहास में ट्रैक एंड फील्ड से जुड़ी स्पर्धाओं में भारत का प्रदर्शन बहुत उत्साहजनक नहीं रहा है. ट्रैक एंड फील्ड से जुड़ी स्पर्धाओं में भारत ने अब तक महज 30 मेडल ही जीते हैं. 400 मीटर की दौड़ में मिल्खा सिंह ने 1958 में पहला गोल्ड मेडल हासिल किया था. इसी से समझा जा सकता है कि एथलेटिक्स में भारतीय खिलाड़ियों का मेडल हासिल करना कितना दुर्लभ संयोग है. अब मुरली श्रीशंकर कॉमनवेल्थ खेलों लांग जंप में मेडल हासिल करने वाले चौथे भारतीय बनकर उभरे हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स की लांग जंप स्पर्धा में भारत ने अपना आखिरी मेडल 2010 में जीता था, जब इनका आयोजन नई दिल्ली में हुआ था. उस वक्त ट्रिपल जंपर एमए प्रजूषा ने सीजन की सर्वश्रेष्ठ 6.55 मीटर की छलांग के साथ भारी उम्मीदें जगा रखी थी. हालांकि कॉमनवेल्थ स्पर्धा में 6.47 मीटर की छलांग ही लगा सकीं और कनाडा की एलिस फैलिये ने 6.50 मीटर की छलांग लगा गोल्ड हासिल कर लिया था. इस तरह प्रजूषा को सिल्वर मेडल से ही संतोष करना पड़ा. 

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कॉमनवेल्थ गेम्स में लांग जंप में भारत के मेडल
पुरुष
1978 सुरेश बाबू 7.94 मीटर ब्रांज मेडल
2022 मुरली श्रीशंकर 8.08 मीटर सिल्वर मेडल

महिला
2002 अंजू बॉबी जॉर्ज 6.49 ब्रांज मेडल
2010 एम प्रजूषा 6.47 मीटर सिल्वर मेडल

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मुरली ने किया टेक्नीक में बदलाव
अंजू बॉबी जॉर्ज के कोच रहे रॉबर्ट बॉबी जॉर्ज ने मुरली श्रीशंकर से हिच किक तकनीक अपनाने को कहा. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में पहली बार मुरली को देखते ही रॉबर्ट को उनमें छिपी प्रतिभा का अंदाजा हो गया था. उस साल मुरली ने 7.6 से 7.7 मीटर की छलांग लगाई थी. इसके बाद रॉबर्ट मुरली के पिता और उनके कोच एस मुरली को समझाने में सफल रहे कि लांग जंप की पुरानी हो चुकी हैंग तकनीक के बजाय मुरली के लिए हिच किक कहीं बेहतर साबित होगी. इसके बाद मुरली ने इसी हिच किक तकनीक के साथ प्रशिक्षण जारी रखा और 2018 में पहली बार 8 मीटर पैमाना पार करने में सफल रहे. इसके बाद रॉबर्ट बॉबी जॉर्ज ने मुरली से अपने रन-अप के आखिरी चंद कदमों की गति और स्टाइल में भी बदलाव लाने को कहा. मुरली श्रीशंकर अपने रन-अप के आखिरी चंद कदम में बड़े-बड़े डग भरते थे. ऐसे में रॉबर्ट ने सुझाव दिया कि फाइनल स्टेप्स में वह छोटे-छोटे डग भरें और टेक ऑफ के लिए कदमों में तेजी लेकर आएं. तकनीक के इस मामूली बदलाव का नतीजा सामने है. मुरली 44 साल बाद कॉमनवेल्थ गेम्स में पुरुष वर्ग में भारत के लिए पहला सिल्वर मेडल हासिल करने में सफल रहे. 

हैंग तकनीक
इसमें लांग जंपर शरीर में खिंचाव लाकर छलांग लगाता है और जब तक संभव होता है वह हवा में इसे बनाए रखता है. इसमें पैर और हाथ दोनों ही फैले रहते हैं ताकि अधिकतम दूरी हासिल की जा सके. इस अवस्था में लांग जंपर अपनी ऊंचाई तक ऐसे ही रहता है, फिर वहां से लैंडिग पोजीशन में आते हुए अपने पैर आगे की ओर कर लेता है.

हिच किक तकनीक
इसे हवा में चढ़ने या दौड़ने वाली तकनीक भी कहते हैं. इस तकनीक के तहत लांग जंपर फ्लाइट के दौरान अपना संतुलन कायम रखने के लिए हाथ-पैरों को रोटेट करता रहता है. यह थोड़ी पेचीदा तकनीक है, लेकिन इससे लंबी कूद लगाते वक्त ज्यादा दूरी तय की जा सकती है. 

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मुरली के लिए यादगार रहेगा 2022 
पिछले महीने अमेरिका के यूजीन में संपन्न विश्व चैंपियनशिप में मुरली श्रीशंकर ने 7.96 की छलांग लगाकर सातवां स्थान हासिल किया . मुरली के लिए यह छलांग थोड़ी निराशाजनक रही, क्योंकि इस सीजन में मुरली ने सात बार 8 मीटर की दूरी तय करने में सफलता हासिल की थी. यही नहीं, लांग जंप का नेशनल रिकॉर्ड मुरली बीते दो सालों में आठ बार तोड़ चुके हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स में भी मुरली ने क्वालिफाई करने के लिए 8.05 मीटर की छलांग लगाई थी और फाइनल में 8.08 मीटर की छलांग लगाकर सिल्वर मेडल जीता. किसी भारतीय लांग जंपर का प्रमुख खेल स्पर्धा में अब तक का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. गौरतलब है कि 1974 के एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाले टीसी योहानन ने 8.07 मीटर की छलांग लगाई थी, जो उस वक्त का एशियन रिकॉर्ड भी था.

मुरली का घरेलू स्तर पर साल दर साल निखरता प्रदर्शन
2016 कोयंबटूर 7.52 मीटर

2017 विजयवाड़ा 7.72 मीटर

2018 भुवनेश्वर 8.2 मीटर

2019 पटियाला 8 मीटर

2021 पटियाला 8.26 मीटर

2022 तिन्हीपालम 8.36 मीटर