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श्रीलंका में अस्थायी वेश्यालयों में 30 फीसदी का इजाफा, वजह चौंका देगी

ऐसी दुरूह स्थिति में समग्र श्रीलंका में अस्थायी वेश्यालयों की बाढ़ सी आ गई है. स्टैंड-अप मूवमेंट लंका (एसयूएमएल) के मुताबिक दो वक्त की रोटी की जरूरत से वेश्यावृत्ति के धंधे में 30 फीसदी का इजाफा बीते कुछ महीनों में ही देखा गया है.

Updated on: 31 Jul 2022, 10:06 AM

highlights

  • टेक्सटाइल वर्कर से सेक्स वर्कर बनने वाली लड़कियों-महिलाओं की संख्या ज्यादा
  • परिवार चलाने और दो वक्त की रोटी कमाने के लिए वेश्यावृत्ति बना आसां विकल्प
  • एक दिन में 15 हजार श्रीलंकाई रुपये की आमदनी, लेकिन समस्याएं भी हजार

कोलंबो/नई दिल्ली:

ऐतिहासिक आर्थिक मंदी (Economic Crisis) का सामना कर रहे श्रीलंका (Sri Lanka) की महिलाओं के लिए स्थिति और नारकीय हो गई है. टेक्सटाइल क्षेत्र में कार्यरत महिलाएं बेरोजगारी (Unemployment) के आलम में दो वक्त की रोटी के लिए वेश्यावृत्ति का पेशा अपनाने को मजबूर हैं. द्वीपीय देश में जारी अभूतपूर्व संकट में 22 मिलियन श्रीलंका वासी भारी कठिनाई और गरीबी (Poverty) के साये तले जिंदगी गुजर करने को मजबूर हैं. आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे श्रीलंका के लाखों परिवारों को चौतरफा संकट ने हाशिये पर ला दिया है. श्रीलंका के अधिकांश लोग परिवार का पालन-पोषण करने में जद्दोजेहद का सामना कर रहे हैं. खाद्यान्न, ईंधन और अन्य जरूरी वस्तुओं  को जुटाना उनके लिए बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है. ऐसे मे टेक्सटाइल उद्योग का हिस्सा रही लड़कियां और महिलाएं पेट भरने के लिए वेश्यावृत्ति (Prostitution) अपनाने को एकमात्र विकल्प मान रही हैं.

अस्थायी वेश्यालयों की संख्या 30 फीसद बढ़ी
ऐसी दुरूह स्थिति में समग्र श्रीलंका में अस्थायी वेश्यालयों की बाढ़ सी आ गई है. स्टैंड-अप मूवमेंट लंका (एसयूएमएल) के मुताबिक दो वक्त की रोटी की जरूरत से वेश्यावृत्ति के धंधे में 30 फीसदी का इजाफा बीते कुछ महीनों में ही देखा गया है. एसयूएमएल सेक्स वर्कर्स के लिए काम करने वाला संगठन है. इसके मुताबिक ये अस्थायी वेश्यालय स्पा और वेलनेस सेंटर की आड़ में चल रहे हैं. वेश्यावृत्ति के धंधे को अपनाने वाले महिलाओं का कहना है दिन भर के तीन वक्त के भोजन के लिए यही एकमात्र विकल्प बचा था. एसयूएमएल की कार्यकारी निदेशक अशिला डंडेनिया ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया कि टेक्सटाइल उद्योग में कार्यरत महिलाओं को आर्थिक संकट के चलते रोजगार से हाथ धोना पड़ा, तो उनके पास वेश्यावृत्ति ही आसान विकल्प बचा. कोरोना संक्रमण के बाद इस आर्थिक संकट ने टेक्सटाइल उद्योग को बुरी तरह प्रभावित किया है. लाखों लोगों की नौकरी जाने से महिलाएं जीविकोपार्जन के लिए वेश्यावृत्ति अपनाने को मजबूर हैं.

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रेहाना और रोजी की दास्तां
21 साल की रेहाना (बदला नाम) ने अपनी दास्तां एएनआई से बयान करते हुए बताया कि कैसे वह टेस्टाइल वर्कर से सेक्स वर्कर बन गई. सात महीने पहले रेहाना की नौकरी चली गई और कई महीनों के संघर्ष के बाद वह वेश्यावृत्ति के पेशे में आ गई. रेहाना बताती हैं, 'बीते साल दिसंबर में मुझे टेक्सटाइल फैक्ट्री के अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा. फिर मुझे दैनिक आधार पर एक दूसरी नौकरी मिल गई. कभी-कभी जब कारीगरों की कमी आ जाती थी, तो मुझे काम के लिए बुला लिया जाता था. वहां भुगतान नियमित नहीं था. कभी तुरंत मिल जाता और कभी कई-कई दिनों बाद. ऐसे में अपनी जरूरतों और परिजनों की देखभाल खासा मुश्किल हो गया. फिर एक दिन एक स्पा मालिक ने मुझे एप्रोच किया. उसकी बात सुन मैंने इस धंधे को अपनाने का फैसला किया. दिमाग इसे नहीं करने को कह रहा था, लेकिन परिवार के लिए पैसों की जरूरत ने मुझे मजबूर कर दिया.' 42 साल की रोजी की भी यही कहानी है, जो अधिकांश महिलाओं की तरह सेक्स वर्कर बनने को मजबूर हुई. तलाकशुदा रोजी को अपनी बेटी की पढ़ाई और घर का किराया चुकाने के लिए हर महीने निश्चित रकम की दरकार थी. वह बताती है, 'आर्थिक संकट के चलते आमदनी पूरी नहीं पड़ रही थी. मैं एक दुकान भी चलाती थी, लेकिन उसके लिए भी पैसों की जरूरत थी. ऐसी ही तमाम समस्याओं से निजात पाने का रास्ता वेश्यावृत्ति ही दिखाई पड़ा.'

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एक दिन में अच्छी कमाई
सेक्स वर्कर बनने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि जो लड़कियां या महिलाएं महीने भर में 20 से 30 हजार श्रीलंकाई रुपय़े कमाती थीं, वह वेश्यावृत्ति अपनाने के बाद एक दिन में ही 15 हजार श्रीलंकाई रुपये कमाने लगीं. हालांकि कमाई बढ़ने के साथ ही उनकी दुश्वारियां भी बढ़ी हैं. एसयूएमएल की निदेशक डंडेनिया के मुताबिक,  'तमाम सेक्स वर्कर वेश्यावृत्ति अपनाने के वक्त अपने जीवनसाथी के साथ रह रही थीं, लेकिन उनकी यह काली सच्चाई सामने आने के बाद अधिकांश ने उनका साथ छोड़ दिया. कई लड़कियां और महिलाएं गर्भवती भी हो गईं. इस वक्त हम दो गर्भवती महिलाओं की देखरेख कर रहे हैं. इस काम में हमें किसी से कोई मदद नहीं मिल रही है. यहां तक कि सरकार भी इस मामले में हमारी कोई मदद नहीं कर सकती.'