सोनिया की डिनर डिप्लोमेसी और विपक्षी दलों की बैठक, समझें समीकरण
केंद्र में 2004 से 2014 तक यूपीए की सरकार थी. इस दौरान सोनिया गांधी यूपीए की अध्यक्ष थी. लंबे समय बाद सोनिया गांधी फिर से राजनीति में रुचि लेनी लगी हैं. कुछ जानकारों का कहना है कि सोनिया गांधी नए मोर्चे की पायलट बन सकती हैं.
नई दिल्ली:
2024 में भाजपा को उखाड़ फेंकने और मोदी रथ को रोकने के लिए आज एक बार फिर से विपक्ष की महा बैठक बेंगुलुरु में होने जा रही है. इस बैठक में कांग्रेस के साथ 24 दल शामिल हो रहे हैं. इस बीच चर्चा है कि भाजपा विरोधी पार्टियों के नए गठबंधन का नाम बदला जा सकता है. इसे यूपीए के नाम से नहीं जाना जाएगा. बेंगलुरु बैठक में ही मोर्चे के नाम की घोषणा हो सकती है. साथ ही यह भी तय होगा कि नए मोर्चे की अगुवाई कौन करेगा. इसका प्रारुप कैसा होगा. क्या संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की तरह ही गांधी परिवार इसका नेतृत्व करेगा.
करीब 20 साल बाद भाजपा विरोधी दलों को एक मंच पर आना और सोनिया गांधी का फिर से राजनीति में सक्रिय होना कई मायने में अहम है. 2004 से 2014 तक सोनिया गांधी के नेतृत्व में यूपीए ने सत्ता पर कब्जा जमाया था, लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी इस नेतृत्व को रोककर केंद्र में भाजपा नीत एनडीए की सरकार बनाने में सफलता हासिल की. पर 10 साल बाद फिर से सोनिया गांधी राजनीति में एक्टिव होती दिख रही हैं. सोनिया गांधी बेंगलुरु में विपक्षी दलों की हो रही बैठक में शामिल होने जा रही हैं. 18 जुलाई को सोनिा गांधी बैठक में भाग लेंगी. उससे पहले 17 जुलाई को सोनिया गांधी ने बैठक में हिस्सा लेने वाले सभी दलों को डिनर पर बुलाया है. ऐसे में राजनीति में रुचि रखने वाले लोगों का मानना है कि सोनिया गांधी की डिनर डिप्लोमेसी के भी कई मायने हैं.
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सोनिया गांधी थीं अध्यक्ष
केंद्र में 2004 से 2014 तक यूपीए की सरकार थी. इस दौरान सोनिया गांधी यूपीए की अध्यक्ष थी. लंबे समय बाद सोनिया गांधी फिर से राजनीति में रुचि लेनी लगी हैं. कुछ जानकारों का कहना है कि सोनिया गांधी नए मोर्चे की पायलट बन सकती हैं. क्योंकि सोनिया गांधी के नाम पर विपक्षी दलों के नेताओं में असहमति ना के बराबर है. सोनिया गांधी की सभी दलों में स्वीकारोक्ति है. वह चाहे ममता बनर्जी की बात हो या लालू यादव के साथ सियासी संबंध का जिक्र हो. 1999 में शरद पवार ने सोनिया के नाम पर भले ही कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी का गठन किया, लेकिन पांच साल बाद ही सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली यूपीए में शरद पवार केंद्रीय मंत्री बने थे. तब से आज तक सोनिया और शरद पवार के सियासी संबंध मधुर रहे हैं. 2004 में सोनिया गांधी ने अटल-आडवाणी की जोड़ी को तोड़कर केंद्र में यूपीए को सत्ता तक पहुंचाया था. सोनिया गांधी के बैठक में शामिल होने के मायने यहीं से शुरू होती है.. दरअसल, सोनिया गांधी के पास सत्ता चलाने का 10 साल का अनुभव भी है. साथ ही ऐसे में सोनिया गांधी विपक्षी नेताओं में सबसे अधिक उम्र की नेता हैं. ऐसे में इनके नाम पर बैठक में सहमति बन सकती है.
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