कोई पीछे हटने को तैयार नहीं, रूस को कम यूक्रेन को चुकानी होगी भारी कीमत
यूक्रेनवासी मान रहे हैं कि राष्ट्र की रक्षा के लिए वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसे व्लादिमीर पुतिन ऐतिहासिक भ्रम के रूप में खारिज करते आए हैं. फिलवक्त समय कीव का साथ नहीं दे रहा है और रूस से युद्ध में उसकी अर्थव्यवस्था बैठ जाएगी.
highlights
- यूक्रेन को सहयोगियों की ओर से नहीं मिल रही है अपेक्षित मदद
- कीव को डगमगाती अर्थव्यवस्था का हो सकता है बड़ा नुकसान
- रूस को लंबे समय बाद पता चलेगा पश्चिमी प्रतिबंधों का असर
नई दिल्ली:
यूक्रेन पर रूस को हमला बोले छह महीने हो रहे हैं और जिस युद्ध को मॉस्को ने ब्लिट्ज़क्रेग समझा था, वह अब रोजमर्रा के मिसाइल हमलों और बमबाजी में तब्दील हो चुका है. फिलहाल रूस-यूक्रेन युद्ध का कोई अंत दिखाई नहीं पड़ता. यूक्रेन (Ukraine) का ज्यादातर पूर्वी और दक्षिणी हिस्सा रूस के कब्जे में है. काला सागर के इस तटीय इलाके की यूक्रेन के लिए खास अहमियत है. इस पर अपना कब्जा खो देने के बाद कीव को गेंहू के निर्यात में भारी समस्याओं का सामना करना पड़ा. गेंहू के निर्यात पर ही युक्रेन की अर्थव्यवस्था सर्वाधिक निर्भर है. हालांकि संयुक्त राष्ट्र (United Nations) और तुर्किए की मध्यस्थता से कीव गेंहू का अब कुछ-कुछ निर्यात कर पा रहा है, लेकिन उससे उसकी अर्थव्यवस्था में कोई उछाल आने वाला नहीं हैं, बल्कि वैश्विक खाद्यान्न समस्या और खड़ी हो गई है. दूसरी तरफ रूस (Russia) पर भी यूक्रेन युद्ध की वजह से अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने तमाम तरह के प्रतिबंध थोपे हैं. इसके बावजूद शायद ही किसी को उम्मीद हो कि प्रतिबंधों के डर से पुतिन यूक्रेन पर हमले रोक देंगे. इसके विपरीत मॉस्को कब्जे वाले क्षेत्रों में रूसी सैनिक तैनात कर यूक्रेन के भीतरी इलाकों में हमला (Russia Ukraine War) कर रहा है. कह सकते हैं कि दोनों ही देशों को जान-माल के रूप में भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है, लेकिन कोई भी संघर्ष विराम की इच्छा जाहिर करता नहीं दिख रहा.
लंबा खिंच सकता है रूस-यूक्रेन युद्ध
यूक्रेनवासी मान रहे हैं कि राष्ट्र की रक्षा के लिए वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसे व्लादिमीर पुतिन ऐतिहासिक भ्रम के रूप में खारिज करते आए हैं. मॉस्को की राजनीतिक विश्लेषक कांस्टेंटीन कलाशेव कहते हैं, 'ऐसी स्थिति में कोई भी युद्ध नहीं जीत सकता. साथ ही रूस का यह विशेष सैन्य अभियान सालों तक खिंच सकता है. रूस वास्तव में यूक्रेन को नीचा दिखा कर युद्ध जीतने की उम्मीद कर रहा है. कह सकते हैं कि फिलवक्त समय कीव का साथ नहीं दे रहा है और रूस से युद्ध के चलते उसकी अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठ जाएगा.' यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस की निदेशक मैरी ड्युमोलिन के मुताबिक यूक्रेन को पश्चिमी सहयोगियों के जबर्दस्त समर्थन ने भी अब दोनों ही पक्षों के लिए पीछे हटना कठिन बना दिया है. वह कहती हैं, 'दोनों ही पक्षों को लग रहा है कि वह सैन्य स्तर पर वार-पलटवार से युद्ध अपने पक्ष में मोड़ सकेंगे, जिससे भी इसके जल्द खत्म होने के आसार नहीं लग रहे हैं.'
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यूक्रेन में रूस की स्थिति हो रही है मजबूत
व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमले को विस्तारवादी नाटो के खिलाफ रूस का प्रतिरोध करार दिया है. इससे भी साफ हो गया है रूस अपने कदम पीछे हटाने वाला नहीं. इसे वह अपनी हार के तौर पर देखेगा, जो व्लादिमीर पुतिन को कतई स्वीकार नहीं. यूरोपीय गठबंधन से नजदीकी बढ़ाने की इच्छा को बतौर सजा देने के लिए उसके महत्पूर्ण बंदरगाह ओडेसा पर कब्जा कर यूक्रेन की घेराबंदी कर एक तरह से उसके निर्यात का भी गला घोंट दिया है. हालांकि इस बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की अप्रैल में कीव के मिसाइल हमले में रूसी नौसेना के मिसाइल क्रूजर मोस्कवा को डुबाने में सफल रहे थे. वह कुछ ऐसी ही सामरिक बढ़त और चाहते हैं. ऐसे में वह रूसी कब्जे वाले इलाकों को छुड़ाने के लिए जवाबी सैन्य कार्रवाई कर सकते हैं. मैरी ड्युमोलिन कहती हैं, 'जेलेंस्की को लगता है कि ऐसी सफल जवाबी सैन्य कार्रवाई कर यूक्रेनी सेना और समाज को नए सिरे से प्रेरित कर सकेंगे. इसी बल पर वह अपने यूरोपीय सहयोगियों से और सैन्य मदद मांग सकते हैं.' अमेरिका और यूरोप से रूस के सैनिक मूवमेंट की सूचनाएं और सैन्य हथियार रूपी मदद से यूक्रेन की सेना डोन्बास और काला सागर के तटीय इलाकों में रूसी सेना के आगे बढ़ने की गति को धीमा कर सकी हैं, उसे पूरी तरह से रोक नहीं सकी है. हालांकि रूस को इसका यह फायदा मिल रहा है कि वह इन इलाकों में अपनी स्थिति को और मजबूत कर रहा है. आठ साल पहले क्रीमिया पर कब्जे के बाद रूस ने इस क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति और मजबूत की है. इसके उलट जेलेंस्की की अत्याधुनिक और शक्तिशाली हथियारों की मदद वाली गुहार भी सहयोगी देशों ने नहीं सुनी है.
सर्दी का मौसम भी लेगा यूक्रेन की कड़ी परीक्षा
फ्रैंच इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस की रिसर्च फैलो दिमित्री मिनिक के मुताबिक रूसी आक्रमण के खिलाफ यूक्रेन वासी अभी तक एकजुट हैं और सरकार का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन लंबे समय तक यह भाव बना रहे इसके लिए जरूरी है कि पश्चिमी देश युद्ध में यूक्रेन की मदद जारी रखे. सर्दी का मौसम शुरू हो रहा, जो यूक्रेनवासियों की अलग से परीक्षा लेगा. ईंधन की कमी, बिजली की आपूर्ति कम होगी, जिससे घर-प्रतिष्ठान गर्म रखने की क्षमता पर असर पड़ेगा. इसके अलावा अगर और यूक्रेनवासी युद्ध में शामिल होने के लिए अपना-अपना घर छोड़ते हैं, तो उनकी दुश्वारियों में इजाफा होना तय है. मैरी ड्युमोलिन के मुताबिक सितंबर में स्कूली कक्षाओं की फिर शुरुआत के बावजूद 40 फीसदी स्कूल बंद रहे. इसका यूक्रेनवासियों समेत बच्चों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ना तय है. सर्दी का मौसम सीमा के इस तरफ रह रहे यूक्रेनवासियों की कड़ी परीक्षा लेने वाली है.
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पश्चिमी प्रतिबंधों का रूस पर कोई खास असर नहीं
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि रूस लंबे युद्ध की कीमत चुकाने को तैयार है. यूक्रेन के सहयोगियों ने तेल और गैस आयात पर प्रतिबंध लगा रूसी अर्थव्यवस्था का गला घोंटने की कोशिश की. इन पश्चिमी प्रतिबंधों के आलोक में रूस में मौजूद कई पश्चिमी कंपनियां देश छोड़ने को मजबूर हुई, लेकिन इसका खास असर मॉस्को पर नहीं पड़ा. मैक्रो एडवाइजरी कंसल्टेंसी के क्रिस वीफर के मुताबिक, 'तेल, ईंधन कोयला और अन्य जरूरी वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंधों ने वैश्विक स्तर पर इनकी मांग बढ़ाने का काम किया. एक आम रूसी क्रीमिया पर रूसी कब्जे के दिनों से प्रतिबंधों के अभ्यस्त हो चुके हैं. क्रेमलिन सरकार ने तुर्की और अन्य एशियाई देशों के रूप में औद्योगिक पुर्जों और अन्य सामग्रियों के लिए नए स्रोत तलाश लिए हैं.' क्रिस वीफर की मानें तो बीते आठ सालों से जारी प्रतिबंधों ने रूसी अर्थव्यवस्था, उद्योग और लोगों को अभ्यस्त बना दिया है. दैनिक रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुओं को लेकर भी वे आत्मनिर्भर हैं. हालांकि प्रतिबंधों का असर आने वाले सालों में पता चलेगा, क्योंकि निवेश के रूप में आ रहे फंड को क्रेमलिन युद्ध में झोंक रहा है.
दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी जगह अड़े हैं
आती सर्दियों या 2023 में रूस-यूक्रेन संघर्ष की आंच कई देशों को चपेट में लेगी. ईंधन और खाद्यान्नों की वैश्विक स्तर पर बढ़ती कीमत रूस को भी प्रभावित करेंगी. हालांकि इसका भी यूक्रेन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ेगा. बड़ा प्रश्न तो यही है कि क्या तब भी यूरोपीय मदद यूक्रेन को मिलती रहेगी. ऐसे में एक समय ऐसा भी आ सकता है जब व्लादिमीर पुतिन ढीले पड़ चुके पश्चिमी नेताओं को अपनी शर्तों पर यूक्रेन से संघर्ष खत्म करने का दबाव बनाने को कह सकते हैं. एक विनाशकारी सैन्य आकलन गलत होने के बावजूद यूक्रेन की सेना के एकमुश्त ढह जाने की भी कोई संभावना नहीं है. इसके साथ ही कुछ लोग उम्मीद कर रहे हैं कि जेलेंस्की ऐसी किसी वार्ता को स्वीकार नहीं करेंगे, जिसमें यूक्रेन को क्रीमिया सहित रूस के हाथों खोए अपने सभी क्षेत्र वापस नहीं मिलते. यह वह पेंच है जो रूस-यूक्रेन युद्ध को लंबा खींच सकता है.
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लंबा युद्ध पुतिन की छवि कर सकता है प्रभावित
हां यदि यूक्रेन के सहयोगी देश मदद समेत हथियारों की आपूर्ति जारी रखते हैं. तो रूस को मिली सैन्य बढ़त धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगेगी. इससे पुतिन को रूस में मिल रह आमजन के समर्थन पर भी असर पड़ सकता है. मार्च 2024 में रूस में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं और ऐसी स्थिति में पुतिन की विरोधी ताकतों को एक होने का मौका मिल सकता है. दिमित्री मिनिक के मुताबिक, 'ऐसी स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए मार्शल लॉ या ऐसे किसी दमनकारी कदम उठाने पर पुतिन और सामाजिक संगठनों के बीच तनाव बढ़ेगा. संभव है कि लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ ताल ठोंक दे. मॉस्को या सैंट पीटर्सबर्ग में ऐसी किसी भी स्थिति को नियंत्रित करना मुश्किल होगा, क्योंकि वहां पश्चिम विरोधी भावनाओं उतनी प्रखरता के साथ सामने नहीं आती हैं.'
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