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जिंदगी- मौत का मामला है सीट बेल्ट, Road Safety में क्यों है बेहद जरूरी

बीते दिनों टाटा ग्रुप के पूर्व प्रमुख साइरस मिस्त्री की कार हादसे में मौत के बाद सीट बेल्ट चर्चा का विषय बन गया है. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि सीट बेल्ट की विकास यात्रा क्या है? इसके साथ ही सीट बेल्ट से जुड़े कानूनों के बारे में भी जानते हैं.

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Keshav Kumar
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सीट बेल्ट सवारियों की सुरक्षा की पहली जरूरत बन गई है( Photo Credit : News Nation)

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सड़क या यातायात सुरक्षा (Road Safety) के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण फोर व्हीलर वाहनों की सीट बेल्ट (Seat Belts) 1800 के दशक में अस्तित्व में आई. सबसे पहले एक अंग्रेजी विमानन प्रर्वतक जॉर्ज केली ने इसका आविष्कार किया था. हालांकि उनके निर्माण के पीछे मूल मकसद यह सुनिश्चित करना था कि पायलटों को उनके ग्लाइडर के अंदर रखा जा सके. पायलटों के लिए पहले बनाई गई सीट बेल्ट को सड़क पर आने में काफी समय लगा. 10 फरवरी 1885 तक पहली पेटेंट सीट बेल्ट अस्तित्व में नहीं आई थी. इसे एडवर्ड जे क्लैघोर्न द्वारा पर्यटकों को न्यूयॉर्क शहर की टैक्सियों में सुरक्षित रखने के लिए बनाया गया था. 

वह सीट बेल्ट की उत्पत्ति का प्रारंभिक चरण था. तब से सीट बेल्ट ने धीरे-धीरे हमारे दैनिक जीवन में अपनी जगह बना ली है. अब दुनिया भर में सड़कों पर यातायात के दौरान सीट बेल्ट सवारियों की सुरक्षा की पहली जरूरत बन गई है. भारत में बीते दिनों टाटा ग्रुप के पूर्व प्रमुख साइरस मिस्त्री की कार हादसे में मौत के बाद सीट बेल्ट अहम चर्चा का विषय बन गया है. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि सीट बेल्ट की विकास यात्रा क्या है? इसके साथ ही सीट बेल्ट से जुड़े कानूनों के बारे में भी जानते हैं.

आधुनिक 3-पॉइंट सीट बेल्ट

एक लंबे अंतराल के बाद साल 1959 में वोल्वो के कहने पर स्वीडिश इंजीनियर निल्स बोहलिन द्वारा वी-टाइप थ्री-पॉइंट सीट बेल्ट का आविष्कार करने के बाद इसका मौजूदा स्वरूप अस्तित्व में आया. उस समय तक सीट बेल्ट दो-बिंदु वाले लैप बेल्ट थे - जैसा कि अब हम हवाई जहाज में देखते हैं. इस प्राथमिक डिज़ाइन ने स्ट्रैप ड्राइवरों और यात्रियों को एक बकलस के साथ मदद की जिसे पेट पर बांधा गया था. इसकी तुलना में इनोवेटिव थ्री-पॉइंट सीट बेल्ट सड़क दुर्घटना की स्थिति में ड्राइवरों और यात्रियों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करता है. अपने डिजाइन के आधार पर यह सीट बेल्ट जो शरीर के ऊपरी और निचले दोनों हिस्सों को अधिक मजबूती से सुरक्षित करने में मदद करती है ने पिछले कुछ वर्षों में विश्व स्तर पर लाखों लोगों की जान बचाने में मदद की है.

कैसे सुरक्षा देती है सीट बेल्ट

सरल विज्ञान द्वारा सीट बेल्ट से मिलने वाली सुरक्षा से जुड़े तथ्य की पुष्टि  की जाती है. 100 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से यात्रा करने वाले एक वाहन में पिछली सीट के यात्री का वजन अगर लगभग 80 किलोग्राम हो और जो सीट बेल्ट की मदद से सुरक्षित नहीं है तो सड़क दुर्घटना की स्थिति में 30,864 जूल के भारी बल पर वह चोटिल हो जाता है. कहने की जरूरत नहीं है कि इतनी तेज गति उस यात्री और अन्य दोनों सहयात्री को वाहन के भीतर और बाहर गंभीर चोट पहुंचाने में सक्षम है.

जानलेवा चोट के तीन तरीके

साइरस मिस्त्री जैसी दुर्घटना में यानी पिछली सीट के यात्री के सीट बेल्ट से खुद को सुरक्षित करने में विफल रहने के दौरान ऐसे तीन तरीके हैं जिनसे उन्हें चोट लगने का खतरा होता है.

- पहले में वह स्थिति शामिल है जहां उनके शरीर वाहन के इंटीरियर के संपर्क में आते हैं. इस तरह की घटना उच्च प्रभाव वाली दुर्घटनाओं में होती है, जिसके दौरान यात्री के शरीर और वाहन के इंटीरियर के बीच टक्कर तेज गति से होती है जो गंभीर प्रभाव डाल सकती है.

- दूसरा तरीका यह है कि बिना सीट बेल्ट बांधे यात्री साथी यात्रियों से टकराते हैं. इससे सभी पक्षों को गंभीर शारीरिक क्षति होती है.

- तीसरा तरीका जिसमें बिना सीट बेल्ट बांधे पीछे की सीट के यात्रियों को चोट लगने या मौत होने का खतरा होता है, वह है वाहन की विंडस्क्रीन और खिड़कियों के माध्यम से उनको तेज चोट लगने की स्थिति. 

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

सड़क सुरक्षा और हादसे में लोगों की जान बचाने के क्षेत्र में साल 2008 से काम कर रही गैर सरकारी संस्था सेव लाइफ फाउंडेशन के संस्थापक और सीईओ पीयूष तिवारी का कहना है कि फाउंडेशन द्वारा की गई विभिन्न फोरेंसिक दुर्घटना जांच के दौरान दुर्घटनाग्रस्त वाहनों से काफी दूरी पर यात्रियों के शव पाए गए हैं. सीट बेल्ट नहीं पहनने की सूरत में एक यात्री आगे की ओर फेंका जा सकता है. क्योंकि दुर्घटना के प्रभाव के कारण तेज गति कार अचानक रुक जाती है. इसके चलते भयानक चोट लग सकती है और संभावित मौत हो सकती है.

सुरक्षा में एयरबैग का रोल

गाड़ियों में लगे एयरबैग आमतौर पर सीट बेल्ट के साथ मिलकर काम करते हैं. जनवरी 2019 में सेवलाइफ फाउंडेशन और निसा द्वारा जारी एक अध्ययन में दर्ज किया गया है कि भारत में केवल सात फीसदी लोग हमेशा पिछली सीट पर बैठते समय सीट बेल्ट पहनते हैं. वहीं 26 फीसदी लोग इसे कभी-कभी पहनते हैं. बाकी लोग इसे कभी नहीं पहनते हैं. जबकि आगे की सीट की तरह ही पिछली सीट के यात्रियों के लिए भी सीट बेल्ट बेहद सुरक्षित बताया जाता है.

सड़क हादसों के प्रमुख दो घटक

सड़क दुर्घटनाओं में दो प्राथमिक घटक होते हैं. पहला दुर्घटना का कारण और दूसरा चोट का कारण. पहला कारण मुख्य तौर पर ड्राइवर के व्यवहार, सड़क इंजीनियरिंग और वाहनों से संबंधित मुद्दों से संबंधित है. दूसरा उन कारणों से संबंधित है जो बाद में चोटों और मौतों के लिए मुख्य रूप से बुनियादी ढांचे और वाहन सुरक्षा मुद्दों के दायरे में आते हैं. आज, अधिकांश वाहनों में सीट बेल्ट एक मानक विशेषता है. क्योंकि वे एक आवश्यक तत्व है जो गंभीर चोटों और मौतों को रोकने की दिशा में काम करते हैं.

क्या कहता है देश का कानून

दुनियाभर के देशों समेत भारतीय कानून में भी सीट बेल्ट पहनने की आवश्यकता होती है. न केवल आपकी सुरक्षा के लिए, बल्कि दूसरी सवारियों की सुरक्षा के लिए एक बिना सीट बेल्ट लगाए चलने पर पाबंदी है. क्योंकि हादसे की सूरत में बगैर सीट बेल्ट वाले वाले यात्री दूसरों से टकरा सकते हैं और बाकी यात्रियों को भी गंभीर रूप से घायल कर सकते हैं. केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 का नियम 138(3) पीछे के यात्रियों के लिए भी सीट बेल्ट पहनना अनिवार्य करता है. इसके अलावा, मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम द्वारा संशोधित, 2019) की धारा 194बी (1) के अनुसार चालक या यात्रियों द्वारा सीट-बेल्ट नहीं पहनने पर एक हजार रुपये के जुर्माने के साथ दंडनीय बनाया गया है.

नियमों का अनुपालन और प्रवर्तन

दंडात्मक प्रावधानों के बावजूद पिछली सीट के यात्रियों के बीच कानून के अनुपालन का स्तर बेहद कम है. वास्तव में, अधिकांश लोग विधायी बल होने के बावजूद पीछे की सीट बेल्ट को अनिवार्य करने वाले इस नियम से अनजान हैं. जहां तक ​​प्रवर्तन का संबंध है, पीछे की सीट बेल्ट की तुलना में आगे की सीट बेल्ट के उपयोग पर अधिक जोर दिया जाता है. उस अर्थ में, पीछे की सीट बेल्ट का उपयोग पर्याप्त जानकारी की कमी के साथ-साथ मजबूत प्रवर्तन दोनों से ग्रस्त है.

सड़क पर जीवन रक्षक नुस्खे

सड़क दुर्घटनाओं पर वर्षों से की गई जांच और सर्वे में पाया गया है कि हादसों के पीछे लगातार तेज गति एक प्रमुख कारण रहा है. वहीं सीट बेल्ट का उपयोग न करना चोट और मौत का एक प्रमुख कारण बनकर उभरा है. इसलिए सड़क सुरक्षा से जुड़े अधिकारियों के लिए ऐसी अनावश्यक चोटों और मौतों को रोकने के लिए पीछे की सीट बेल्ट के उपयोग को सख्ती से लागू करना सुनिश्चित करना अनिवार्य है. सामने की सीट बेल्ट की तरह ही रियर सीट बेल्ट रिमाइंडर के साथ पूरे बोर्ड में मानक अभ्यास किया जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें - साइरस मिस्त्री की मौत, देश में फिर बढ़ी जानलेवा सड़क हादसों की चिंता

जागरूकता बढ़ाने की जरूरत

सड़क दुर्घटनाओं की समस्या के समाधान के लिए स्वच्छ भारत मिशन के स्तर पर व्यापक जागरूकता अभियान की भी आवश्यकता है. हाल के दिनों में रिकॉर्ड संख्या में देखी गई सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों और चोटों की रोकथाम के लिए इनके संयोजन की आवश्यकता है. गाड़ियों की आगे और पीछे दोनों सीटों पर बेल्ट का इस्तेमाल अनिवार्य तौर पर करने से बड़े पैमाने पर ऐसी दुर्घटनाएं काफी हद तक टाली जा सकती हैं. साथ ही कई लोगों की जान भी बचाई जा सकती है.

HIGHLIGHTS

  • 10 फरवरी 1885 तक पहली पेटेंट सीट बेल्ट अस्तित्व में नहीं आई थी
  • यातायात के दौरान सीट बेल्ट सवारियों की सुरक्षा की पहली जरूरत
  • एयरबैग भी आमतौर पर सीट बेल्ट के साथ मिलकर ही सुरक्षा करते हैं
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