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Red Planet Day 2022: 28 नवंबर को क्यों मनाते हैं लाल ग्रह दिवस, जानें मंगल से जुड़े रोचक तथ्य

मंगल ग्रह का सबसे बड़ा ज्वालामुखी ओलंपस मॉन्स वास्तव में सौर मंडल का सबसे ऊंचा पर्वत भी है. मंगल का यह विशालकाय पर्वत लगभग 25 किमी लंबा और 600 किमी व्यास का है. अंतरिक्ष विज्ञानियों का मानना है कि ओलंपस मॉन्स अरबों साल पहले बना हो सकता है.

Updated on: 28 Nov 2022, 05:04 PM

highlights

  • 28 नवंबर 1964 को मंगल के लिए मेरिनर 4 किया गया था लांच
  • मेरिनर 4 लांच की याद में हर साल रेड प्लेनेट डे मनाया जाता है
  • मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाओं की तलाश अर्से से है जारी

नई दिल्ली:

सूर्य (Sun) से चौथे ग्रह मंगल (Mars) को उसकी मिट्टी के रंग के कारण लाल ग्रह (Red Planet) भी कहा जाता है. पृथ्वी का यह पड़ोसी ग्रह संभवतः किसी दिन मानव जाति का स्वागत करने का आकर्षण और क्षमता भी रखता है. इंसान लंबे समय से मंगल ग्रह के रहस्यों का पता लगाने की कोशिश कर रहा है. मंगल ग्रह पर पहुंचने वाले पहले अंतरिक्ष यान मेरिनर 4 के 28 नवंबर 1964 को प्रक्षेपण की याद में हर साल रेड प्लेनेट डे यानी लाल ग्रह दिवस मनाया जाता है. मेरिनर 4 अंतरिक्ष यान का निर्माण उड़ान के दौरान डाटा एकत्र करने और उस जानकारी को वापस पृथ्वी पर भेजने के लिए किया गया था. अंतरिक्ष (Space) यान ने लगभग आठ महीने की यात्रा के बाद 14 जुलाई 1965 को लाल ग्रह का फ्लाई-बाय पूरा किया था. रोमन सभ्यता में युद्ध के देवता के नाम पर इस ग्रह का नाम मंगल रखा गया था. मंगल का वातावरण हल्का है, जो मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) से बना है. मंगल ग्रह अपनी खोज के सदियों बाद भी इंसानों के आकर्षण का केंद्र है. ऐसे में इस खास दिन नजर डालते हैं मंगल ग्रह से जुड़ी कुछ रोचक बातों पर.

मंगल पर है सौर मंडल का सबसे ऊंचा पर्वत
मंगल ग्रह का सबसे बड़ा ज्वालामुखी ओलंपस मॉन्स वास्तव में सौर मंडल का सबसे ऊंचा पर्वत भी है. मंगल का यह विशालकाय पर्वत लगभग 25 किमी लंबा और 600 किमी व्यास का है. अंतरिक्ष विज्ञानियों का मानना है कि ओलंपस मॉन्स अरबों साल पहले बना हो सकता है. हालांकि ज्वालामुखी लावा के हालिया सबूत संकेत देते हैं कि यह अभी भी सक्रिय हो सकता है. साथ ही अंतरिक्ष विज्ञानियों का मानना है कि मंगल ग्रह का भविष्य में अपना एक परिक्रमा करने वाला वलय भी हो सकता है. इसके पीछे वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि मंगल का सबसे बड़ा और सबसे रहस्यमयी चंद्रमा फोबोस अंततः गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से खंड-खंड हो जाएगा. फिर इसका मलबा एक वलय का निमार्ण करेगा, जो धीरे-धीरे एक स्थिर कक्षा में चट्टानों का वलय बन बस जाएगा. ठीक वैसे ही जैसे शनि और यूरेनस ग्रह के चारों ओर एक चट्टानी वलय है.

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मंगल का पृथ्वी के समान है भूभाग
मंगल ग्रह से जुड़ी एक दिलचस्प बात यह भी है कि इसका व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग आधा है. फिर भी इसकी सतह का क्षेत्रफल पृथ्वी की शुष्क भूमि के लगभग बराबर ही है. इसके अलावा मंगल की सतह का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की तुलना में सिर्फ 37 प्रतिशत है. इसका अर्थ यह हुआ कि आप मंगल ग्रह पर पृथ्वी की तुलना में लगभग तीन गुना ऊंची सहज छलांग लगा सकते हैं.

मंगल के कुछ हिस्से पृथ्वी पर भी पहुंच चुके हैं
बड़े क्षुद्रग्रह जैसे आकाशीय पिंड के टकराने से समय के साथ-साथ ग्रहों में धमाके भी होते रहते हैं. टक्कर अगर भीषण होती है, तो इसके प्रभाव से ग्रह के भारी मात्रा में टुकड़े अंतरिक्ष में बहुत वेग के साथ प्रक्षेपित होते हैं, जिन्हें अंतरिक्ष विज्ञान की भाषा में इजेक्टा कहते हैं . ऐसे में अतीत में मंगल ग्रह के कुछ टुकड़े वास्तव में पृथ्वी पर भी गिर चुके हैं. 'मार्टियन उल्कापिंड' करार दिए गए चट्टानों के ये छोटे टुकड़े चमत्कारिक रूप से पृथ्वी तक पहुंचने में कामयाब रहे हैं.

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मंगल की जमी बर्फ कभी तरल भी थी
जीवन के लिए आवश्यक चीजों में से एक पानी है. माना जाता है कि मंगल ग्रह पर पानी है. जर्नल नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित एक अध्ययन के निष्कर्ष ने इसके पहले सबूत की पुष्टि की है. इसके तहत रडार के अलावा अन्य तकनीकों से प्राप्त डाटा बताते हैं कि मंगल के दक्षिणी ध्रुव के नीचे तरल पानी है.