logo-image

शेख हसीना की दिल्ली यात्रा, बांग्लादेश में आम चुनाव से पहले बड़ी कवायद

पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) अपने चार दिवसीय भारत यात्रा पर नई दिल्ली आई हुई हैं. भारत से नजदीकी बढ़ाना बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के लिए बड़ी जरूरत बन गई है.

Updated on: 07 Sep 2022, 03:04 PM

highlights

  • बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरवाद हमेशा से चिंता का बड़ा कारण
  • पड़ोसी बांग्लादेश में दिसंबर 2023 में आम चुनाव होने वाले हैं
  • बांग्लादेश में श्रीलंका-पाकिस्तान जैसी माली हालत की अटकलें

नई दिल्ली:

पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Bangladesh PM Sheikh Hasina) अपने चार दिवसीय भारत यात्रा पर नई दिल्ली आई हुई हैं. भारत में अपनी यादें ताजा करने के साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के साथ मुलाकात के दौरान कई द्विपक्षीय समझौते भी किए हैं. बांग्लादेश ने दुनिया में अपने चौथे सबसे बड़े निर्यातक देश भारत के साथ व्यापार, तीस्ता जल-बंटवारे में सहयोग और कनेक्टिविटी और रक्षा जैसे बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्रों में समझौते के साथ ही अन्य कई मुद्दों पर बातचीत को आगे बढ़ाया है.

बांग्लादेश ने दक्षिण एशिया में अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार भारत के साथ और ज्यादा कदमताल की है. आंकड़ों के मुताबिक पांच साल में दोनों देशों का आपसी व्यापार 9 अरब डॉलर से बढ़कर 18 अरब डॉलर हो गया है. इसके अलग अंतरराष्ट्रीय संबंधों के कई जानकार शेख हसीना के दिल्ली दौरे को बांग्लादेश में अगले साल (2023) में होने वाले आम चुनाव से पहले की बड़ी कवायद के तौर पर भी देख रहे हैं. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि भारत से नजदीकी बढ़ाना क्यों बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के लिए बड़ी जरूरत बन गई है.

भारत से जुड़ीं बचपन की यादें

शेख हसीना ने कई बार जाहिर किया है कि वह भारत से उतनी ही परिचित हैं जितना कि कोई भी आम बंगाली होगा. बांग्लादेश निर्माण के चार साल बाद 1975 में अपने पिता और वहां के सबसे बड़े नेता शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद वह दिल्ली के पंडारा रोड में अपने बच्चों के साथ छुप कर रहती थीं. उस दौरान उन्हें दिल्ली में भरपूर सहायता मिली. साल 2009 से ही बांग्लादेश की सत्ता पर काबिज शेख हसीना अपने उन पुराने दिनों को कृतज्ञता के साथ से याद करती हैं. दिल्ली दौरे पर आईं बांग्लादेशी पीएम शेख हसीना के साथ उनके कई मंत्री, सलाहकार, राज्य मंत्री, सचिव और वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं.

आम चुनाव में नैतिक समर्थन

बांग्लादेश में दिसंबर 2023 में चुनाव होने वाले हैं. वहां के कट्टरपंथी इस्लामी दल और समूह शेख हसीना सरकार को हिंसा के जरिए उखाड़ फेंकने की धमकी दे रहे हैं. ऐसे समूह और दल 1975 वाले मार्शल लॉ कानून का हवाला दे रहे हैं. जिस देश में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत नहीं हो पाई हैं, वहां एक धर्मनिरपेक्ष सरकार के सामने ऐसी खुली धमकियों से राजनीतिक चुनौती और ज्यादा गंभीर हो जाती है. इसलिए खासकर आम चुनाव के दौरान एक युवा राष्ट्र की प्रमुख संस्थाओं को पड़ोसी देश भारत के नैतिक समर्थन की जरूरत है. 

कट्टर इस्लामिक ताकतों की धमकी

बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरवाद हमेशा से चिंता का एक बड़ा कारण बना हुआ है. अल्पसंख्यक हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा की भयानक वारदातों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार संगठनों की निगाह बांग्लादेश पर लगातार बनी हुई है. साथ ही वहां के विपक्षी दलों, बांग्लादेश नेशनल पार्टी (BNP) और जमात-ए-इस्लामी ने चुनावों का सामना करने के बजाय अवामी लीग सरकार को सशस्त्र रूप से हिंसा के माध्यम से उखाड़ फेंकने की धमकी दी है. कट्टरपंथी तत्वों ने बांग्लादेश में 1975 दोहराने तक की अपील कर दी है.

भारत विरोधी समूहों पर भी कार्रवाई

चुनावी साल में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना कम से कम आर्थिक विकास के मामले में कट्टरपंथी दलों से एक कदम आगे दिखना चाहती हैं.  शेख हसीना की नेतृत्व वाली आवामी लीग सरकार तेरह साल से लगातार स्थानीय कट्टरपंथियों और युद्ध अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है. उन भारत विरोधी ताकतों को वह बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के लिए खतरा बताती रही हैं. शेख हसीना ने बांग्लादेश से संचालित होने वाले भारतीय उग्रवादियों पर भी कार्रवाई की. 

सेना- इंटेलिजेंस में भी कट्टरता की पैठ

बांग्लादेश की सेना और डायरेक्टरेट जनरल फोर्सेज इंटेलिजेंस में पूर्वी पाकिस्तान से विरासत में मिली इस्लामी कट्टरता दिखाई पड़ती है. इस मुश्किल के बावजूद पीएम शेख हसीना ने कट्टर इस्लामिक समूहों के खिलाफ कदम उठाने की कोशिश की है. बांग्लादेश के विदेश मंत्री ए के अब्दुल मोमेन ने कथित तौर पर कहा था कि उन्होंने भारत सरकार से पीएम हसीना को सत्ता में बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करने का अनुरोध किया है. उन्होंने कहा था, “मैं भारत गया और कहा कि शेख हसीना को सत्ता में बनाए रखना है.” हालांकि बाद में वह इस बयान से मुकर भी गए थे.

बांग्लादेश के सामने आर्थिक चुनौतियां

बांग्लादेश ने कुछ समय पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 4.5 बिलियन डॉलर की मदद लेने का फैसला किया. अंतरराष्ट्रीय संबंधों और आर्थिक विशेषज्ञों ने तब संदेह जताया था कि ऐसा करने से बांग्लादेश भी श्रीलंका जैसी हालात का सामना कर सकता है या पाकिस्तान के रास्ते पर जा सकता है. क्योंकि बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार एक साल पहले के 45.7 अरब डॉलर से घटकर 27 जुलाई को 39.48 अरब डॉलर हो गया है. जून को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में बांग्लादेश का व्यापार घाटा बढ़कर रिकॉर्ड 33.3 अरब डॉलर हो गया.

शेख हसीना ने अटकलों पर दी सफाई

आर्थिक संकट की अटकलों पर शेख हसीना ने कहा था, “हमारी अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है, हालांकि हमने कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध का सामना किया है. फिर भी हमने बहुत ही कम ऋण लिया हुआ है. मुझे लगता है कि हम श्रीलंका जैसी स्थिति का सामना नहीं करेंगे.” पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश के चौंकाने वाला आर्थिक विकास दर्ज किया है. पूर्व-कोविड-19 युग में 7-8 प्रतिशत जीडीपी के साथ सफल आर्थिक विकास के लिए बांग्लादेश ने तारीफ भी बटोरी थी. उसका सकल घरेलू उत्पाद बढ़कर 416 बिलियन अमरीकी डालर हो गया था. यह प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद भारत से भी अधिक है.

बांग्लादेश की मदद में भारत हमेशा आगे

कोरोना महामारी के बाद और रूस-यूक्रेन में जारी युद्ध के दौरान सप्लाई चेन बाधित होने से बांग्लादेश के विकास पर बुरा असर पड़ा है. बांग्लादेश अब इस नुकसान की भरपाई के लिए संघर्ष कर रहा है. वह दूसरे देशों और संस्थाओं से बहुपक्षीय वित्तीय सहायता चाहता है. इसके बरअक्श भारत पहले ही बांग्लादेश को आगामी 2022-23 (अप्रैल-मार्च) में 300 करोड़ रुपये की वार्षिक बजटीय वित्तीय सहायता की घोषणा कर चुका है. यह मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 की तुलना में 200 करोड़ रुपये से अधिक है.

ये भी पढ़ें - जिंदगी- मौत का मामला है सीट बेल्ट, Road Safety में क्यों है बेहद जरूरी

पीएम मोदी की 'पड़ोसी प्रथम' से सहमति

पीएम नरेंद्र मोदी और शेख हसीना के बीच पहली मुलाकात 2015 में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हुई थी. इसके बाद से दोनों अब तक 12 बार मुलाकात कर चुके हैं.  शेख हसीना ने आखिरी बार कोविड महामारी से पहले साल 2019 में भारत का दौरा किया था. भारत के साथ लंबी और खुली सीमा को परिभाषित करने की उनकी दृढ़ प्रतिज्ञा भारत में मोदी सरकार के नेबर्स फर्स्ट यानी सबसे पहले पड़ोसी वाली नीति से भी मेल खाती है. इस वजह से ही दोनों देशों के बीच जमीन का आदान-प्रदान हुआ. भारतीय संसद ने संविधान का 100वां संशोधन पास किया. 6 जून, 2015 को समझौते को मंजूरी मिलने के बाद भारत को 51 बांग्लादेशी एन्क्लेव (7,110 एकड़) मिले. वहीं, बांग्लादेश को बांग्लादेशी मुख्य भूमि में 111 भारतीय एन्क्लेव (17,160 एकड़) मिले थे.