Congress Trouble: सिर्फ सिख दंगे ही नहीं, अयोध्या मसले पर दंगों का दाग भी है कांग्रेस के दामन पर... जानें
मेरठ की एक जिला अदालत ने विगत दिनों मलियाना गांव में 23 मई 1987 को हुए नरसंहार के सभी 41 अभियुक्तों को बरी कर दिया. इन दंगों में भीड़ ने 68 मुसलमानों की हत्या कर दी थी. कथित तौर पर भीड़ में पीएसी के कई जवान भी शामिल थे.
highlights
- राजीव गांधी के शासनकाल में खोला गया था अयोध्या के विवादित ढांचे का ताला
- इस फैसले से लगभग तीन दर्जन शहरों और कस्बों में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे
- हाशिमपुरा और मलियाना नरसंहार सांप्रदायिक तनाव के चरम के दौरान हुए थे
नई दिल्ली:
1949 से सीलबंद ताले में बंद चल रहे अयोध्या (Ayodhya) के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादास्पद ढांचे (Ram Mandir) को 1 फरवरी 1986 को स्थानीय प्रशासन ने खोल दिया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की हामी पर स्थानीय प्रशासन ने फैजाबाद जिला अदालत को आश्वस्त किया था कि विवादास्पद ढांचे का ताला खोलने से कानून व्यवस्था की कतई कोई समस्या पैदा नहीं होगी. यह अलग बात है कि इस फैसले से देश भर के लगभग तीन दर्जन शहरों और कस्बों में सांप्रदायिक दंगे (Communal Riots) भड़क उठे. सरकारी आंकड़ों में एक वर्ष के दौरान अलग-अलग सांप्रदायिक दंगों में लगभग 180 लोग मारे गए. उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह पर बार-बार हिंदू दंगाइयों के प्रति नरम होने का आरोप लगाया जाता रहा. हालांकि इन आरोपों को उन्होंने बेतुका करार ही दिया. मेरठ शहर के पड़ोस में हाशिमपुरा नरसंहार के एक दिन बाद मलियाना हत्याकांड हुआ, जिसमें पीएसी (PAC) कर्मियों ने हिरासत में कम से कम 38 मुसलमानों को गोली मार दी थी. अक्टूबर 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने पीएसी के 16 पूर्व जवानों को टार्गेट किलिंग के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. हालांकि मलियाना अभियुक्तों के मामले की तरह एक ट्रायल कोर्ट ने 2015 में हाशिमपुरा के दोषियों को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि उनका दोष संदेह से परे स्थापित नहीं हुआ है.
1986 में विवादित अयोध्या ढांचे का ताला खुलते ही भड़के थे सांप्रदायिक दंगे
22-23 मई को यूपी प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (पीएसी) द्वारा हाशिमपुरा और मलियाना में नरसंहार के बाद अकेले मेरठ से लगभग 2,500 समेत राज्य भर में हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया था. सांप्रदायिक दंगों से हतप्रभ और किंकर्तव्यविमूढ़ प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने वीर बहादुर सिंह को दिल्ली तलब कर लिया था. कई अन्य घटनाक्रमों के बाद अंततः वीर बहादुर सिंह को लगभग एक वर्ष बाद अपने सीएम पद का बलिदान देना पड़ा था. वीर बहादुर सिंह सरकार में राज्य मंत्री और गाजीपुर के नेता सुरेंद्र सिंह के मुताबिक, पीएसी के खिलाफ कई गंभीर आरोप थे. हालांकि यूपी पुलिस सांप्रदायिक दंगों से बहुत प्रभावी ढंग से निपटी थी अन्यथा हिंदू-मुस्लिम हिंसा और भी स्थानों पर फैल जाती. इन दंगों के कारण ही प्रधानमंत्री राजीव गांधी और गृह मंत्री बूटा सिंह यूपी के तत्कालीन सीएम वीर बहादुर सिंह से खासे नाराज थे.
यह भी पढ़ेंः Donald Arraignment वास्तव में लाया 'अच्छे दिन', डोनाल्ड ट्रंप की लोकप्रियता में जबर्दस्त इजाफा, जानें
महीनों से चला आ रहा था सांप्रदायिक तनाव
हाशिमपुरा और मलियाना नरसंहार ऐसे समय हुआ जब मेरठ में फरवरी 1986 में बाबरी मस्जिद के ताले को फिर से खोलने से पनपा सांप्रदायिक तनाव चरम पर था. 18 अप्रैल 1987 को मेरठ में नौचंदी मेले के दौरान एक स्थानीय सब-इंस्पेक्टर को ड्यूटी के दौरान पटाखा लग गया. उसने पटाखे से जलते ही फायरिंग कर दी, जिसमें दो मुसलमान मारे गए. इसके बाद पुरवा शेखलाल में एक हिंदू परिवार के मुंडन कार्यक्रम स्थल के करीब मुसलमानों का हाशिमपुरा चौराहे के पास एक धार्मिक उपदेश कार्यक्रम हो रहा था. धार्मिक उपदेश के दौरान गाने बजाने पर बहस हुई और इससे झगड़ा हुआ और फिर दंगे भड़क उठे. कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया और पूरे शहर में 400 से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया गया. उस वक्त स्थानीय पुलिस की मदद के लिए पीएसी की कई कंपनियों को तैनात किया गया था. इसके बावजूद तनाव और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं जारी रहीं.
हाशिमपुरा-मलियाना हत्याकांड
19 मई 1987 की रात को स्थिति बहुत बिगड़ गई, जब लिसारीगेट, लाल कुर्ती, सदर बाजार, सिविल लाइंस के कुछ हिस्सों और मेडिकल कॉलेज सहित कई थाना क्षेत्रों में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे. हाशिमपुरा नरसंहार में कथित तौर पर इस क्रम में 22 मई को पीएसी ने 42-45 मुस्लिम पुरुषों को पकड़ा और एक ट्रक में भरकर ले गई. पुरुषों को .303 राइफलों से गोली मार दी गई और उनके शवों को गंगनहर (नहर) और हिंडन नदी में फेंक दिया गया. मेरठ से लगभग 10 किमी पश्चिम में स्थित मलियाना गांव की उस समय आबादी 35,000 थी, जिसमें लगभग 5,000 मुस्लिम भी शामिल थे. हाशिमपुरा हत्याकांड के अगले दिन पीएसी कर्मियों के साथ एक भीड़ गांव में जाहिरा तौर पर हथियारों और अन्य हथियारों की तलाश के लिए पहुंची. मलियाना के मुस्लिम निवासियों ने उस समय आरोप लगाया था कि पीएसी के जवानों ने बिना किसी कारण मुस्लिम पुरुषों, महिलाओं और बच्चों पर गोलियां चलाईं. हालांकि अधिकारियों ने उस समय दावा किया गया छापे और तलाशी अभियान के विरोध में हिंसक प्रतिरोध और छतों से गोलीबारी हो रही थी इसलिए पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी.
राजीव गांधी सरकार को राम मंदिर आंदोलन और भ्रष्टाचार के आरोप ले डूबे
बतौर प्रधानमंत्री राजीव गांधी के लिए वह बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण समय था. कांग्रेस कई मोर्चों पर संकट से जूझ रही थी. इसमें भी अयोध्या में राम मंदिर के लिए तेज और मजबूत हो रहे देशव्यापी जन आंदोलन से निपटना और पार्टी के भीतर दिग्गज नेताओं के अहं का टकराव शामिल था. जैसे-जैसे सरकार पर भ्रष्टाचार का दाग गहराता गया राजीव गांधी की मुश्किलें बढ़ती गईं. विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अप्रैल 1987 में राजीव गांधी के मंत्रिमंडल और फिर बाद में राज्यसभा से भी इस्तीफा दे दिया. वह अगले वर्ष इलाहाबाद से लोकसभा उपचुनाव लड़ें और कांग्रेस उम्मीदवार सुनील शास्त्री को हराकर संसद में पहुंचे. उन दिनों यूपी में कांग्रेस ब्राह्मण और ठाकुर गुटों में बुरी तरह बंट गई थी. ऐसे में सितंबर 1985 में राजीव गांधी को कुमाऊं के एक ब्राह्मण नेताऔर सीएम नारायण दत्त तिवारी को गोरखपुर के एक ठाकुर नेता वीर बहादुर सिंह से बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा था. वीर बहादुर सिंह के बेटे फतेह बहादुर सिंह कांग्रेस, राकांपा और फिर बसपा से होते हुए फिलहाल भाजपा के विधायक हैं. तत्कालीन उत्तर प्रदेश विधानसभा में लोक दल (बी) के मुलायम सिंह यादव और भाजपा के कल्याण सिंह जैसे नेताओं ने सांप्रदायिक दंगों को लेकर वीर बहादुर सिंह की सरकार पर तीखा हमला बोल रखा था. मेरठ समेत राज्य भर के 35 से ज्यादा जिले सांप्रदायिक आग में जल रहे थे. मुख्यमंत्री पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था. राजीव के चचेरे भाई अरुण नेहरू, जो शुरुआत में सिंह के समर्थन में थे अंततः तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ हो गए थे. मेरठ हिंसा से पहले इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुए दंगों ने वीर बहादुर सिंह और अमिताभ बच्चन के बीच दरार पैदा कर दी थी. अमिताभ बच्चन उस समय प्रधानमंत्री के करीबी दोस्त और इलाहाबाद से लोकसभा में कांग्रेस के सांसद थे.
Don't Miss
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
-
Shah Rukh Khan Son: बेटे अबराम के साथ KKR को सपोर्ट करने पहुंचे शाहरुख, मैच से तस्वीरें वायरल
-
Rashmi Desai Fat-Shamed: फैट-शेमिंग करने वाले ट्रोलर्स को रश्मि देसाई ने दिया करारा जवाब, कही ये बातें
-
Sonam Kapoor Postpartum Weight Gain: प्रेगनेंसी के बाद सोनम कपूर का बढ़ गया 32 किलो वजन, फिट होने के लिए की इतनी मेहनत
धर्म-कर्म
-
Vikat Sanakashti Chaturthi 2024: विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत कब? बस इस मूहूर्त में करें गणेश जी की पूजा, जानें डेट
-
Shukra Gochar 2024: शुक्र ने किया मेष राशि में गोचर, यहां जानें किस राशि वालों पर पड़ेगा क्या प्रभाव
-
Buddha Purnima 2024: कब है बुद्ध पूर्णिमा, वैशाख मास में कैसे मनाया जाएगा ये उत्सव
-
Shani Shash Rajyog 2024: 30 साल बाद आज शनि बना रहे हैं शश राजयोग, इन 3 राशियों की खुलेगी लॉटरी