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Meghalaya Assembly Elections 2023: बहुकोणीय लड़ाई में आमने-सामने रहेंगे पुराने प्रतिद्वंदी, समझें समीकरण

हालांकि आधा दर्जन पार्टी वाले सत्तारूढ़ मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस के भीतर अशांति का मतलब है कि गठबंधन के सभी घटक अलग-अलग चुनाव लड़ने (Assembly Elections 2023) की मानसिक स्तर पर तैयारी भी कर रहे हैं.

Updated on: 20 Jan 2023, 10:38 AM

highlights

  • सत्तारूढ़ मेघालय डेमोक्रेटिक एलांयस में फूट से ऊहापोह
  • कांग्रेस का तो कोई नामलेवा नहीं, संगमा टीएमसी के हो चुके
  • सत्तारूढ़ गठबंधन की घटक बीजेपी को हो सकता है फायदा

नई दिल्ली:

मेघालय (Meghalaya) में चुनाव प्रचार मुख्यमंत्री कोनराड संगमा (Conrad Sangma) और उनके पुराने प्रतिद्वंदी मुकुल संगमा (Mukul Sangma) के बीच मुकाबले की शक्ल ले सकता है. हालांकि अंतर इतना है कि इस बार मुकुल संगमा राज्य की राजनीति में नई प्रवेशी तृणमूल कांग्रेस (TMC) का प्रतिनिधित्व कर रहा है, न कि कांग्रेस का.  60 सदस्यीय विधानसभा में कोनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के पास वर्तमान में 21 सीटें हैं और वह 2013 के बाद से राज्य में सत्ता बरकरार रखने वाली पहली पार्टी बनने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर निगाह केंद्रित करे है. मेघालय में 27 फरवरी को एक चरण में ही वोटिंग (Meghalaya Assembly Elections 2023) होगी, जिसके परिणाम 2 मार्च को आएंगे. हालांकि आधा दर्जन पार्टी वाले सत्तारूढ़ मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस के भीतर अशांति का मतलब है कि गठबंधन के सभी घटक अलग-अलग चुनाव लड़ने (Assembly Elections 2023) की मानसिक स्तर पर तैयारी भी कर रहे हैं. 

सत्तारूढ़ गठबंधन में आपसी अविश्वास से बिगड़ न जाए खेल
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, 'यूं तो सहयोगी एक-दूसरे का सम्मान करते हैं, लेकिन वे (एनपीपी) न तो हमारी सलाह मानते हैं और न ही हमारी रणनीति. वे अपने दम पर गए. यहां तक ​​कि हाल ही में चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा भी कर दी. हमने अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया.' इसके उलट आलोचना को खारिज करते हुए कॉनराड संगमा ने भाजपा पर राज्य के विकास में बाधा डालने का आरोप लगाया. सत्ता विरोधी लहर को खारिज करते हुए एनपीपी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डब्ल्यू खारलुखी ने कहा, 'सत्ता के प्रति मजबूत समर्थक भावना है. मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि एनपीपी ने नवंबर 2021 के उपचुनावों में तमाम भविष्यवाणियों को धता बताते हुए सभी तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी.' गठबंधन के छोटे घटक जैसे यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी), हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (एचएसपीडीपी), पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीएफ) भी चुनावी समर में अकेले उतरने पर अडिग हैं. 

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कांग्रेस का चुनाव पूर्व ही सूपड़ा साफ हो चुका है
पीडीएफ के अध्यक्ष राज्य मंत्री बंटीडोर लिंगदोह आश्वस्त हैं कि आसन्न विधानसभा चुनाव में पार्टी अच्छा प्रदर्शन करेगी. लिंगदोह ने कहा, 'हमें विश्वास है कि लोगों ने हमारी सरकार के कामकाज को गहराई से देखा है. ऐसे में मतदाता 2018 की तुलना में पीडीएफ के लिए इस बार और अधिक वोट करेंगे.' 2018 विधानसभा चुनाव में मुकुल संगमा के नेतृत्व में कांग्रेस 21 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जो बहुमत से कुछ ही कदम दूर रह गई थी. फिर भी एनपीपी ने 19 सीटें जीतते हुए सरकार बनाने में सफलता हासिल की. एनपीपी को यूडीपी (8), एचएसपीडीपी (2), पीडीएफ (4)  बीजेपी (2) समेत एक निर्दलीय विधायक का समर्थन था. तब से आठ सांसद एनपीपी में शामिल हो चुके हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस राज्य की राजनीति से साफ हो चुकी है. वर्तमान विधानसभा में उसका एक भी विधायक नहीं है. गौरतलब है कि नवंबर 2021 में मुकुल संगमा के नेतृत्व में 12 विधायक कांग्रेस पार्टी छोड़कर टीएमसी में शामिल हो गए थे. शेष कांग्रेस सदस्यों ने एनपीपी को समर्थन देने के लिए पार्टी छोड़ दी थी.

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गठबंधन में फूट का बीजेपी को मिल सकता है फायदा
मुकुल संगमा कहते हैं, 'विकास की कमी और प्रमुख कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में कथित अनियमितताएं सरकार के खिलाफ मुख्य मुद्दे हैं. हजारों खाली पद नहीं भरे गए हैं. पिछली सरकार द्वारा की गई सभी पहलों पर पानी फिर गया है.'  यह अलग बात है कि राजनीतिक चिंतक और नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी (एनईएचयू) के पूर्व प्रो-वाइस चांसलर यूजीन थॉमस के मुताबिक, 'जयंतिया, खासी और गारो हिल्स रूपी तीन मुख्य क्षेत्रों में भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा था. अगर मुकुल संगमा और उनके दोस्त कांग्रेस में बने रहते, तो एनपीपी के सत्ता में वापस आने का कोई मौका नहीं था. हालांकि कांग्रेस में टूट और टीएमसी के जन्म के साथ अब चुनाव परिणामों का अनुमान लगाना कहीं आसान है. भाजपा इस बार विधानसभा चुनाव परिणामों में अपनी स्थिति में सुधार कर सकती है.'