logo-image

Uttarakhand Hot Seat: लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड की दो हॉट सीट, दिलचस्प है यहां का इतिहास

Uttarakhand Hot Seat: लोकसभा चुनाव के बीच उत्तराखंड की दो हॉट सीट हरिद्वार और पौड़ी गढ़वाल, दिलचस्प राह है यहां का इतिहास, कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी ने हासिल की है रोचक जीत.

Updated on: 12 Apr 2024, 02:17 PM

New Delhi:

Uttarakhand Hot Seat: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर धीरे-धीरे सियासी पारा हाई होता जा रहा है. पहले चरण के लिए मतदान का वक्त भी नजदीक आ गया है. 19 अप्रैल को 102 सीट पर वोट पड़ने वाले हैं. यह वोट देश के 21 राज्यों में पड़ेंगे. इनमें से एक राज्य है उत्तराखंड. पहाड़ की सर्द हवाएं भी इन दिनों राजनीतिक हलचलों से गर्म हो चली हैं. राजनीतिक दलों के स्टार प्रचार यहां पर तूफानी प्रचार में जुटे हैं. हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उत्तराखंड में पार्टी प्रत्याशियों के लिए चुनावी रैलियों को संबोधित किया. 

वैसे तो उत्तराखंड में पांच लोकसभा सीट हैं. लेकिन इनमें से दो सीटें काफी खास हैं. या यूं कहें कि ये दोनों हॉट सीट हैं. इन सीटों पर मुख्यमंत्री स्तर के नेताओं की साथ दांव पर होती है. ये दोनों सीट हैं हरिद्वार और पौड़ी गढ़वाल. 

यह भी पढ़ें - 'जम्मू-कश्मीर में होंगे विधानसभा चुनाव, पूर्ण राज्य का मिलेगा दर्जा', उधमपुर से पीएम मोदी ने किया ऐलान

इन दो हॉट सीट से कौन-कौन चुनावी मैदान में
उत्तराखंड की दो हॉट सीट यानी हरिद्वार और पौड़ी गढ़वाल का इतिहास काफी दिलचस्प है. भारतीय जनता पार्टी ने इन दोनों सीटों से सीटिंग एमपी यानी सांसदों को चुनावी मैदान में उतारा है. हरिद्वार से जहां त्रिवेंद्र सिंह रावत चुनाव लड़ रहे हैं वहीं इनकी मुकाबला कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम हरिश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत से होगा जबकि पौड़ी गढ़वाल सीट से अनिल बलूनी चुनावी मैदान में हैं. इनका मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी गणेश गोदियाल से होगा. हालांकि पौड़ी गढ़वाल सीट से कुल 13 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. 

क्या है हरिद्वार सीट का इतिहास
धर्मनगरी हरिद्वार सीट शुरू से ही भारतीय जनता पार्टी के लिए गढ़ के रूप में देखा जाता है. यहां से बीजेपी कई बार जीत दर्ज कर विरोधियों को सीधा जवाब दिया है. 90 के दशक से इक्का-दुक्का मौके छोड़े दिए जाएं तो ज्यादातर मौकों पर बीजेपी ने जीत का परचम लहराया है. 

हरिद्वार 1977 में बना लोकसभा सीट
हरिद्वार के लोकसभा सीट के रूप में अस्तित्व आने वाला वर्ष 1977 था. इस दौरान तात्कालिन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का मजबूत पैठ इस इलाके में थी. यही वजह है कि 1977 में हुआ इस सीट का पहला चुनाव भी लोकदल के नाम ही रहा. इसके बाद 1980 में यह सीट जनता पार्टी के खाते में चली गई. लेकिन राजनीति में कुछ स्थायी नहीं रहता लिहाजा अगले ही चुनाव यानी 1984 में यह सीट बदलते समीकरणों के साथ कांग्रेस की झोली में चली गई. इसके बाद 1987 में इस सीट पर उपचुनाव हुए और वह भी कांग्रेस के पक्ष में ही रहे. धर्मनगरी पर कांग्रेस ने 1989 तक अपना वर्चस्व कायम रखा. 

1991 में भाजपा ने चखा जीत का स्वाद
हरिद्वार सीट पर 1991 में भारतीय जनता पार्टी ने भी जीत का स्वाद चखा यानी ये सीट कांग्रेस की झोली से निकलकर बीजेपी के आंगन में आ गई. इसकी बड़ी वजह थी राम सिंह सैनी का कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होना. इसके साथ ही हरिद्वार की सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व भी हो गई. 

यह भी पढ़ें - Criminal Background Candidates: पहले चरण में आपराधिक छवि वाले 252 प्रत्याशी, जानें सबसे ज्यादा किस दल से

इसके बाद बीजेपी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और पार्टी के कद्दावर नेता हरपाल साथी ने यहां से एक के बाद एक तीन बार लगातार चुनाव जीतकर रिकॉर्ड बना डाला. 

2004 में सपा को मिला मौका
1991 के बाद बीजेपी के विजयी रथ को समाजवादी पार्टी ने रोकने में कामयाबी हासिल की. 2004 में सपा इस सीट पर जीत दर्ज कर ये सीट बीजेपी से छीन ली. इसके बाद 2009 में कांग्रेस के हरिश रावत ने भी इस सीट पर चुनाव जीतकर इसे दोबारा कांग्रेस के पाले में ला दिया. कुल मिलाकर इस सीट से 6 बार बीजेपी और चार बार कांग्रेस जीत दर्ज कर चुकी है. 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से रमेश पोखरियाल निशंक 665674 वोट से जीत दर्ज की थी. 

यह भी पढ़ें - How to Get Voter ID: मतदान से पहले खो गया है वोटर आईडी तो न करें चिंता, अपनाएं ये

क्या है पौड़ी गढ़वाल का इतिहास
पौड़ी गढ़वाला लोकसभा सीट पर सियासी दलों की राह उतनी आसान नहीं रही है. यहां की जनता ने समय-समय पर अलग-अलग दलों को मौका दिया है. यानी यूं कहें कि इस सीट का इतिहास उतार-चढ़ाव वाला रहा है तो गलत नहीं होगा. 1952 से 77 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. भक्त दर्शन नाम के सांसद इस सीट पर लगातार जीतते आए. हालांकि एक बार प्रताप नेगी ने भी चुनाव जीता. 1989 में मंदिर आंदोलन की लहर से पहले इस सीट पर कांग्रेस ने कब्जा जमा रखा था. लेकिन मंदिर आंदोलन ने इस सीट की दिशा बदल दी और ये सीट भारतीय जनता पार्टी की झोली में आ गई. 

हेमवती नंदन बहुगुणा के भांजे सेना के अधिकारी रहे भुवन चंद्र खंडूरी ने कांग्रेस प्रत्याशी सतपाल महाराज को मात देते हुए इस सीट पर जीत दर्ज की. इसके बाद सिर्फ दो बार ही बीजेपी ने इस सीट से चुनाव हारा. इसमें कांग्रेस ने एक बार फिर इस सीट पर कब्जा किया. यह वक्त था 1997 का. जब एक बार फिर सतपाल महाराज ने इस सीट से अपनी जीत का परचम लहराया था. लेकिन एक बार फिर 1999 में सतपाल को भुवन चंद्र खंडूरी ने हराया. 

पौड़ी ने प्रदेश के दिए 5 सीएम
पौड़ी गढ़वाल की अहमियत इसी बात से लगाई जा सकती है कि इस सीट ने प्रदेश के एक दो नहीं बल्कि पांच मुख्यमंत्री दिए हैं. इसमें विजय बहुगुणा, तीरथ सिंह रावत, रमेश पोखरियाल निशंक, त्रिवेंद्र सिंह रावत और भुवन चंद्र खंडूरी प्रमुख रूप से शामिल हैं. यही नहीं देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस यानी सीडीएस बिपिन रावत, एनएसए अजीत डोभाल भी इसी इलाके से हैं. गढ़वाल में चार जिले आते हैं, जबकि 14 विधानसभाएं हैं.