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Two Child Policy पर देश में फिर बहस, जानें- कितना फायदा, क्या नुकसान

जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion) से भविष्य में होने वाली समस्याओं पर संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की रिपोर्ट के बाद एशिया खासकर भारत में यह सबसे बड़ी चिंता के रूप में सामने आया है.

Updated on: 18 Jul 2022, 06:00 PM

highlights

  • भारत 2023 तक जनसंख्या के मामले में दुनिया में अव्वल होगा
  • देश में टू चाइल्ड पॉलिसी को लेकर फिर से बड़ी बहस चल रही है
  • टू चाइल्ड पॉलिसी को लेकर देश में कई आशंकाएं भी सामने आईं

नई दिल्ली:

विश्व जनसंख्या दिवस ( World Population Day) के बीते अभी कुछ दिन हुए हैं और देश में दो बच्चे ही अनिवार्य नीति ( Two Child Policy) पर बहस छिड़ गई है. काफी सालों से चर्चा का विषय रही बढ़ती जनसंख्या के मुद्दे पर देश में पक्ष और विपक्ष में तमाम तरह की दलीलें सामने आने लगी है. जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion) से भविष्य में होने वाली समस्याओं पर संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की रिपोर्ट के बाद एशिया खासकर भारत में यह सबसे बड़ी चिंता के रूप में सामने आया है.

यूएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2023 तक भारत जनसंख्या के मामले में दुनिया में अव्वल हो जाएगा. इस मामले में अब तक टॉप पर रहे चीन को भी पीछे छोड़ देगा. भारत में फिलहाल टू चाइल्ड पॉलिसी लागू नहीं है. हालांकि इसे कई बार लागू करने की नाकाम कोशिश की गई है. हाल ही में देश में असम सहित कुछ राज्यों ने एक दायरे में इस पॉलिसी को लागू किया है. आइए, जानते हैं कि देश में टू चाइल्ड पॉलिसी को लेकर क्या बहस चल रही है और इसके फायदे और नुकसान क्या हो सकते हैं.

विश्व जनसंख्या संभावना 2022 रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रखंड के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग द्वारा ‘विश्व जनसंख्या संभावना 2022’ नाम की रिपोर्ट में कहा गया कि वैश्विक जनसंख्या 15 नवंबर, 2022 तक आठ अरब के आंकड़े पर पहुंच जाएगी. 11 जुलाई को जारी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में चीन की जनसंख्या 1.426 अरब है. वहीं भारत की आबादी 1.412 अरब है. इस लिहाज से भारत आबादी के मामले में जल्द ही चीन को भी पीछे छोड़ सकता है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 1950 के दशक के बाद ऐसा पहली बार है जब आबादी सबसे कम रफ्तार से बढ़ रही है. साल 2020 में यह दर घटकर एक फीसदी से भी कम रह गई है.

टू चाइल्ड पॉलिसी का लाभ

आजादी के बाद से देश में अब तक संसद में टू चाइल्ड पॉलिसी को 35 बार पेश किया जा चुका है. अब तक किसी भी सरकार ने इसे लागू करने की हिम्मत नहीं जुटाई है.  टू चाइल्ड पॉलिसी से आबादी पर नियंत्रण हो सकता है. इस पॉलिसी का मकसद शैक्षिक लाभ, मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, बेहतर रोजगार के अवसर, होम लोन और टैक्स छूट के जरिए इसे अपनाने को प्रोत्साहित करना था. जनसंख्या नियंत्रित होने से सभी को रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और बड़ी आबादी को पौष्टक आहार मिलना संभव हो सकता है. 

इसके अलावा लोगों की शैक्षणिक स्थिति के साथ जीवन स्तर में भी सुधार हो सकता है. साथ ही पर्यावरण प्रदूषण की समस्या कम हो सकती है. टू चाइल्ड पॉलिसी के तहत सरकारी योजनाएं जैसे सेवाओं और वस्तुओं में सब्सिडी, राशन वितरण, राज्य सरकार सेवाओं में रोजगार और दूसरी स्कीम जैसे किफायत घर वगैरह को शामिल कर सही से अमल किया जा सकता है.

पॉलिसी के संभावित नुकसान

टू चाइल्ड पॉलिसी को लेकर देश में तमाम तरह की आशंकाएं भी जताई जाती रही हैं. पॉलिसी के नुकसान गिनाने वाले पड़ोसी मुल्क चीन की जनसंख्या नियंत्रण पॉलिसी का उदाहरण देते हैं. पॉलिसी की विपक्ष में दलील देते हुए बताया जाता है कि चीन में इस पॉलिसी से आबादी बिल्कुल थम गई. इसके अलावा वहां बुजुर्गों की संख्या बढ़ गई. इसके बाद चीन ने अपने नागरिकों को तीन बच्चे पैदा करने की छूट दी है. 

जानकारों का कहना है कि चीन की जनसंख्या नियंत्रण नीति एक तरह से फेल साबित हो गई. अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से ये संकेत मिलता है कि परिवार नियोजन में दबाव या कम बच्चे पैदा करने का आदेश नुकसानदेह साबित हो सकता है. असुरक्षित गर्भपात की घटनाएं बढ़ सकती हैं. कन्या भ्रूण हत्या या नवजात कन्या की हत्या और उन्हें लावारिश छोड़ने की घटनाओं में भी बढ़ोतरी की आशंका है. ऐसा होने पर देश में लिंगानुपात और बिगड़ने करा खतरा है. देश में की तरह के काम करने वाले लोगों की भी कमी हो सकती है. बीते कुछ वर्ष से भारत में लगातार घट रही प्रजनन दर का भी हवाला लोगों ने दिया है.

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की मंशा

भारत सरकार ने साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा था कि वह 'टु चाइल्ड पॉलिसी' को अनिवार्य नहीं करेगी. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा था, 'भारत में परिवार कल्याण योजना स्वैच्छिक है, जो दंपती को अपने परिवार का साइज तय करने और बिना किसी बाध्यता के अपनी पसंद के अनुसार परिवार नियोजन के सर्वोत्तम तरीकों को अपनाने में सक्षम बनाता है.' इसके अलावा 'अंतरराष्ट्रीय अनुभव से पता चलता है कि जबरन जनसंख्या नियंत्रण जबरदस्ती का असर प्रतिकूल है और यह जनसांख्यिकीय विकृतियों की ओर ले जाती है.'

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देश की प्रमुख हस्तियों के बयान

देश में जनसंख्या विस्फोट  (Population Explosion) को लेकर विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक नेताओं की अलग-अलग राय सामने आती रहती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ वर्ष पहले लाल किले की प्राचीर से देश में जनसंख्या नियंत्रण की गुहार लगाई थी. उन्होंने कहा था कि छोटा परिवार रखना भी एक तरह से देशभक्ति ही है.

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने बीते दिनों एक कार्यक्रम में कहा था कि खाना और जनसंख्या बढ़ाने का काम तो जानवर भी करते हैं. वह मानते हैं कि सिर्फ जिंदा रहना ही जीवन का मकसद न हो. 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में कहा था कि जनसंख्या बढ़ने से अव्यवस्था और अराजकता की स्थिति आती है. रिलीजियस डेमोग्राफी पर भी इसका असर होता है. उन्होंने किसी एक वर्ग की आबादी बढ़ने पर चिंता जताई थी.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट किसी मजहब की नहीं, बल्कि मुल्क की मुसीबत है. इसे जाति धर्म से जोड़ना ठीक नहीं है.

एआईएमआईएम (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) का कहना है कि वो भारत में केवल दो बच्चे अनिवार्य करने वाले किसी भी कानून का कतई समर्थन नहीं करेंगे.

शिवसेना (Shiv Sena) ने भी हाल में अपने मुखपत्र सामना के जरिए देश की बढ़ती आबादी पर चिंता जताई थी. सामना में कहा गया था कि जनसंख्या जैसे मसले को भी धार्मिक-राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है.