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Kargil Vijay Diwas: कारगिल युद्ध की साजिश रचने वाले मुशर्रफ को थी ये बीमारी, सुनाई गई थी मौत की सजा

Kargil Victory Day: 26 जुलाई का दिन भारत के लिए कारगिल विजय की याद दिलाता है. इसी तारीख को साल 1999 में भारतीय सेना के जवानों ने पाकिस्तान को कारगिल युद्ध में शिकस्त दी थी.

Updated on: 25 Jul 2023, 09:02 AM

highlights

  • 26 जुलाई को मनाया जाता है कारगिल विजय दिवस
  • 26 जुलाई 1999 को भारत ने दी थी पाकिस्तान को युद्ध में मात
  • परवेज मुशर्रफ ने रची थी कारगिल युद्ध की साजिश

New Delhi:

Kargil Victory Day: 24 साल पहले 26 जुलाई को भारत ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को ऐसी मात दी कि उसके बाद सालों तक दुश्मन देश उबर नहीं पाया. हालांकि, पाकिस्तान ने उसके बाद भी कई बार भारत के खिलाफ जहर उगला लेकिन भारतीय सेना के वीर जवानों ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया. 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना के जवानों ने पाकिस्तानी सेना को घर में घुसकर मारा और कारगिल पर तिरंगा फहराकर युद्ध जीत लिया. कारगिल में युद्ध की साजिश के पीछे परवेज मुशर्रफ का हाथ था. जिन्हें राजद्रोह के आरोप में अपने ही देश में मौत की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, उन्हें फांसी पर लटकाया जाता उससे पहले ही एक बीमारी ने उनकी जान ले ली. कारगिल विजय दिवस के मौके पर हम आपको परवेज मुशर्रफ से जुड़ी ऐसी ही बातें बताने जा रहे हैं. जिनके बारे में शायद आपको इल्म नहीं होगा कि भारत को धोखा देने वाले परवेज मुशर्रफ अपनी जिंदगी के आखिरी वक्त में किस बीमारी से जूझ रहे थे और उस बीमारी ने उनकी जिंदगी को बदतर कर दिया था.

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आजादी से पहले दिल्ली में पैदा हुए थे मुशर्रफ

परवेज मुशर्रफ आजादी से पहले दिल्ली में पैदा हुए. उनका जन्म 11 अगस्त 1943 को दिल्ली के दरियागंज इलाके में हुआ था. लेकिन साल 1947 में भारत विभाजन के कुछ दिन पहले ही उनका पूरा परिवार पाकिस्तान चला गया. मुशर्रफ के पिता पाकिस्तान सरकार में नौकरी किया करते थे. जब 1998 में परवेज मुशर्रफ सेना में जनरल बने तो उन्होंने भारत के खिलाफ साजिश रची और दोनों देशों के बीच कारगिल युद्ध हुआ. जिसमें पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी. भारतीय सेना के जवानों ने मुशर्रफ की हर चाल पर पानी फेर दिया. अपनी जीवनी ‘इन द लाइन ऑफ फायर- अ मेमॉयर' में जनरल मुशर्रफ ने लिखा कि, उन्होंने कारगिल पर कब्जा करने की कसम खाई थी. लेकिन नवाज शरीफ की वजह से वो ऐसा नहीं कर सके.

2001 से 2008 तक पाकिस्तान पर मुशर्रफ ने किया शासन

बता दें कि परवेज मुशर्रफ 2001 से 2008 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे. बावजूद इसके 79 वर्षीय जनरल मुशर्रफ को उन्हीं के देश में राजद्रोह के आरोप का सामना करना पड़ा. उसके बाद 2019 में संविधान को निलंबित करने के लिए मुशर्रफ को मौत की सजा दी गई. हालांकि, बाद में उनकी मौत की सजा को निलंबित कर दिया गया. साल 2020 में लाहौर उच्च न्यायालय ने मुशर्रफ के खिलाफ नवाज शरीफ सरकार द्वारा की गई सभी कार्रवाइयों को असंवैधानिक करार दिया. जिसमें उच्च राजद्रोह के आरोप पर शिकायत और एक विशेष अदालत के गठन के साथ इसकी कार्यवाही भी शामिल थी.


  
सेना प्रमुख बनने के बाद कारगिल युद्ध और फिर किया तख्तापलट

परवेज मुशर्रफ को 1998 में पाकिस्तानी सेना का प्रमुख बनाया गया. सेना प्रमुख बनते ही मुशर्रफ ने भारत के खिलाफ जहर उगलना शुरु कर दिया. उन्होंने न सिर्फ कारगिल युद्ध की साजिश रची बल्कि पाकिस्तान में तख्तापटल भी किया. उसके बाद वह पाकिस्तान के तानाशाह बन गए. उनके सत्ता संभालते ही नवाज शरीफ को परिवार समेत पाकिस्तान छोड़कर जाना पड़ा. 30 मार्च 2014 को मुशर्रफ पर तीन नवंबर 2007 को संविधान को निलंबित करने का आरोप लगाया गया था.  उसके बाद 17 दिसंबर, 2019 को एक विशेष अदालत ने मुशर्रफ को उच्च राजद्रोह के मामले में मौत की सजा सुनाई. इससे पहले मार्च 2016 में ही वह देश छोड़कर दुबई चले गए और जिंदा रहते कभी पाकिस्तान नहीं लौटे. 5 फरवरी 2023 को दुबई के एक अस्पताल में मुशर्रफ ने दुनिया को अलविदा कहा. पूर्व तानाशाह शासक परवेज मुशर्रफ अमाइलॉइडोसिस बीमारी से जूझ रहे थे. जिसने उनके शरीर को बुरी तरह से प्रभाविक कर दिया था.

जानिए क्या होती है अमाइलॉइडोसिस की बीमारी? 

परवेज मुशर्रफ जिस अमाइलॉइडोसिस नाम की बीमारी से जूझ रहे थे वह बीमारी शरीर में अमाइलॉइड नाम के प्रोटीन के बनने के कारण होती है. जो शरीर के अंगों को ठीक से काम करने से रोकता है. इस बीमारी से सबसे ज्यादा हृदय, किडनी, लीवर, स्प्लीन, नर्वस सिस्टम और पाचन तंत्र प्रभावित होते हैं. कई बार अमाइलॉइडोसिस कुछ अन्य बीमारियों के साथ भी हो जाती है. इससे पूरा शरीर कमजोर हो जाता है. फिर शरीर के दूसरे अंग भी काम करना बंद करने लगते हैं. अमाइलॉइडोसिस का इलाज भी कैंसर के इलाज की तरह ही होता है. जिसमें उन्हीं दवाइयों का इस्तेमाल होता है जो कैंसर के इलाज में प्रयोग की जाती हैं. इस बीमारी से पीड़ित मरीज को भी कीमोथेरेपी दी जाती है. इसके अलावा अमाइलॉइड उत्पादन को कम करने के लिए दवाएं भी दी जाती हैं.

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अंतिम समय में बेहद कमजोर हो गए थे मुशर्रफ

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो परवेज मुशर्रफ को इस बीमारी ने बुरी तरह से कमजोर कर दिया था. न तो वह चल पाते थे और ना ही सही से बोल पाते थे.  डॉक्टर्स ने उन्हें बचाने की काफी कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. अमाइलॉइडोसिस के लक्षण ज्यादातर काफी सूक्ष्म होते हैं. ये बीमारी जैसे-जैसे शरीर में बढ़ती है अमाइलॉइड दिल, लीवर, प्लीहा, गुर्दे, पाचन तंत्र, मस्तिष्क और तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचने लगता है. जिससे मरीज को गंभीर थकान, वजन कम, पेट, टांगों, टखनों या पैरों में सूजन, हाथ या पैर में झुनझुनाहट, दर्द और स्किन का रंग बदल जाता है. परवेज मुशर्रफ भी अपने आखिरी समय में कुछ ऐसे ही हो गए थे.