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Kargil Vijay Diwas 2023: भारतीय ब्रिगेडियर ने दिलवाया पाकिस्तान आर्मी के कैप्टन को निशान-ए-हैदर

कारगिल की जंग का ये किस्सा हमें बताता है कि जंग के मैदान पर इंडियन आर्मी भले ही दुश्मन की जान लेने से नहीं हिचकती हों, लेकिन उसे दुश्मन की बहादुरी का सम्मान करना भी बखूबी आता है.

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Prashant Jha
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Kargil Vijay Diwas ( Photo Credit : news nation pic)

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कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तान के खिलाफ हुई भारत की जीत को 24 साल हो चुके हैं. ये जंग इंडियन आर्मी के अदम्य साहस और वीरता की नजीर है. इस जंग में कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन मनोज पांडे, ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव और राइफल मैन संजय कुमार जैसे भारतीय फौज के रणबांकुरों को सर्वोच्च वीरता के सम्मान यानी परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस जंग में पाकिस्तान ने भी अपने एक फौजी को बहादुरी के सबसे बड़े सम्मान यानी निशान ए हैदर से नवाजा था और खास बात ये हैं कि उसे ये वीरता सम्मान इंडियन आर्मी की सिफारिश पर दिया गया था.  हम बात करेंगे पाकिस्तान के उस फौजी की जिसने कारगिल की जंग में इंडियन आर्मी के लिए टाइगर हिल की जीत मुश्किल बना दी थी. उस फौजी का नाम था कैप्टन कर्नल शेर खान. ये नाम आपको थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस पाकिस्तानी फौजी के दादा पाकिस्तान आर्मी के कर्नल शेर खान से बहुत प्रभावित थे. लिहाजा अपने पोते नाम उन्होंने कर्नल शेर खान रख दिया.

कर्नल शेर खान पहले पाकिस्तानी एयरफोर्स बतौैर एयरमैन भर्ती हुए लेकिन बाद में पाकिस्तान आर्मी में कमीशंड ऑफिसर बन कर 27th सिंध रेजीमेंट में पोस्टेड हुए. साल 1996 में वो कैप्टन के ओहदे पर पहुंचे. 
पाकिस्तान आर्मी के कैप्टन कर्नल शेर खान के नाम के आगे लगी इन दो रैंक्स का मतलब आपकी समझ में आ गया होगा. अब आपको बताते हैं वो वाक्या जिसके चलते इंडियन आर्मी ने उनकी बहादुरी का सम्मान करते हुए पाकिस्तान आर्मी को चिट्ठी लिखी. ये चिट्ठी लिखने वाले थे इंडियन आर्मी के ब्रिगेडियर एमपीएस बाजवा. ब्रिगेडियर बाजवा 1999 के कारगिल युद्ध में  सिख रेजीमेंट की आठवीं बटालियन की कमान संभाल रहे थे. इस बटालियन को टाइगर हिल पर कब्जा करने का टास्क मिला था. टाइगर हिल कारगिल की जंग में सबसे महत्वपूर्ण चोटियों में से एक थी. इस अभियान में 18 ग्रेनेडियर्स को भी लगाया है गया जो तोलोलिंग की लड़ाई में खासा नुकसान उठा चुकी थी.

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काउंटर अटैक के पीछे कैप्टन शेर खान की थी सोच

द प्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में ब्रिगेडियर बाजवा बताते हैं के चार जुलाई को 18 ग्रेनेडियर्स ने कैप्टन बलवान सिंह की कमान में टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया था. ये वहीऑपरेशन था जिसके लिए बाद में ग्रेनियडर योगेंद्र सिंह, लेकिन जंग खत्म नहीं हुई थी. पाकिस्तान की रीइनफोर्समेंट आने वाली थी जिसे रोकने के लिए ब्रिगेडियर बाजवा में अपने जवानों को हेलमेट और इंडिया गेट जैसी चोटियों पर कब्जा करने को कहा. अगली सुबह पाकिस्तान की ओर से काउंटर अटैक शुरू हुआ. ये काउंटर अटैक इतना घातक था कि भारत के तीन जेसीओ शहीद हो गए. ब्रिगेडियर बाजवा को पता चला कि पाकिस्तान के एक बेहद कमजोर सी टुकड़ी के इतने जबरदस्त काउंटर अटैक के पीछे कैप्टन शेर खान ही था.

ब्रिगेडिया बाजवा बताते हैं कि जब इंडियन आर्मी को इस काउंटर अटैक से बचने के लिए अपनी लोकेशन बदलनी पड़ी तो उन्होंने इस मोर्चे पर सबसे आगे तैनात अपने सिपाही सतपाल सिंह से बात की .उन्होंने बताया कि कैप्टन शेर खान अपने सिपाहियों को पूरे जोर-शोर के साथ मोटिवेट कर रहे हैं. इसके बाद ब्रिगेडियर बाजवा ने पहले शेर  को रास्ते से हटाने का आदेश दिया और सतपाल सिंह ने दो और सिपाहियों के साथ मिलकर शेर खान को करीब 10 यार्ड की दूरी से गोली मार कर ठिकाने लगा दिया.   

पाकिस्तान में कैपटन शेर कान को कारगिल का शेर भी कहा जाता

शेर खान की मौत के बाद ही टाइगर हिल पर इंडियन आर्मी पूरी तरह से कब्जा कर सका. कारगिल की जंग में पाकिस्तान अपने फौजियो के शव भी लेने से इनकार कर रहा था..लिहाजा टाइगर हिल पर कब्जे की लड़ाई में मारे गए 30 पीकिस्तानी फौजियों को पहाड़ी पर ही दफन किया गया, लेकिन शेर खान की बॉडी को हेडक्वार्टर ले जाया गया. ब्रिगेडियर बाजवा ने एक कागज पर पेन से कैप्टन कर्नल शेर खान की बहादुरी की तारीफ करते हुए एक चिट्ठी लिखी और उसे शेर खान की बॉडी की पॉकेट में रख दिया. कुछ वक्त बाद जब पाकिस्तान ने उनकी बॉडी को कबूल किया तो वो चिट्ठी भी पाकिस्तान आर्मी के पास पहुंची जिसके बाद कैप्टन कर्नल सेर कान को पाकिुस्तान से बड़े बड़े मिलिट्री सम्मान निशा-ए-हैदर से सम्मानित किया गया. पाकिस्तान में कैपटन शेर कान को कारगिल का शेर भी कहा जाता है. उनकी रेजीमेंट यानी 27thसिंध रेजीमेंट के शेर हैदरी का नाम दिया गया. कारगिल की जंग का ये किस्सा हमें बताता है कि जंग के मैदान पर इंडियन आर्मी भले ही दुश्मन की जान लेने से नहीं हिचकती हों, लेकिन उसे दुश्मन की बहादुरी का सम्मान करना भी बखूबी आता है.

सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट

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