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इराकी संसद पर कब्जा, फिर प्रदर्शनकारियों की वापसी... आखिर क्या हैं कारण

इराक में बीते साल अक्टूबर में संसदीय चुनाव हुए थे. इसके बावजूद अब तक सरकार का गठन नहीं हो सका. 2003 में अमेरिकी हमले के बाद यह सबसे लंबा वाक्फा है, जब सरकार अस्तित्व में नहीं है.

Updated on: 29 Jul 2022, 03:57 PM

highlights

  • अक्टूबर 2021 में संसदीय चुनाव के बावजूद सरकार का गठन नहीं
  • पूर्व राष्ट्रपति अल-मलिकी ने अल-सुदानी को पीएम उम्मीदवार बनाया
  • अल-सदर के इशारे पर इराकी संसद पर कब्जा हुआ, जो संकेत था

नई दिल्ली:

इराक (Iraq) के लोकप्रिय और प्रभावशाली शिया नेता मौलवी मुक्तदा-अल-सदर (Muqtada al-Sadr) के आह्वान पर हजारों समर्थक बुधवार को इराकी संसद पर कब्जा कर लेते हैं. संसद भवन की मेज और पोडियम पर चढ़कर फोटो खिंचवाते हैं, 'अल-सुदानी वापस जाओ' के नारे लगाते हैं. फिर मुक्तदा के लक्ष्य पूरा होने का ट्वीट मिलते ही सुरक्षित वापस अपने-अपने घरों को लौट जाते हैं. भारी भीड़ को एकत्र करना और उस पर पूरा नियंत्रण रखना इस शिया मौलवी की जानी-पहचानी राजनीतिक रणनीति है. इराक की राजनीति का यह चमकता सितारा ईरान विरोधी अपने रुख के लिए जाना जाता है. इराकी संसद पर यह हंगामा भी ईरान के प्रति नर्म रवैया रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री नूरी अल-मलिकी (Nouri al-Maliki) की ओर से घोषित पीएम दावेदार इराकी नेता मोहम्मद अल-सुदानी (Mohammed Shia Al Sudani) की खिलाफत के लिए मुक्तदा-अल-सदर ने कराया था. गौरतलब है कि सरकार बनाने में नकाम रहने पर अल-सदर ने अपने ब्लॉक यानी गठबंधन के सभी साथियों संग जून में इस्तीफा दे दिया था. इराक में राजनीतिक उथल-पुथल यहां तक कैसे पहुंची, डालते हैं एक नजर.

इराक में राजनीतिक अस्थिरता की वजह
इराक में बीते साल अक्टूबर में संसदीय चुनाव हुए थे. इसके बावजूद अब तक सरकार का गठन नहीं हो सका. 2003 में अमेरिकी हमले के बाद यह सबसे लंबा वाक्फा है, जब सरकार अस्तित्व में नहीं है. पहले से ही संकटग्रस्त इराक में सरकार न होने से राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ गई. हालांकि पर्दे के पीछे कुछ शिया नेता एक ऐसा ढांचा खड़ा करने की तैयारी में लगे रहे जो अमेरिका के साथ पहले से नाजुक राजनीतिक संतुलन को और बिगाड़ अंतर-सांप्रदायिक हिंसा को फैला सके. लकवाग्रस्त राजनीति की इस स्थिति के लिए प्रभावशाली नेताओं के अपने-अपने निजी स्वार्थ भी जिम्मेदार हैं. इनकी शह और मात के खेल ने इराक की राजनीति को शतरंज की बिसात में तब्दील कर दिया. ऐसे में बुधवार को संसद पर हुए विरोध-प्रदर्शन का एक उद्देश्य मुक्तदा अल-सदर के विरोधियों को साफ संदेश भी देना था कि उन्हें सरकार गठन की प्रक्रिया से अलग-थलग नहीं रखा जा सकता है. 

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राजनीतिक प्रभुत्व की है लड़ाई
मुक्तदा अल-सदर और नूरी अल-मलिकी दोनों ही ताकतवर नेता हैं. हालांकि अल-सदर के गठबंधन ने अक्टूबर में हुए संसदीय चुनाव में सबसे ज्यादा सीट जीती थी, लेकिन आपस में ही उलझीं राजनीतिक पार्टियां राष्ट्रपति के चयन के लिए जरूरी दो-तिहाई बहुमत नहीं जुटा सकीं. इराक की राजनीति में राष्ट्रपति के चयन के बाद ही प्रधानमंत्री का चयन होता है. दो-तिहाई बहुमत के लिए हर प्रयास नाकाम रहने के बाद अल-सदर के गठबंधन ने सरकार बनाने की बातचीत से खुद को अलग कर लिया. गौरतलब है कि अल-सदर पलक झपकते ही अपने समर्थकों तक संदेश पहुंचाने वाले नेता माने जाते हैं. ऐसे में सरकार गठन की बातचीत से अलग होने पर सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन की आशंकाएं तेज हो गई थीं. अल-मलिकी के गठबंधन कॉर्डिनेशन फ्रेमवर्क एलांयस को ईरान केंद्रित शिया पार्टियों का समर्थन प्राप्त है. अल-सदर के हटते ही फ्रेमवर्क ने अलग-सदर के इस्तीफा देने वाले सांसदों की जगह अपने सांसद चुन लिए. हालांकि यह वैधानिक कदम है, लेकिन इसने अल-सदर को उत्तेजित कर दिया. इससे अल-मलिकी के गठबंधन को संसद में बहुमत मिल गया. नतीजतन फ्रेमवर्क एलांयस ने इराक के पूर्व श्रम और सामाजिक मामलों के मंत्री मोहम्मद अल-सुदानी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया. अल-सदर के विश्वासपात्र मानते हैं अल-मलिकी पीएम दावेदार अल-सुदानी पर पूरा नियंत्रण रख राजनीति को अपनी मर्जी से चलाएंगे. अल-मलिकी पहले खुद को पीएम पद का दावेदार बनाने वाले थे, लेकिन अल-सदर और अपने ही गठबंधन के शिया नेताओं को भला-बुरा कहते एक ऑडियो के लीक होने से उनकी दावेदारी खत्म हो गई. 

धार्मिक उन्माद क्या भूमिका निभाएगा
अल-सदर ने अल-सुदानी की दावेदारी के मुस्लिमों के महत्वपूर्ण दिन आशुरा से पहले धार्मिक उन्माद का रंग दे दिया. पैगंबर मोहम्मद साहब के पौत्र इमाम हुसैन की हत्या की याद में आशुरा मनाया जाता है. शिया इस दौरान सड़कों पर मातम मनाते हैं. बुधवार को संसद में हुए हंगामे का एक रोचक पहलू यह भी रहा दंगा नियंत्रण पुलिस ने कतई हस्तक्षेप नहीं किया. जाहिर है धार्मिक उन्माद के जरिये अल-सदर संदेश देने में सफल रहे यह लड़ाई शिया नेतृत्व के बीच की है. इसमें आम इराकी का खून नहीं बहेगा. इराक के जानकार कहते हैं कि अल-मलिकी और अल-सदर अपने-अपने मतभेद खत्म कर सकते हैं, लेकिन इराकी राजनीति में एक और खिलाड़ी कुर्द इसमें एक बड़ा पेंच है. केडीपी और पीयूके कुर्दों की दो बड़ी पार्टियां हैं, जो खुद मतभेद और मनभेद में उलझी हैं. पहले पहल उन्हें भी राष्ट्रपति दावेदार के नाम एकमत होना पड़ेगा. केडीपी ने अल-सदर के साथ गठबंधन किया था, जबकि पीयूके अल-मलिकी के साथ थी. 

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संसद के बाहर राजनीति की दशा-दिशा
न तो अल-सदर और ना ही अल-मलिकी राजनीतिक प्रक्रिया से स्वयं को अलग-थलग रखने का जोखिम मोल नहीं ले सकते. इसकी वजह यही है कि ऐसा करने पर उन्हें बहुत कुछ खोना पड़ेगा. दोनों ही के समर्थक बड़ी संख्या में नौकरशाहों के रूप में इराक सरकार के विभागों में हैं. जरूरत पड़ने पर वे उनके लिए लॉबिंग करते हैं, निर्णय प्रक्रिया में बाधा खड़ी करते हैं और लालफीताशाही में काम अटकाने के काम आते हैं. 2014 में जब अल-मलिकी का आठ साल का कार्यकाल खत्म हुआ तो वह प्रमुख सरकारी संस्थानों के प्रमुख पदों पर अपने आदमियों की नियुक्ति कर चुके थे. इसमें न्यायालय भी शामिल थे. इस बीच अल-सदर ने भी इसी तादाद में अपने आदमियों को प्रमुख पदों पर बैठाया. खासकर 2018 में तो यह संख्या चरम पर जा पहुंची थी. इस कारण फ्रेमवर्क एलायंस को पता है संसद में प्रतिनिधित्व के बगैर अल-सदर की शक्ति सड़क समेत सरकार और नौकरशाही में पैबस्त है. हालांकि 2019 में सरकार के खिलाफ आंदोलन से दोनों ही पक्षों की लोकप्रियता को कुछ धक्का लगा है. इस आंदोलन में सुरक्षा बलों के हाथों 600 लोग मारे गए थे और हजारों घायल हुए थे. इसका असर 2021 के अक्टूबर संसदीय चुनाव में देखने में आया था, जब अल-सदर को पहले की तुलना में कम वोट मिले थे. आंकड़ों के मुताबिक संसदीय चुनाव में 43 फीसदी मतदान हुआ था. 

ईरान की भूमिका
इसके बावजूद फ्रेमवर्क एलायंस ने सरकार गठन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का संकेत दे दिया है. फ्रेमवर्क के सदस्य व्यवस्थापक मौहम्मद सादोन ने बुधवार को संसद पर हुए प्रदर्शन को तख्तापलट का प्रयास करार दिया है. साथ ही कहा है कि इससे फ्रेमवर्क के प्रयासों को रोका नहीं जा सकेगा. जाहिर है फ्रेमवर्क अस्थिरता ला सड़कों पर शक्ति प्रदर्शन का मन बना चुका है. अल-सुदानी की तुरत-फुरत में दावेदारी यह बताने के लिए पर्याप्त है कि ईरान फ्रेमवर्क की शिया पार्टियों में एका के प्रयास कर रहा है. संसदीय चुनाव बाद ईरान फिर से सक्रिय हुआ है. गौरतलब है कि संसदीय चुनाव में ईरान समर्थित पार्टियों को दो-तिहाई सीटों का नुकसान हुआ था. ईरान की कुद्स फोर्स के कमांडर इस्माइल घानी ने हालिया दिनों में बगदाद के कई दौरे किए. घानी ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अल खमेनी के नजदीकी माने जाते हैं. घानी के इन बगदाद दौरे का मकसद पार्टियों में एका करा पीएम उम्मीदवार के नाम की घोषणा कराना था.