logo-image

भारत से 'पिनाका' लिया आर्मेनिया ने, 'पिनक' रहा अजरबैजान और उसका दोस्त पाकिस्तान

अजरबैजान तुर्की और पाकिस्तान के हथियारों के बल पर आर्मेनियाई सेना को निशाना बनाता आया है. ऐसे में अब भारत ने आर्मेनिया (Armenia) को पिनाका समेत अन्य खतरनाक रक्षा उपकरण देकर उसका पल्ला भारी कर दिया है.

Updated on: 29 Sep 2022, 06:51 PM

highlights

  • भारत आर्मेनिया को पिनाका समेत देगा 2 हजार करोड़ के रक्षा उपकरण
  • दशकों से आर्मेनिया-अजरबैजान नागोर्नो-काराबाख मसले पर युद्धरत हैं
  • पाकिस्तान-तुर्की अजरबैजान को युद्ध में कर रहे हैं अपने स्तर पर मदद

नई दिल्ली:

अगर चीन भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान का उपयोग करता आ रहा है, तो बदले वैश्विक समीकरणों में अब भारत भी चीन-पाकिस्तान को घेरने में जुटा हुआ है. चीन को घेरने के लिए भारत-अमेरिकी साझेदारी के साथ क्वाड समूह का भी अब एक और मंच मिल गया है. रहा सवाल पाकिस्तान (Pakistan) का, तो भारतीय कूटनीति ने उसे घुटनों बल ला दिया है. आतंकवाद के वित्त पोषण पर भारत (India) के दबाव में वह ब्लैक लिस्ट होने की कगार पर खड़ा है. इसके अलावा अन्य वैश्विक मंचों पर भी जब भी मौका मिलता है भारतीय प्रतिनिधि उसकी मज्जमत करने से नहीं चूकते. अब भारत ने पाकिस्तान को एक बड़ा झटका देते हुए उसके दोस्त अजरबैजान (Azerbaijan) के दुश्मन आर्मेनिया को स्वदेश निर्मित पिनाका मिसाइल और अन्य रक्षा उपकरणों की आपूर्ति का  सौदा किया है. अजरबैजान जहां इस सौदे को संघर्ष विराम समझौते का उल्लंघन बता रहा है, वहीं पाकिस्तान भी पिनाका (Pinaka) रॉकेट लांचर सिस्टम की आर्मेनिया को आपूर्ति पर 'पिनक' रहा है. गौरतलब है कि नागोर्नो-काराबाख़ संघर्ष को लेकर आर्मेनिया-अजरबैजान दशकों से कई युद्ध लड़ चुके हैं. अजरबैजान तुर्की और पाकिस्तान के हथियारों के बल पर आर्मेनियाई सेना को निशाना बनाता आया है. ऐसे में अब भारत ने आर्मेनिया (Armenia) को पिनाका समेत अन्य खतरनाक रक्षा उपकरण देकर उसका पल्ला भारी कर दिया है. इस कारण अजरबैजान के साथ-साथ पाकिस्तान को भी मिर्ची लगी हुई है. हालांकि अजरबैजान ने बीते दिनों भारत से मध्यस्थता की किसी भी पहला का स्वागत किया था.

आर्मेनिया को 2 हजार करोड़ के पिनाका और रक्षा उपकरण देगा भारत 
प्राप्त जानकारी के मुताबिक अजरबैजान से तनाव के बीच आर्मेनिया ने भारत से स्वदेश निर्मित पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लांचर, मिसाइलों और गोला-बारूद का सौदा किया है. इसी महीने अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच दो दिनों तक युद्ध चला था, तो साल की शुरुआत में महीने भर युद्ध हुआ था. ऐसे में भारत से इस सौदे को लेकर अजरबैजान तिलमिलाया हुआ है, तो पाकिस्तान भी पिनक रहा है. खैर, पिनाका सौदे के बीच आर्मेनिया और अजरबैजान ने एक-दूसरे पर संघर्ष विराम के उल्लंघन का आरोप लगाया है. सूत्रों के मुताबिक तकरीबन 2000 करोड़ रुपये का यह सौदा भारत-आर्मेनिया सरकार के बीच सीधे तौर पर हुआ है. इस सौदे के तहत आर्मेनिया को पिनाका सहित अन्य सैन्य साज-ओ-सामान की आपूर्ति जल्द से जल्द की जाएगी. कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहा आर्मेनिया ने इसके पहले 2020 में अजरबैजान से युद्ध के समय भारत से स्वाथी राडार भी खरीदे थे. भारत के लिहाज से यह सौदा काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके तहते पहली बार स्वदेश निर्मित पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लांचर को किसी बाहरी देश को बेचा गया है. गौरतलब है कि पिनाका को डीआरडीओ ने विकसित किया है. फिलहाल पिनाका पाकिस्तान और चीन की सीमा पर तैनात है. 

यह भी पढ़ेंः उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की 600 करोड़ रुपए की पुनर्विकास योजना आखिर है क्या...

अजरबैजान-तुर्की-पाकिस्तान का ध्रुवीकरण
तमाम अंतरराष्ट्रीय सामरिक विश्लेषकों की मानें तो अजरबैजान पाकिस्तान-तुर्की की एक तिकड़ी बन चुकी है. अजरबैजान तुर्की के ड्रोन से आर्मेनिया से युद्ध लड़ रहा है. इसके साथ ही अजरबैजान पाकिस्तान से जेएफ-17 लड़ाकू विमानों का सौदा करने पर भी बातचीत कर रहा है. माना तो यह भी जाता है कि आर्मेनिया के खिलाफ युद्ध में अजरबैजान की मदद करने के लिए पाकिस्तान ने अपने पालतू आतंकवादियों को भी भेजा था कश्मीर के मसले पर यही वजह है कि पाकिस्तान समेत तुर्की और अजरबैजान भारत के खिलाफ दुष्प्रचार में लगे रहते हैं. इस लिहाज से देखें तो भौगोलिक स्तर पर दूर-दूर होते हुए भी आर्मेनिया-अजरबैजान और भारत-पाकिस्तान के बीच एक अप्रत्यक्ष जुड़ाव बन गया है. गौरतलब है कि 2017 में तुर्की, अजरबैजान और पाकिस्तान ने एक त्रिस्तरीय मंत्रीस्तरीय समझौते पर भी हस्ताक्षर किए थे. इसके तहत सुरक्षा सहयोग समेत अन्य क्षेत्रों में परस्पर सहयोग की बात शामिल थी. 

भारत के लिए आर्मेनिया का महत्व
मध्य पूर्व के देशों तक भारत को पहुंच बनाने के लिए पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सड़क मार्ग से होकर गुजरना पड़ेगा, जो संभव नहीं है. अब तो अफगानिस्तान में तालिबान शासन के बाद तो यह और भी दूर की कोड़ी हो गया है. यही वजह है कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने ईरान के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देने के प्रयास जारी रखे हैं. ईरान के चाबहार बंदरगाह के जरिये भारत मध्य-पूर्व और अन्य यूरोपीय देशों से व्यापारिक संबंध बढ़ाना चाहता है. रणनीतिक स्तर पर देखें तो अजरबैजान के ईरान के साथ अच्छे रिश्ते न होकर पाकिस्तान और तुर्की के साथ हैं, जबकि आर्मेनिया के न सिर्फ भारत, बल्कि तेहरान के साथ भी बेहतर रिश्ते हैं. पिछले साल आर्मेनिया जाने वाले पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसी कारण आर्मेनिया और भारत के ऐतिहासिक संबंधों का खासतौर पर जिक्र किया था. प्राप्त जानकारी के मुताबिक आर्मेनिया का पहला संविधान और समाचार पत्र चेन्नई में प्रकाशित हुए थे. एस जयशंकर ने इसको लेकर एक ट्वीट भी किया था. जाहिर तौर पर ऐसे में पिनाका सौदे से अजरबैजान और उसके रणनीतिक दोस्त पाकिस्तान-तुर्की को मिर्ची लगनी स्वाभाविक है.

यह भी पढ़ेंः तो क्या शी जिनपिंग ही हैं वैश्विक स्तर पर चीन को लेकर बनी नकारात्मक राय की वजह...

आर्मेनिया-अजरबैजान संघर्ष का इतिहास
दोनों देशों के लिए नागोर्नो-काराबाख़ एक बड़े विवाद की वजह है, जिसकी जड़े पूर्व सोवियत संघ तक जाती हैं. अविभाजित सोवियत संघ में ही नार्गोनो-काराबाख अजरबैजान का एक स्वायत्त हिस्सा बन चुका था, जिसकी अधिसंख्य आबादी आर्मेनियाई है. इसी वजह से इस क्षेत्र की आर्मेनियाई आबादी आर्मेनिया से विलय चाहती है. इस राष्ट्रवादी भावनाओं के तहत आर्मेनिया और काराबाख़ से अजेरी आबादी को निकालने का काम शुरू हुआ, जो कि अजरबैजान से ताल्लुक रखती है. इसकी प्रतिक्रियास्वरूप अरजबैजान के शहर सुमगईट में 1988 में आर्मेनियाई लोगों को बड़े पैमाने पर मारा गया. जनवरी 1990 में अजरबैजान की राजधानी बाकू में एक बार फिर बड़ी संख्या में आर्मेनियाई लोगों को मार डाला गया. इसके बाद सोवियत संघ के विघटन के बाद दोनों देशों के संघर्ष ने युद्ध का रूप ले लिया. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के एक साल बाद दोनों देशों में भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें दोनों पक्षों के हजारों लोग मारे गए. एक अनुमान के मुताबिक कई सालों से चले आ रहे इस हिंसक टकराव में दोनों तरफ़ के क़रीब 30 हज़ार लोग मारे जा चुके हैं. साथ ही 10 लाख से ज़्यादा शरणार्थी बन चुके हैं. दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने की कई वैश्विक पहल नाकाम रहीं. आर्मेनिया ने 1991 नागोर्नो-काराबाख को स्वतंत्र राज्य बतौर मान्यता देते हुए उसकी सुरक्षा की बीड़ा उठा रखा है. 

आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच तुर्की कहां से आया
अरजबैजान की अजेरी और तुर्की की तुर्क जुबान एक ही भाषाई परिवार का अंग मानी जाती है. इस लिहाज से उनके बीच एतिहासिक-सांस्कृतिक संबंध हैं. इसके विपरीत तुर्की में आटोमन साम्राज्य के दौर में 1915 में बड़ी संख्या में आर्मेनियाई नागरिकों का कत्ल-ए-आम किया गया था, जिसे आर्मेनिया एक सदी से अधिक बीत जाने के बाद भी नहीं भूला है. कड़वाहट भरे संबंधों के बीच तुर्की ने आर्मेनिया के साथ लगती अपनी सीमा सील कर रखी है. 2008-09 में दोनों देशों में रिश्ते सामान्य करने की कोशिशें हुईं, लेकिन अजरबैजान के विरोध के चलते परवान नहीं चढ़ सकीं. आर्मेनिया में भी इन कोशिशों को लेकर बड़े पैमाने परविरोध-प्रदर्शन हुए थे. हालांकि उतार-चढ़ाव भरे सदियों पुराने संबंधों के बावजूद ऐसा पहली बार हुआ है कि नागोर्नो-काराबाख के मसले पर आर्मेनिया-अजरबैजान युद्ध में तुर्की पहली बार सीधे तौर पर शामिल हुआ और अजरबैजान को ड्रोन समेत अन्य रक्षा उपकरणों से मदद की. जाहिर है ऐसे में अब ईरान के चाबहार बंदरगाह ने ईरान के साथ-साथ आर्मेनिया को भी भारत के लिए अहम बना दिया है. पिनाका सौदा इन संबंधों को और गहराई देने काम करेगा. यही वजह है कि अजरबैजान और पाकिस्तान इस पर कूद-फांद कर रहे हैं.