logo-image

Brutal Crimes नरबलि या जादू-टोना रोकने के लिए नहीं है कोई ठोस कानून, समझें वजह

यह स्थिति तब है जब काला जादू और अंधविश्वास से भरे कृत्य भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. इसाथ ही अंतरराष्ट्रीय संधियों के कई प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं जिन पर भारत ने भी दस्तखत किए है.

Updated on: 15 Oct 2022, 07:42 PM

highlights

  • केरल के नरबलि मामले ने ऐसे नृशंस अपराधों के लिए केंद्रीय कानून की जरूरत पर फिर डाला प्रकाश
  • केंद्र ने हालांकि जादू-टोना और डायन प्रथा जैसी कुप्रथाओं निषेध की वैश्विक संधि पर किए हैं हस्ताक्षर

नई दिल्ली:

केरल में गुप्त धन हासिल करने के लिए नरबलि देने का मसला पुलिस के लिए हर गुजरते दिन के साथ और उलझता जा रहा है. इसकी एक बड़ी वजह यह कि पुलिस को अभी तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही नहीं मिल सकी है. नरबलि की शिकार हुई एक महिला की हत्या सितंबर में की गई थी, जबकि दूसरी को जून में मारा गया. इसके बाद दोनों की लाश के छोटे-छोटे टुकड़े किए गए. पोस्टमार्टम कर रहे डॉक्टरों के लिए शरीर के यही छोटे टुकड़े समस्या बन रहे हैं. इन टुकड़ों पर जमी धूल और कीड़ों के खाने से निष्कर्ष पर पहुंचना आसान नहीं है. डॉक्टर पहले टुकड़ों को धो कर साफ कर रहे हैं, फिर उनकी जांच कर रहे हैं. इस बीच नरबलि मामले की जांच के लिए गठित की गई स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम शनिवार को मुख्य आरोपियों भगावल सिंह और लैला के घर पहुंची. पुलिस अब दो प्रशिक्षित कुत्तों माया और मर्फी के सहारे जांच को आगे बढ़ा रही है. यहां यह जानना भी अजब ही है कि कथित काला जादू की घटनाओं पर रोकथाम के लिए अभी केंद्र सरकार के स्तर पर कानून पारित नहीं किया जा सका है. 

मौलिक अधिकारों का हनन भी हैं ऐसे कृत्य
यह स्थिति तब है जब काला जादू और अंधविश्वास से भरे कृत्य भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. इसके अलावा ये अंतरराष्ट्रीय संधियों के कई प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं जिन पर भारत ने भी दस्तखत किए हुए हैं. मसलन यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स, 1948, इंटरनेशनल कॉवेनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स, 1966 और कन्वेंशन ऑन द एलीमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म्स ऑफ डिस्क्रीमिनेशन एगेंस्ट वुमेन, 1979. केंद्र सरकार के लिए इससे ज्यादा असहज करने वाली स्थिति और क्या हो सकती है कि भारत के कई राज्यों ने डायन हत्या, काला जादू और दूसरे अन्य जादू-टोना वाले कामों से निपटने के लिए कानून बनाए हैं, जिनकी परिणिति अक्सर नृशंस अपराध के रूप में सामने आती है. इसके बावजूद भारत में आज तक काले जादू के खतरे से निपटने के लिए एक केंद्रीय कानून नहीं बन सका है.  हालांकि कार्यप्रणाली और सजा के मामले में राज्य के कानून अलग-अलग हैं. तो आइए जानते हैं कि किस राज्य में काला जादू, अंधविश्वास और जादू-टोना रोकने के लिए क्या कानूनी पहलू हैं... 

यह भी पढ़ेंः GHE आखिर क्या है वैश्विक भूखमरी सूचकांक, क्यों पीछे रह जा रहा है भारत

बिहार 
1999 में बिहार देश का पहला राज्य बना जिसने जादू-टोना और महिला को डायन करार दे प्रताड़ित करने को अपराध घोषित कर प्रिवेंशन ऑफ विच (डायन) प्रैक्टिस एक्ट, 1999 कानून बनाया. उन दिनों गांव के लोग किसी महिला को डायन करार दे देते थे. उनका डायन से आशय ऐसी महिला से होता था जिसके पास काला जादू, बुरी नजर या मंत्रों के जरिये किसी भी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने की शक्ति होती है. इस फेर में कई महिलाओं को पीट-पीट कर मार दिया जाता था या गांव से बाहर कर दिया जाता था. डायन रूपी अंधविश्वास प्रथा पर रोक लगाने के लिए तत्कालीन बिहार सरकार यह कानून लेकर आई थी. 

झारखंड
झारखंड में इसी तरह का कानून है. हालांकि पिछले साल राज्य के हाई कोर्ट ने एक मामले का स्वतः संज्ञान लेकर इस कानून की क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए थे. एक घटना में गुमला गांव में एक ही परिवार के पांच सदस्यों की नृशंस हत्या कर दी गई थी. गांव की परिषद ने इन सभी सदस्यों को डायन की संज्ञा दे दी थी. इसके बाद गांववालों ने सभी को नृशंसता के साथ मार डाला था.

छत्तीसगढ़
2015 में राज्य सरकार ने टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम पारित किया था. इसके तहत किसी महिला या पुरुष को 'टोनही' घोषित करने को अपराध घोषित किया गया. इस शब्द का इस्तेमाल किसी शख्स या कई शख्स के लिए किया जाता था, जो काला जादू, बुरी नजर या ऐसे किसी अन्य तरीके से किसी दूसरे का नुकसान या नुकसान पहुंचाने की शक्ति रखता था या किसी शख्स या जानवर को नुकसान पहुंचाने का इरादा रखता था. कानून के तहत टोनही घोषित करने वाले को अधिकतम पांच साल की जेल का प्रावधान था, जब उस पर टोनही करार दिए गए शख्स के शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न का आरोप सिद्ध हो जाए. इस कानून के तहत ओझा के रूप में किसी दूसरे पर तंत्र-मंत्र या झाड़-फूंक, टोटका को भी अपराध की श्रेणी में लाया गया. 

यह भी पढ़ेंः गुरमीत राम रहीम फिर जेल से बाहर: क्या है पैरोल, क्यों और कैसे दी जाती है?
 
ओडिशा
डायन शिकार निवारण अधिनियम, 2013 के तहत जादू-टोना के इस्तेमाल या डायन प्रथा को अपराध की श्रेणी में लाया गया. यह कानून डायन चिकित्सक के काम का भी आपराधिकरण करता है. इसके तहत इन क्रियाओं से यदि किसी शख्स को नुकसान पहुंचता है, वह घायल होता है तो उसे भी सजा के दायरे में लाया गया. कानून के तहत ऐसे व्यक्ति को कम से कम एक साल और अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया. 

राजस्थान 
कुछ मामलों में राजस्थान का डायन प्रथा निवारण अधिनियम 2015 बेहद कड़ी सजा का प्रावधान रखता है. इसके तहत सरकार कानून का उल्लंघन होने पर किसी एक क्षेत्र के निवासियों पर सामूहिक जुर्माना भी लगा सकती है. यही नहीं, इस अधिनियम के तहत एक क्षेत्र को कानून के तहत आपराधिक कृत्य के लिए संवेदनशील घोषित किया जा सकता है, जिसमें सजा का प्रावधान है. इसका मकसद समानता स्थापित कर न्याय व्यवस्था को लेकर इलाके में शांति बनाए रखते हुए लोगों को अच्छे व्यवहार के लिए प्रोत्साहित करना भी है. 

असम
असम का डायन प्रथा निषेध, रोकथाम, संरक्षण अधिनियम, 2015 किसी शख्स को उसके गांव/क्षेत्र/इलाके या समुदाय पर पड़ने वाला किसी भी दुर्भाग्य के लिए कथित तौर पर दोषी करार देने को अपराध की श्रेणी में लाता है. मसलन सूखा, बाढ़, फसलों का नुकसान, बीमारी या गांव में किसी की मौत के लिए किसी दूसरे शख्स को कथित तौर पर जिम्मेदार ठहराना. इस कानून के तहत पत्थर मार कर जान लेना, घसीटना, फांसी पर लटकाना, सार्वजनिक तौर पर पिटाई, जलाना, बाल काटना या उन्हें जलाना, दांत निकालना, नाक या किसी अन्य शारीरिक अंगों को काटना, चेहरे पर कालिख पोतना, गर्मा सलाखों या किसी अन्य चीज से दागना को भी अपराध घोषित कर सजा का प्रावधान किया गया.

यह भी पढ़ेंः अंततः जो बाइडन की जुबान पर आया सच, पाकिस्तान को बताया खतरनाक देशों में एक

महाराष्ट्र
राज्य सरकार ने 2013 नरबलि और अन्य अमानवीय, दुष्ट और अघोरी क्रिया-कलाप औऱ काला जादू के खिलाफ महाराष्ट्र निषेध और निवारण अधिनियम प्रस्तुत किया. इस कानून के तहत काला जादू, नरबलि, बीमारी के उपचार में झाड़-फूंक और लोगों में अंधविश्वास को विधायी व्यवस्था के तहत कानून के दायरे में लाया गया. इस कानून के जरिए अंधविश्वास पर लगाम लगाने का भी उद्देश्य था, जिसकी वजह से लोगों को वित्तीय नुकसान और शारीरिक चोट पहुंचे. इन अपराधों में दोष सिद्ध होने पर छह महीने से सात साल की सजा समेत 5 हजार से 50 हजार रुपये तक जुर्माने का प्रावधान था. इसके अलावा पुलिस स्थानीय अखबार में आरोपी का नाम और फोटो प्रकाशित कराती थी. यह अलग बात है कि कानून को बने हुए 9 साल हो चुके हैं, लेकिन महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति का दावा है कि सरकार इस कानून को अभी तक लागू नहीं कर सकी है. 

कर्नाटक
कर्नाटक ने भी महाराष्ट्र अधिनियम की तर्ज पर 2020 में अंधविश्वास निरोधी कानून की अधिसूचना जारी की. यह कानून 4 जनवरी 2020 को प्रभावी हो गया. इसके तहत ऐसे 16 कामों को अपराध करार दिया गया जो जादू-टोने, काला जादू और अंधविश्वास के जरिये दूसरों को नुकसान पहुंचाते थे. इस कानून के तहत दोषी पाए गए शख्स को सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है. ऐसे मामले में धारा 302, 307 और 308 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है यानी क्रमशः हत्या, हत्या के प्रयास और आत्महत्या के लिए उकसाना.

केरल
2014 में तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (खुफिया) ए हेमचंद्रन ने 'द केरल एक्सप्लॉयटेशन बाय अंधविश्वास (रोकथाम) अधिनियम' बिल का एक कामकाजी मसौदा तैयार किया. हालांकि इस मसौदे पर आगे कोई प्रगति नहीं हुई और केरल काला जादू के खिलाफ एक व्यापक कानून बनाने में विफल रहा.