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South Korean Halloween Stampede: भीड़ का बढ़ना कैसे और क्यों घातक हो जाता है ?

जहां ऐसे हादसे होते हैं वहां अक्सर कुछ समानताएं देखी गई हैं. समझने की कोशिश करते हैं कि ऐसे हादसे क्यों कर पेश आते हैं...

Updated on: 30 Oct 2022, 03:04 PM

highlights

  • भगदड़ में पैरों तले रौंदे जाने से ज्यादा लोग दम घुटने से मरते हैं
  • अक्सर दहशत में लोग सुरक्षित भाग निकलने के फेर में फंसते हैं
  • कबी-कभार अफवाह भी भगदड़ को जन्म देती है

नई दिल्ली:

ह्यूस्टन के एक म्यूजिक फेस्टिवल में यही हुआ, इंग्लैंड का एक सॉकर स्टेडियम भी ऐसे ही खौफनाक हादसे का गवाह बना. सऊदी अरब में हज के दौरान भी यह घटना कई बार सामने आई, शिकागो के नाइटक्लब समेत अनगिनत भीड़-भाड़ वाली जगहों पर भगदड़ ने दसियों हजार जानों की लीला है. लोगों की भारी भीड़ निकासी वाले स्थान पर सामान्य से कहीं ज्यादा बढ़ जाती है, यही खेल के मैदान पर होता है या किसी कार्यक्रम के दौरान स्टेज की ओर प्रशंसकों या दीवानों का हुजूम टूट पड़ता है. इस हद तक की भारी दबाव के चलते लोगों की नृशंस हत्या हो जाती है. यही इस बार भी दक्षिण कोरिया (South Korea) की राजधानी सिओल (Seoul) में हैलोवीन पार्टी के दौरान हुआ. भीड़ इस कदर तेजी से बढ़ी कि बेहद संकरी सड़क किसी शिकंजे जैसी कस गई, जिसकी चपेट में आकर 140 लोगों की मौत हो गई और 150 से अधिक लोग घायल हो गए. ऐसे त्रासद मामलों की संख्या में कोविड-19 (COVID-19) महामारी के दौरान जबर्दस्त कमी आई थी, क्योंकि लोग लॉकडाउन सरीखे कड़े प्रतिबंधों की वजह से अपने-अपने घरों में कैद रहना पसंद कर रहे थे. अब कोरोना कहर से निजात मिलते ही भीड़ वापस किसी कार्यक्रम में जुटने लगी है. यह भी एक सच्चाई है कि बड़ी भीड़ वाले तमाम आयोजन किसी मौत या चोट के बगैर पूरे भी होते हैं, लेकिन जहां ऐसे हादसे होते हैं वहां अक्सर कुछ समानताएं देखी गई हैं. समझने की कोशिश करते हैं कि ऐसे हादसे क्यों कर पेश आते हैं...

ऐसे आयोजनों में लोग मर कैसे जाते हैं ?
जबर्दस्त भीड़-भाड़ वाली फोटो या वीडियो बताते हैं कि भारी भीड़ की दिल-ओ-जान से भागने की कोशिश में लोग कुचल कर मारे जाते हैं. हालांकि हकीकत यह है कि भीड़ के बढ़ने से मारे जाने वाले अधिसंख्य लोग दम घुटने से काल के ग्रास बनते हैं. ऐसे फोटो और वीडियो में यह नहीं दिखाई पड़ता कि भीड़ के जबर्दस्त दबाव से स्टील के बैरीकेड्स तक टेढ़े हो जाते हैं. इसका सीधा असर यह पड़ता है कि लोगों का दबाव की वजह से सांस लेना तक मुश्किल हो जाता है. लोग खड़े-खड़े भीड़ के दबाव में सांस नहीं ले पाते और मारे जाते हैं. यही नहीं, अगर कोई भगदड़ की वजह से एक बार गिर पड़ा तो उसपर ऊपर से ढेरों शरीर को भारी बोझ आ पड़ता है, जिसकी वजह से वह सांस नहीं ले पाता. नतीजतन दम घुटने से मारा जाता है. इंग्लैंड के सुफोल्क विश्वविद्यालय के क्राउड साइंस के विजिटिंग प्रोफेसर जी कीथ स्टिल के मुताबिक, 'नीचे गिर पड़े लोग उठने की जद्दोजहद शिद्दत से करते हैं. इस फेर में उनके हाथ-पैर एक साथ मुड़ जाते हैं. दहशत और दबाव के चलते दिमाग तक खून की आपूर्ति धीरे-धीरे कम होने लगती है. महज 30 सेकंड में नीचे गिरा शख्स होश खो देता है और लगभग छह मिनट में आप दम घुटने से मर जाते हैं. इस लिहाज से देखें तो अधिकांश मौतों की वजह भगदड़ न होकर दम घुटना होता है.'

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भीड़ के पैरों तले रौंदे जाने के अनुभव कैसा होता है ?
ऐसे हादसों में किसी तरह बच निकले लोग बताते हैं कि वह एक-एक सांस के लिए जद्दोजहद करते रहे. वह खड़े होने की मशक्कत में भारी भीड़ के पैरों तले और गहरे दबते चले जाते हैं. किसी तरह भाग कर जान बचाने को बेताब लोगों की भीड़ नीचे गिरे शख्स पर बढ़ती जाती है. अगर निकासी का दरवाजा बंद है तो दरवाजे के सबसे करीब खड़े शख्स पर पीछे से आ रही भीड़ का दबाव बढ़ता जाता है. यही हाल बाड़बंदी में होता है. भीड़ का दबाव उसकी चपेट में आए शख्स पर बढ़ता जाता है. 1989 में शैफ्लीड, इंग्लैंड में हिल्सबॉरो सॉकर स्टेडियम में ऐसे हादसे में बच निकले लोगों अपना त्रासद अनुभव साझा किया था. उन्होंने बताया, 'धीरे-धीरे वह भीड़ में पिसने से लगे थे. दूसरे लोगों के कंधों और हाथों में फंस उनका सिर तक नहीं हिल पा रहा था. यहां तक कि दहशत की वजह से उनकी सांस रुकने लगी थी.' उन्हें पता था कि लोग मर रहे हैं, लेकिन खुद की जान बचाने की जद्दोजहद उन्हें असहाय बना देती है.  गौरतलब है कि स्टेडियम में हादसे की वजह से लिवरपूल क्लब के 100 के लगभग प्रशंसक मारे गए थे.

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ऐसे हादसे शुरू कैसे होते हैं ?
2003 में शिकागो के नाइट क्लब में दो गुटों में संघर्ष को खत्म कराने के लिए सिक्योरिटी गार्ड्स ने मिर्च पाउडर का इस्तेमाल किया था. इस कारण मिर्च पाउडर से बचने के लिए एक तरफ भीड़ बढ़ने लगी और भगदड़ और उसमें फंस दम घुटने की वजह से 21 लोगों की मौत हो गई थी. इसी महीने इंडोनेशिया में भी आधे से ज्यादा बंद स्टेडियम में पुलिस ने आंसू गैस के गोले दाग दिए थे. इसकी दहशत से निकासी के पास भीड़ का जबर्दस्त दबाव हो गया और 131 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा. 1988 में नेपाल में भी फुटबॉल मैच के दौरान अचानक आई बारिश से बचने के लिए प्रशंसक स्टेडियम के बंद गेट की ओर भाग खड़े हुए. इस कारण मची भगदड़ में फंस दम घुटने से 93 प्रशंसकों की मौत हो गई थी. दक्षिण कोरिया के सिओल के हालिया हादसे में भी कुछ मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि एक बार में किसी सेलिब्रिटी के होने की सूचना से भीड़ उस और टूट पड़ी. संकरी सड़क होने से भगदड़ का आलम हो गया और लोगों को इतनी बड़ी संख्या में अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. हालांकि ऐसे हादसों में बतौर विशेषज्ञ गवाही देने वाले ब्रिटिश प्रोफेसर के मुताबिक 'आग' या 'उसके पास बंदूक है' जैसी भ्रामक बात भी भीड़ को दहशत में डाल देती है और जान बचाने के फेर में ऐसे बड़े हादसे हो जाते हैं. 

कोरोना महामारी की भूमिका
कोरोना काल में भीड़भाड़ वाले आयोजन लगभग बंद हो गए थे, तो ऐसे हादसों में भी कमी आई थी. अब फिर भीड़ जुटने लगी है और ऐसे हादसे सामने आने लगे हैं.