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History of Rawalpindi: पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय रावलपिंडी का इतिहास काफी रोचक है. खास बात यह है कि ये भारत का अभिन्न हिस्सा रहा. यह क्षेत्र प्राचीन गांधार सभ्यता का अहम हिस्सा रहा है, जो बौद्ध संस्कृति, शिक्षा और व्यापार के लिए प्रसिद्ध थी. इतिहासकारों की मानें तो यूनानी इतिहासकार मेगस्थनीज ने भी इस क्षेत्र का उल्लेख किया है. यहां से मिले पुरातात्विक अवशेष इस बात की पुष्टि करते हैं कि रावलपिंडी प्राचीन काल से ही व्यापारिक मार्गों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का केंद्र रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस रावलपिंडी का इतिहास भारत के राजस्थान राज्य से जुड़ा है. इस क्षेत्र का विकास रावल नाम के राजा ने किया जिन्होंने यहां पर 8वीं सदी में पहली चौकी डाली थी. आइए जानते हैं रावलपिंडी से जुड़े रोचक तथ्य और इतिहास.
नाम की उत्पत्ति और लोककथाएं
'रावलपिंडी' नाम के पीछे कई लोककथाएं प्रचलित हैं. माना जाता है कि 'रावल' एक साधु या संत का नाम था और 'पिंडी' का अर्थ बस्ती या गांव होता है. कहा जाता है कि एक रावल नामक संत ने यहां डेरा डाला, जिसके आसपास धीरे-धीरे बस्ती विकसित हुई. यही बस्ती आगे चलकर रावलपिंडी के नाम से जानी गई.
Everyone knows Rawalpindi is father of Pakistan.
— Pakistan Untold (@pakistan_untold) April 29, 2025
But very few know that Maharana Bappa Rawal (ancestor of the great Maharana Pratap) was father of Rawalpindi.
You can't fight your fathers, Asim Munir @OfficialDGISPR.pic.twitter.com/LJe7ykRt6b
वहीं एक और मान्यता है कि रावलपिंडी क्षेत्र में सबसे पहले 8वीं सदी में एक चौकी का निर्माण किया गया. इस चौकी का निर्माण जिसने किया वह राजस्थान के राजपूत घराने से शासक राजा बप्पा रावल थे. यही कारण है कि इस इलाके का नाम रावलपिंडी यानी रावल राजा की ओर से खड़ा किया गया इलाका गांव. यह भी कहा जाता है कि राजा रावल ने इस इलाके से मुगलों को खदेड़ दिया था. उन्होंने 712 ईसवीं में मो. बिन कासिम को हराया और इस इलाके की रक्षा की थी.
मुस्लिम शासन और मध्यकालीन दौर
मध्यकाल में रावलपिंडी पर विभिन्न मुस्लिम शासकों का प्रभाव रहा. गजनवी से लेकर गौरी और बाद में मुगल शासकों के दौर में यह इलाका रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बन गया. मुगल काल में यहां सड़कों, सरायों और बाजारों का विकास हुआ. हालांकि, यह शहर उस समय लाहौर या दिल्ली जितना प्रसिद्ध नहीं था, लेकिन एक मजबूत क्षेत्रीय केंद्र के रूप में इसकी पहचान बन चुकी थी.
सिख शासन और बदलाव की शुरुआत
18वीं सदी के अंत में रावलपिंडी सिख साम्राज्य के अधीन आ गया. महाराजा रणजीत सिंह के शासन में इस क्षेत्र में प्रशासनिक सुधार हुए. सिख काल में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया गया, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिला. इसी दौर में रावलपिंडी की शहरी संरचना में स्पष्ट परिवर्तन देखने को मिले.
ब्रिटिश काल और आधुनिक शहर का निर्माण
1849 में अंग्रेजों ने पंजाब पर कब्ज़ा किया और रावलपिंडी को एक महत्वपूर्ण सैन्य छावनी के रूप में विकसित किया. ब्रिटिश शासन में रेलवे लाइन, चौड़ी सड़कों, चर्चों और शैक्षणिक संस्थानों का निर्माण हुआ. रावलपिंडी धीरे-धीरे एक आधुनिक शहर का रूप लेने लगा. अब भी इस शहर के कई इलाके ब्रिटिश वास्तुकला की याद दिलाते हैं.
रावलपिंडी की सांस्कृतिक विरासत
1947 के विभाजन यानी बंटवारे से पहले रावलपिंडी हिंदू और सिख बहुल कहलाता था. यहां पर 39 से ज्यादा हिंदू मंदिर थे. इसके अलावा गुरुद्वारे भी. मंदिरों की बात करें तो इनमें कृष्ण मंदिर से लेकर शिव मंदिर शामिल थे. वहीं बाबा दयाल गुरुद्वारा भी था. लेकिन अब यहां सिर्फ 3 मंदिर शेष रह गए हैं. जगगणना की बात करें तो 2023 के मुताबिक रावलपिंडी की आबादी 33.5 लाख है. जो पाकिस्तान का चौथा सबसे बड़ा आबादी वाला शहर है.
रावलपिंडी की कौन सी प्रमुख भाषाएं हैं?
रावलपिंडी की प्रमुख भाषाओं की बात करें तो यहां तीन भाषएं ज्यादा बोलीं जाती हैं. इनमें पंजाबी, उर्दू और अंग्रेजी शामिल है.
पाकिस्तान की अस्थायी राजधानी भी रहा रावलपिंडी
बता दें कि 1947 में पाकिस्तान के गठन के बाद रावलपिंडी का महत्व और बढ़ गया. कुछ समय के लिए यह पाकिस्तान की अस्थायी राजधानी भी रहा. बाद में इस्लामाबाद के निर्माण के बावजूद रावलपिंडी ने अपनी राजनीतिक और सैन्य अहमियत बनाए रखी. यह पाकिस्तान की सेना का प्रमुख केंद्र और एक जीवंत महानगर है.
इतिहास और वर्तमान का संगम
रावलपिंडी अतीत और वर्तमान का अनोखा संगम माना जाता है. प्राचीन सभ्यताओं की छाप, औपनिवेशिक इमारतें और आधुनिक जीवनशैली सब कुछ एक ही शहर में देखने को मिलता है. यही विविधता रावलपिंडी को न सिर्फ ऐतिहासिक रूप से, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी खास बनाती है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यहां पर 2463 सरकारी स्कूल हैं. इनमें प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक की सुविधाएं उपलब्ध हैं. रावलपिंडी की साक्षरता दर की बात करें तो यह पाकिस्तान में तीसरे नंबर पर है.
यहीं भारत के खिलाफ साजिश रच रहा आसिम मुनीर
बता दें कि रावलपिंड पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय भी कहा जाता है. पहलगाम हमले के बाद ये सुर्खियां बनीं कि आसिम मुनीर ने इस मुख्यालय से बैठकर भारत के खिलाफ साजिश रची. यहीं से आतंकियों के निर्देश भी मिले.
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