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Gujarat के हड़प्पाकालीन शहर-कब्रिस्तान, 5 हजार साल पहले के इतिहास को लाते सामने

अगर भारत में पांच-छह हजार साल पहले के शहरों के अवशेष मिले हैं, तो इसका मतलब यही निकलता है कि हमारी प्राचीन विरासत भी न सिर्फ विकसित थी, बल्कि अपने दौर में समय से भी काफी आगे थी.

Updated on: 08 Jan 2023, 10:43 AM

highlights

  • कच्छ जिले में मिले हड़प्पा युग के अवशेष प्राचीन भारत का इतिहास ला रहे सामने
  • खोदाई में मिले कब्रिस्तान से पता चलती हैं 5 हजार साल पहले मृत्यु से जुड़ी परंपराएं
  • इसका अर्थ यह है कि प्राचीन मिस्र की तरह विकसित सभ्यता प्राचीन भारत में भी थी

नई दिल्ली:

भारत के अंग्रेजी फिक्शन लेखकों में एक बड़ा नाम अश्विन सांघी (Ashwin Sanghi) का है, जिन्होंने कुछ समय पहले टेड टॉक्स में भारत की प्राचीन गौरव से भरी संस्कृति और परंपराओं का उल्लेख किया था. सरस्वती (Saraswati River) नदी से लेकर हिंदू (Hindu) धर्म पर प्रकाश डालती इस टेड टॉक में अश्विन सांघी ने सरकार से भारत का प्राचीन इतिहास (Ancient History) नई पीढ़ी को देने की मांग की थी. दूसरे शब्दों में कहें तो आधुनिक पीढ़ी भारत के प्राचीन इतिहास, उसका गौरव बखान करते धर्म ग्रंथों से गहराई से परिचित नहीं है. संस्कृत समेत प्राचीन भाषा में लिखे इन ग्रंथों के सरल अनुवाद को नई पीढ़ी को देने की मांग उन्होंने उठाई थी. अश्विन सांघी की इस मांग को गुजरात में हड़प्पा युग (Harappa Era) के सबसे बड़े और प्राचीन कबिस्तान (Necropolis) के सामने आने से और बल मिलता है. यहां मिली कब्रों में मौत के बाद जीवन के लिए शव के साथ निजी जरूरतों की वस्तुओं समेत जानवरों, खाद्यान्न और पानी के बर्तन के साथ दफनाया जाता था. गौरतलब है कि आधुनिक दौर में प्राचीन मिस्र के पिरामिड्स और उनमें दफन ममी दुनिया भर के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं. वहां मिली ममी हजारों साल पुरानी बताई जाती हैं, जिनके साथ उनकी निजी वस्तुएं, खाद्यान्न, सेवक-सेविकाएं और अन्य सामान दफनाया जाता था. इस कड़ी में गुजरात में कुछ साल पहले हड़प्पा युग का शहर खोदाई के बाद वह सभी चीजें उगल रहा है, जिसके लिए प्राचीन मिस्र को सबसे पुरानी सभ्यता करार दे उसका गौरवगान समग्र विश्व कर रहा है. अगर भारत में पांच-छह हजार साल पहले के शहरों के अवशेष मिले हैं, तो इसका मतलब यही निकलता है कि हमारी प्राचीन विरासत भी न सिर्फ विकसित थी, बल्कि अपने दौर में समय से भी काफी आगे थी. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि प्राचीन भारत की यही विरासत नई पीढ़ी के समक्ष पेश की जाए. 

2019 में कच्छ में शुरू हुई थी खोदाई
गौरतलब है कि 2019 में गुजरात के कच्छ जिले के लखपत से लगभग 30 किमी दूर जूना खटिया गांव में खोदाई शुरू हुई और पुरातत्वविदों को कंकाल के अवशेष, चीनी मिट्टी के बर्तन, प्लेट और फूलदान, मनके के आभूषण और जानवरों की हड्डियों के साथ कब्रों की कतारें मिलीं. समय के साथ यह 500 कब्रों की संभावना के साथ हड़प्पा के सबसे बड़े कब्रिस्तान में से एक के रूप में उभरा. अभी तक लगभग 125 कब्र पाई जा चुकी हैं. उत्खनन निदेशक और केरल विश्वविद्यालय में पुरातत्व के सहायक प्रोफेसर राजेश एसवी के मुताबिक, 'ये कब्र 3,200 ईसा पूर्व से 2,600 ईसा पूर्व तक की हैं. यूनेस्को ने धोलावीरा को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया हुआ है. इसके अलावा भी राज्य में और कई हड़प्पाकालीन स्थल पाए गए हैं. यह साइट इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि धोलावीरा जैसी अन्य शहरों के पास या उसके आसपास कब्रिस्तान भी मिला है. इस कड़ी में जूना खटिया के पास कोई बड़ी बस्ती नहीं मिली है.' साइट मिट्टी के टीले की कब्रों से पत्थर की कब्रों तक के सफर को प्रदर्शित करती है. साइट से मिले मिट्टी के बर्तनों की शैली और विशेषताएं सिंध और बलूचिस्तान में खोदाई में मिले प्रारंभिक हड़प्पा स्थलों के समान है.

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प्राचीन मिस्र की ममी जैसी कब्र हैं जूना खटिया में मिले हड़प्पाकालीन कब्रिस्तान में 
खोदाई में मिली आयताकार कब्रें शेल और बलुआ पत्थर से बनाई गई थीं, जो इस क्षेत्र में पाई जाने वाली आम चट्टानें हैं. मिट्टी के कटोरे और व्यंजन जैसी वस्तुओं के अलावा बेशकीमती चीजें जैसे टेराकोटा, समुद्री शेल्स और लापीस लाजुली के मोतियों और चूड़ियों के आभूषणों को मृतकों के साथ ही दफनाया जाता था. राजेश एसवी के मुताबिक अधिकांश कब्रों में पांच से छह बर्तन मिले. एक में 62 बर्तन तक मिले. हमें अभी तक साइट से कोई धातु की कलाकृति या अन्य सामान नहीं मिला है. कुछ कब्रों को बेसाल्ड बोल्डर से ढांका गया हैं. इन कब्रों के निर्माण के लिए स्थानीय चट्टानों, बेसाल्ट, मिट्टी, रेत, कंकड़ आदि का उपयोग किया गया था. मिट्टी का उपयोग कर इन्हें एक साथ बांधा गया था. पांच सहस्राब्दियों से दबी हुई कब्रों पर समय के उतार-चढ़ाव का असर पड़ा है. मिट्टी का कटाव, कृषि के लिए भूमि की जुताई, साथ ही प्राचीन खजाने की तलाश में कुछ लोग कब्रों को खोदते रहे हैं. इस साइट से केवल एक पूरी तरह से बरकरार कंकाल मिला है, जबकि कई कब्रों में कोई मानव अवशेष नहीं मिला. इन सभी का अध्ययन भारत की प्राचीन विरासत और संस्कृति समेत उस युग की आधुनिक सभ्यता और उनकी जीवनशैली पर गहरे से प्रकाश डाल सकता है. इस तरह न सिर्फ भारत का प्राचीन इतिहास नई पीढ़ी के सामने आएगा, बल्कि उन लोगों को भी तसल्ली होगी, जो सरस्वती नदी समेत पौराणिक ग्रंथों और उनके नायकों को काल्पनिक बताते नहीं थकते.