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Global Hunger Index 2022:आखिर क्या है वैश्विक भूखमरी सूचकांक, क्यों पीछे रह जा रहा है भारत

भुखमरी को मापने का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों में से एक '2030 तक शून्य भुखमरी' का शिखर हासिल करना है. यही वजह है कि कुछ उच्च आय वाले देशों में ग्लोबल हंगर इंडेक्स के लिए जीएचआई स्कोर की गणना नहीं की जाती है.

Updated on: 16 Oct 2022, 03:30 PM

highlights

  • भारत की तुलना में नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश की स्थिति कहीं बेहतर
  • पिछले साल भी कम रैंकिंग देखकर भारत ने खारिज कर दी थी जीएचआई इंडेक्स
  • यूरोपीय देश ग्लोबल हंगर इंडेक्स में शीर्ष पर विराजमान, एशिया में चीन-कुवैत आगे

नई दिल्ली:

ग्लोबल हंगर इंडेक्स या वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2022 (GHE) में भारत बीते साल की 101वीं पायदान से फिसल कर अब 107वें क्रम पर आ गया है. कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्टहंगरलाइफ द्वारा संयुक्त रूप से जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स में देशों को उनके यहां भुखमरी की गंभीरता के आधार पर सूचिबद्ध किया जाता है. इस साल सूची में यमन सबसे आखिरी पायदान यानी 121वें क्रम पर है, तो शीर्ष पर यूरोपीय देश (European Countries) क्रोएशिया, एस्टोनिया और मॉन्टेंगरो आए हैं. एशियाई देशों की बात करें तो चीन (China) और कुवैत जीएचआई में शीर्ष पर विराजमान हैं. गौरतलब है कि भारत (India) ने पिछले साल भी अपनी रैंकिंग नीचे देख ग्लोबल हंगर इंडेक्स को ही खारिज कर दिया था.

आखिर है क्या ग्लोबल हंगर इंडेक्स
2000 से लगभग हर साल वैश्विक भुखमरी सूचकांक जारी किया जा रहा है. 2022 में इसका 15वां संस्करण जारी किया गया है. कम स्कोर से किसी देश को उच्च रैंकिंग मिलती है और भुखमरी दूर करने के पैमाने पर उसका प्रदर्शन बेहतर माना जाता है. भुखमरी को मापने का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों में से एक '2030 तक शून्य भुखमरी' का शिखर हासिल करना है. यही वजह है कि कुछ उच्च आय वाले देशों में ग्लोबल हंगर इंडेक्स के लिए जीएचआई स्कोर की गणना नहीं की जाती है. आम बोलचाल में भूख को भोजन की कमी के रूप में लिया जाता है, लेकिन औपचारिक अर्थ में इसकी गणना व्यक्ति द्वारा किए जा रहे कैलोरी सेवन के स्तर को माप कर की जाती है. हालांकि जीएचआई ने भूख की इस संकीर्ण परिभाषा तक ही खुद को सीमित नहीं रखा है. इसके बजाय वह चार प्रमुख पैमानों पर किसी देश के भुखमरी दूर करने में उसके प्रदर्शन को आंकता है. इनमें से एक है भोजन में माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी. इस तरह भुखमरी का एक समग्र खाका सामने आता है. 

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इन चार संकेतकों को आंकता है जीएचआई

  • कुपोषण, जो अपर्याप्त भोजन की उपलब्धता को दर्शाता है. इसकी गणना कुपोषित आबादी की गणना से निकाली जाती है. इसमें भी उन लोगों की गणना खासतौर पर शामिल है, जिनकी कैलोरी सेवन की मात्रा अपर्याप्त है.
  • चाइल्ड वेस्टिंग यानी भयंकर कुपोषण का पैमाना. इसे पांच साल से कम उम्र के ऐसे बच्चों की गणना करके निकाला जाता है, जिनका वजन उनकी लंबाई के सापेक्ष कम होता है.
  • चाइल्ड स्टंटिंग का पैमाना लगभग स्थायी कुपोषण को दर्शाता है. इसकी गणना पांच साल से कम उम्र के बच्चों से की जाती है, जिनका वजन उनकी उम्र के लिहाज से कम होता है.
  • बाल मृत्युदर वास्तव में अपर्याप्त पोषण और अस्वस्थ वातावरण को भी सामने लाती है. इसकी गणना पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर से की जाती है. आंशिक तौर पर ये अपर्याप्त पोषण से होने वाली मौतों का मिश्रित आंकड़ा होता है. 

प्रत्येक देश का डेटा का मानक 100 अंकों पर आधारित होता है और अंतिम गणना पहले और चौथे संकेतक के लिए 33.33 फीसदी और दूसरे और तीसरे संकेतक के लिए 16.66 फीसदी के स्कोर पर टिकी होती है. जिन देशों का स्कोर 9.9 के बराबर या इससे कम होता है, उन्हें भुखमरी के सूचकांक में 'कमतर' श्रेणी पर रखा जाता है. इसके विपरीत 20 से 34.9 स्कोर अर्जित करने वाले देशों को 'गंभीर' श्रेणी में रखा जाता है. 50 से ऊपर स्कोर वाले देशों को 'अत्यंत चिंताजनक' श्रेणी में रखा जाता है.  

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अन्य देशों की तुलना में भारत का स्कोर
भारत 29.1 स्कोर के साथ भुखमरी की 'गंभीर' श्रेणी वाले देशों में आता है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत अपने पड़ोसी देश नेपाल (81), पाकिस्तान (99), श्रीलंका (64) और बांग्लादेश (84) से भी निचले पायदान पर है. बीते कई सालों से भारत का जीएचआई स्कोर लगातार पेशानी पर बल डाल रहा है. 2000 में 38.8 स्कोर के साथ भारत में भुखमरी की 'अत्यंत चिंताजनक' स्थिति थी, तो 2014 में 28.2 के पैमाने पर रही. इसके बाद से तो भारत लगातार उच्च स्कोर ही प्राप्त करता आ रहा है. यद्यपि भारत चार संकेतकों पर लगातार कमतर प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन कुपोषण और चाइल्ड वेस्टिंग संकेतकों पर उसका प्रदर्शन सुधरा है. भारत की आबादी में कुपोषण का स्तर  2014 के 14.8 की तुलना में 2022 में 16.3 रहा है, तो पांच साल से कम उम्र के बच्चों में 2014 की 15.1 की दर 2022 में 19.3 पह पहुंच गई है.