स्वतंत्रता संग्राम में गणेश उत्सव, लोकमान्य तिलक ने क्यों की शुरुआत?
आइए, जानते हैं कि देश में बड़े पैमाने पर गणेश उत्सव (Ganeshotsav) की शुरुआत किसने और क्यों की? भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाए जाने वाले इस त्योहार की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (Indian Freedom Struggle) में क्या भूमिका रही है?
highlights
- महाराष्ट्र और भारत से बढ़कर दुनियाभर में मनाया जा रहा गणेशोत्सव
- तिलक द्वारा शुरू गणेश उत्सव से गजानन राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बने
- गणेश चतुर्थी 2022 पर 300 साल बाद एक अद्भुत संयोग बन रहा हैृ
नई दिल्ली:
देश भर में हर साल बड़े ही धूमधाम से गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2022) का त्योहार मनाया जाता है. इस साल 31 अगस्त बुधवार को घरों- मोहल्लों- मंदिरों और सार्वजनिक स्थानों पर गणपति विराजे हैं. गणपति की भक्ति में डूबे माहौल में आइए, जानते हैं कि देश में बड़े पैमाने पर गणेश उत्सव (Ganeshotsav) की शुरुआत किसने और क्यों की? भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाए जाने वाले इस त्योहार की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (Indian Freedom Struggle) में क्या भूमिका रही है? इसके अलावा गजानन की सामूहिक पूजा-आरती के पीछे क्या धार्मिक और आध्यात्मिक संदेश है?
लोकमान्य तिलक ने किया गणेशोत्सव का श्रीगणेश
देश में सबसे पहली बार साल 1893 में महाराष्ट्र के पुणे में सार्वजनिक तौर पर गणेशउत्सव मनाए जाने की शुरुआत हुई. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ( Lokmanya Bal Gangadhar Tilak) ने गणेशोत्सव को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में सफलता हासिल की. तबसे लगातार बढ़ता गणेशोत्सव महाराष्ट्र और भारत से बढ़कर दुनियाभर में मनाया जाने लगा है. धार्मिक दृष्टिकोण से जुड़े पर्व गणेशोत्सव को आजादी के संघर्ष की ताकत बढ़ाने, जागरूकता फैलाने के साथ ही जातिवाद और छुआछूत को दूर करने का माध्यम भी बनाया गया था. गणेशोत्सव को मनाने में हिंदुओं का साथ देने मुस्लिम, सिख और ईसाई वगैरह भी मिलजुल कर आगे आते हैं.
स्वतंत्रता संग्राम में गणेशोत्सव की भूमिका
साल 1893 से पहले गणेश उत्सव को निजी तौर पर या छोटे पैमाने पर मनाया जाता था. इसके पीछे ब्रिटिश गुलामी, मुगलों समेत बाकी विदेशी आक्रमणकारियों की प्रताड़ना और आम लोगों का मनोबल कम होना वगैरह वजह बताई जाती है. धार्मिक लोग अपने घरों में ही गणपति की पूजा करते थे. स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने देशवासियों की एकता और उनका सामूहिक बव बढ़ाने के लिए गणेशोत्सव पर बड़े आयोजन को धूमधाम से मनाने की शुरुआत की. गणपति पंडाल, पूजा-आरती और विसर्जन के अवसर पर श्रद्धालुओं के मेले को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष को मजबूत करने के लिए उपयोग किया जाता था.
राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए गणपति बप्पा
स्वराज के संघर्ष के लिए लोकमान्य तिलक अपनी बात को जन-जन तक पहुंचाना चाहते थे. इसके लिए उन्हें एक सार्वजनिक मंच की जरूरत थी. इसके लिए उन्होंने गणपति उत्सव को चुना और आगे बढ़ाया. तिलक ने गणेश उत्सव के बाद शिवाजी के नाम पर भी लोगों को आपस में जोड़ा. तिलक द्वारा शुरू गणेश उत्सव से गजानन राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए. पुणे के बाद पूरे महाराष्ट्र और फिर देश-विदेश में फैलते गणेश उत्सव ने आजादी की लड़ाई में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. तब से आज तक लोगों के बीच गणेशोत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है.
ये भी पढ़ें - गणेश चतुर्थी पर PM Modi ने देशवासियों को दिया बधाई संदेश, इस श्लोक को किया ट्वीट
गणेश चतुर्थी की धार्मिक मान्यता
भगवान शिव और माता पार्वती के छोटे सुपुत्र भगवान गणेश को रिद्धि-सिद्धि और सभी सुखों का प्रदाता और विघ्नों का नाशक माना जाता है. सभी धारमिक कार्यों में सर्वप्रथम होने वाली गणेश पूजा से मनचाहे वरदान की प्राप्ति होती है. हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है. गणेश चतुर्थी पर इस बार 300 साल बाद एक अद्भुत संयोग बनने जा रहा है. ज्योतिषियों के मुताबिक लंबोदर योग नक्षत्रों के ऐसे पांच शुभ योग बने हैं जैसे भगवान गणेशजी के पहली बार प्रकट होने के समय थे. भक्त और श्रद्धालु लगातार दस दिनों तक गणपति महोत्सव मनाने वाले हैं.
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