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Babies Taste जी हां, कोख में पल रहा भ्रूण भी स्वाद-गंध समझता है

'साइकोलॉजिकल साइंस' जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक भ्रूण ने जब गाजर का स्वाद लिया, तो उसने हंसते चेहरे का भाव दिया, जबकि मां के गोभी खाने पर रोते हुए चेहरे का भाव दिया.

Updated on: 03 Oct 2022, 08:04 PM

highlights

  • गर्भवती महिला की कोख में पल रहा भ्रूण भी मीठा-तीखा स्वाद समझता है
  • इसी केअनुरूप कोख में ही अपनी भाव-भंगिमाओं को भी प्रदर्शित करता है 

नई दिल्ली:

शोधार्थियों ने पता लगाया है कि कोख (Womb) में भ्रूण न सिर्फ स्वाद और गंध समझता है, बल्कि उनकी मां जो खा रही है उसके फ्लेवर के अनुरूप प्रतिक्रिया भी देता है. दरहम यूनिवर्सिटी के फेटल एंड नियोनेटल रिसर्च लैब के इस शोध में शोधार्थियों ने कोख में पल रहे भ्रूण (Foetus) की भोजन को लेकर प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया. उनके अध्ययन का केंद्र गर्भवती महिला द्वारा खाए जाने वाले मीठे, कड़वे या तीखे स्वाद को लेकर भ्रूण की प्रतिक्रिया को पता लगाना था. 'साइकोलॉजिकल साइंस' जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक भ्रूण ने जब गाजर का स्वाद लिया, तो उसने हंसते चेहरे का भाव दिया, जबकि मां के गोभी खाने पर रोते हुए चेहरे का भाव दिया. 

ऐसे किया गया अध्ययन
18 से 40 के वय की सौ ब्रिटिश महिलाओं के भ्रूणों का अध्ययन किया गया, जो 32 से 36 हफ्तों की गर्भवती थीं. 35-35 महिलाओं को दो समूहों में बांटा गया. पहले वाले समूह की महिलाओं को गाजर फ्लेवर वाला 400 एमजी का कैप्सूल दिया गया, तो दूसरे समूह की महिलाओं को गोभी के पाउडर के फ्लेवर वाला 400 एमजी का कैप्सूल दिया गया. गाजर को इसलिए चुना गया कि वयस्क उसका स्वाद मीठा बताते हैं, जबकि गोभी का स्वाद उसकी तुलना में कड़वा बताया जाता है. इन दो समूहों के अलावा 30 महिलाओं को किसी भी फ्लेवर से दूर तटस्थ रखा गया. अध्ययन के इस समूह में शामिल सभी महिलाओं से कहा गया कि वे स्कैनिंग से एक घंटा पहले कुछ खाएं-पिएं नहीं. इसके साथ ही प्रायोगिक दो समूहों की महिलाओं से कहा गया कि वे स्कैनिंग के दिन गाजर या गोभी से बने भोज्य पदार्थों से परहेज करें. 20 मिनट के इंतजार के बाद शोधार्थियों ने 25 मिनट तक गर्भवती महिलाओं का 4डी अल्ट्रासाउंड किया. फिर उन्होंने भ्रूण के चहरे के भाव और उसकी हलचल का परीक्षण किया. 

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सामने आए ये परिणाम
शोधार्थियों ने पाया कि जिन गर्भवती महिलाओं ने गाजर के फ्लेवर वाला कैप्सूल खाया, उनकी कोख के भ्रूण ने हंसते चेहरे जैसी भाव-भंगिमा के साथ प्रतिक्रिया दी. इसके साथ ही गोभी फ्लेवर कैप्सूल खाने वाली महिलाओं की तुलना में इन भ्रूणों ने ओंठों को भी हिलाया-डुलाया. दूसरी तरफ जिन महिलाओं ने गोभी के फ्लेवर वाला कैप्सूल खाया था, उनके भ्रूण ने रोते हुए चेहरे जैसी प्रतिक्रिया दी. मसलन ऊपरी ओंठ को उठा कर. फिर इन मीठे और कड़वे समूह वाले भ्रूणों का मिलान तटस्थ समूह की महिलाओं की कोख में पल रहे भ्रूणों से किया गया. पाया गया कि गाजर या गोभी के पाउडर का जरा सा प्रभाव उनमें प्रतिक्रिया जगाने में कामयाब रहा. इसके अतिरिक्त यह भी पाया गया कि रोते या हंसते हुई भाव-भंगिमा कैप्सलू खाने के आधे घंटे के बाद सामने आई. इसका यह अर्थ निकलता है कि इतना समय पाचन क्रिया में लगा और फिर वह गर्भवती महिलाओं के खून, चया-पचय क्रिया के बाद भ्रूण से जुड़ी गर्भनाल के जरिये उनके पास पहुंचा.

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क्या है इसका महत्व
एक तरफ जहां बच्चे के जन्म के बाद परिणाम बताते हैं कि कोख में पल रहे बच्चे भी स्वाद और गंध समझते हैं. वहीं यह पहला अध्ययन है जो बच्चे के जन्म से पहले कोख में उनकी प्रतिक्रिया को सामने लाता है. शोधकर्ताओं का दावा है कि गर्भवती महिलाओं द्वारा खाए जाने वाले भोजन का बच्चे की खाने की प्राथमिकताओं पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है और बाद में उनके खाने की आदतों में सुधार हो सकता है. दरहम यूनिवर्सिटी के फेटल और नियो नेटल रिसर्च लैब के प्रमुख शोधार्थी बेयजा उस्तुन कहते हैं, 'हमारा मानना है कि जन्म से पहले भ्रूण को अलग-अलग फ्लेवर से परिचित करा उसके जन्म लेने के बाद उसकी भोजन की प्राथिमकताओं को तय करने में मदद करेगा. यह ऐसे माहौल में और महत्वपूर्ण हो जाता है जब सभी स्वस्थ खान-पान की वकालत कर रहे हैं. इसके जरिये बच्चे की खाने को लेकर तुनुकमिजाजी को दूर किया जा सकेगा.' अब शोधार्थी कोख में टेस्टेंस का अध्ययन कर रहे हैं खासकर जब बच्चा उनके संपर्क में आता है. बच्चे की खान-पान के लिहाज से यह एक महत्वपूर्ण शोध रहा.