Arctic Ice तेजी से पिघल महासागर को बना रही अम्लीय, जीवन को खतरा ऐसे
आर्कटिक महासागर की रासायनिक संरचना कहीं अधिक तेजी से अम्लीय हो रही है, जो महासागर में पाए जाने वाले विविध समुद्री जीवों, पौधों समेत शुद्ध महासागर पर आश्रित सजीव प्रजातियो के जीवन के लिए गंभीर खतरे वाली बात साबित होगी.
highlights
- आर्कटिक महासागर के पश्चिमी क्षेत्र की रासायनिक संरचना में तेजी से बदलाव
- अम्लीय स्तर में तीन से चार गुना की वृद्धि पर शोधकर्ताओं ने चेतावनी जारी की
- इससे विविध जीवित प्रजातियों के समक्ष गंभीर खतरा खड़ा होने वाला है
नई दिल्ली:
अन्य महासागरों की तुलना में आर्कटिक (Arctic) महासागर के पश्चिमी क्षेत्र की रासायनिक संरचना में बदलाव के तहत अम्लीय स्तर में तीन से चार गुना की वृद्धि होने पर शोधकर्ताओं ने गंभीर चेतावनी जारी की है. शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि बर्फ के पिघलने की तेज दर और महासागर (Oceans) के अम्लीकरण की दर में परस्पर मजबूत संबंध भी है. 'साइंस' जर्नल में प्रकाशित यह शोध आर्कटिक महासागर के अम्लीकरण का पहला विश्लेषण है, जिसके लिए 1994 से 2020 तक के डेटा का इस्तेमाल किया गया. वैज्ञानिकों ने चेताया है कि 2050 तक आर्कटिक के इस क्षेत्र की बर्फ साल दर साल और गर्म हो रही गर्मियों के सामने टिक नहीं पाएगी. परिणामस्वरूप महासागर की रासायनिक संरचना और अम्लीय हो जाएगी और विविध समुद्री जीवों, पौधों और शुद्ध महासागर पर निर्भर सजीव प्रजातियों के जीवन को खतरे में डालने का काम करेगी.
उदाहरण के लिए केकड़े को ही ले लें, जो समुद्री पानी पाए जाने वाले कैल्शियम कार्बोनेट से बने क्रस्टी शेल में रहता है. ध्रुवीय भालू अपने खाने के लिए स्वस्थ मछलियों की बड़ी संख्या पर निर्भर है. इसी तरह मछलियां और समुद्री पक्षी प्लवक (प्लैंकटन) और पौधों पर निर्भर हैं. इसके अलावा सी-फूड इंसानी भोजन के रूप में अधिसंख्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. समुद्री पानी सामान्य रूप से क्षारीय होता है, जिसका pH मान लगभग 8.1 होता है. इस शोध के पहले लेखक जियामेन और किंगदाओं के शोध संस्थानों के साथ काम करने वाले डीक्यूई थे. उन्होंने सिएटल, स्वीडन, रूस और छह अन्य चीनी रिसर्च साइट्स के सहयोग से इस शोध को अंजाम दिया.
ये सभी शोधार्थी pH में तेजी से आ रही कमी के लिए मुख्यतः समुद्री बर्फ को ही जिम्मेदार मानते हैं, क्योंकि इसकी वजह से ही सतह के समुद्री पानी में तीन तरह से बदलाव आता है. पहला समुद्री बर्फ के नीचे का पानी, जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड की कमी थी. वह अब वायुमंडल में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड के संपर्क में आकर खुद ही अपनी रासायनिक संरचना बदल रहा है. बर्फ के पिघलने से बनने वाला पानी समुद्री पानी से मिलने के बाद हल्का रहता है और गहराई पर पाए जाने वाले पानी से आसानी से नहीं मिलता. इसका अर्थ यह हुआ कि सतह पर कार्बन डाइऑक्साइड सकेंद्रित रहती है. बर्फ के पिघलने से बना पानी समुद्री पानी में कार्बोनेट आयन की सांद्रता को कम कर देता है. इस कारण कार्बन डाइऑक्साइड की बाइकार्बोनेट को निष्क्रिय करने की क्षमता कम हो जाती है. इस कारण तेजी से समुद्री पानी का pH कम हो रहा है और वह अम्लीय बन रहा है.
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