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Electoral Bonds Scheme Know Big Points Of Supreme Court Verdict ( Photo Credit : Social Media)
Electoral Bonds Scheme Verdict: चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) स्कीम को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को अहम फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक माना है. शीर्ष अदालत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने पीठ की सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया है. फैसले को लेकर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस फैसले को लेकर दो तरह के मत हैं हालांकि इन दोनों ही मतों का निष्कर्ष समान है. आइए जानते हैं कि चुनावी बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अहम बातें.
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इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें
- देश की शीर्ष अदालत ने माना कि चुनावी बांड स्कीम सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है.
- सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में लोगों को जानने का अधिकार है.
- चुनावी बॉन्ड की वजह से चंदे के बारे में तो पता चलता है, लेकिन किसने दिया इसकी जानकारी नहीं मिलती.
- CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा- क्या 19(1) ए के तहत सूचना के अधिकार में राजनीतिक फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार शामिल है?
- सर्वोच्च अदालत ने अपने वरडिक्ट में कहा कि इस कोर्ट ने सामाजिक, सांस्कृति, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों के बारे में जानकारी के अधिकार को मान्यता दी. यह महज राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं, इसका मकसद लोकतंत्र के सिद्धांत को भी आगे बढ़ाना है.
- मुख्य न्यायाधीश ने साफ कहा कि आरटीआई के तहत राजनीतिक दलों की फंडिंग भी शामिल होगी.
- देश की जनता को ये जानने का हक है कि राजनीतिक दलों के पैसा कहां से आता है और इसका इस्तेमाल कहां होता है.
- कोर्ट ने ये भी साफ किया कि कम से कम इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजक्शन और चुनावी ट्रस्ट जैसे माध्यमों से योगदान प्रतिबंधात्मक साधन है.
- कोर्ट ने कहा कि इस तरह काले धन पर अंकुश लगाने में इलेक्टोरल बॉन्ड कोई आधार नहीं बनता.
- सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि हम सरकार की दलीलों से संतुष्ट नहीं हैं. सरकार ने इस योजना का मकसद काले धन पर लगाना बताया था, लेकिन इससे जनता के
अधिकार पर असर पड़ता है, ये योजना आरटीआई का उल्लंघन है.
- कोर्ट के मुताबिक सरकार की ओर से दानदाताओं की गोपनीयता रखना जरूरी बताया गया, लेकिन अदालत इससे सहमत नहीं है.
- आयकर एक्ट में 2017 में किया गया बदलाव (इसमें बड़े चंदे को गोपनीय रखना) असंवैधानिक है.
- कंपनी एक्ट में किया गया बदलाव भी असंवैधानिक
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- 6 मार्च तक SBI सभी राजनीतिक दलों को मिले चंदे की जानकारी चुनाव आयोग को दे.
- 13 मार्च तक यह जानकारी चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे
- जितने बॉन्ड अबतक कैश नहीं हुए हैं सभी पॉलिटिकल पार्टीज उन्हें बैंक को लौटा दें.
सरकार कब लाई थी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम
जिस चुनावी बॉन्ड को लेकर हर तरफ चर्चाएं हो रही हैं बता दें कि इस बॉन्ड स्कीम को भारत सरकार की ओर से इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का कानून वर्ष 2017 में लाया गया था. इसका मकसद था राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को एक सिस्टेमिटक तरीके से लाना और काले धन पर लगाम लगाना था. हालांकि इसको लेकर कुछ दिक्कतें थीं, जिसके विरोध में अदालत का दरवाजा खटखटाया गया.
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की शुरुआत राजनीतिक दलों को मिलने वाली फंडिंग में ट्रांसपरेंसी लाने के तहत की गई थी. इसे पॉलिटिकल पार्टी को दिए जाने वाले कैश चंदे के विकल्प के रूप में भी देखा गया. इस चुनावी बॉन्ड को SBI की देशभर में कुल 29 ब्रांचों से कलेक्ट किया जा सकता था. इन बॉन्ड को कोई भी नागरिक, कंपनी या संस्था ले सकती थी और इसके जरिए किसी भी राजनीतिक दल को चंदा दे सकती थी.
बॉन्ड की शुरुआत 1000 रुपए से लेकर 1 करोड़ रुपए तक हो सकती थी. इस बॉन्ड की खासियत थी कि इसमें चंदा देने वाले का नाम शामिल नहीं होता था. बता दें कि इस बॉन्ड को वहीं राजनीतिक दल ले सकते थे जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं. इसके अलावा इन राजनीतिक दलों के बीते लोकसभा या फिर विधानसभा चुनाव में 1 फीसदी से ज्यादा वोट मिला हो.
Source : News Nation Bureau