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दिल्ली की शराब नीति पर क्यों हो रहा विवाद? साधारण भाषा में समझें पूरा मामला

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की शराब नीति इन दिनों खूब चर्चा में है. शराब नीति पर विवाद के चलते दिल्ली के मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया सवालों के घेरे में आ गए हैं. उनके घर और उनसे जुड़े अन्य ठिकानों पर सीबीआई व ईडी की रेड पड़ रही है

Updated on: 21 Aug 2022, 02:05 PM

नई दिल्ली:

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की शराब नीति इन दिनों खूब चर्चा में है. शराब नीति पर विवाद के चलते दिल्ली के मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया सवालों के घेरे में आ गए हैं. उनके घर और उनसे जुड़े अन्य ठिकानों पर सीबीआई व ईडी की रेड पड़ रही है. हालांकि मनीष सिसौदिया ने खुद को बेकसूर बताते हुए दिल्ली की शराब नीति को अब तक की सबसे अच्छी पॉलिसी बताया है. यहां तक कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसको बीजेपी और केंद्र सरकार की बौखलाहट बताया है. सीएम केजरीवाल का कहना है कि क्योंकि दिल्ली सरकार हेल्थ और एजुकेशन समेत हर क्षेत्र में शानदार काम कर रही और विदेशी मीडिया भी दिल्ली मॉडल की खुली तारीफ कर रही है. ऐसे में बीजेपी सरकार को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा और उन्होंने दिल्ली के मंत्रियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है. वहीं, बीजेपी शराब नीति को लेकर दिल्ली सरकार पर लगातार हमलावर है और इसमें भ्रष्टाचार का बड़ा खेल होने का आरोप लगा रही है. खैर ये सब तो राजनीतिक बयानबाजी है जो चलती रहती है...इस बीच हम आपको बताते हैं कि आखिर दिल्ली की शराब नीति को लेकर इतना हो-हल्ला क्यों है.

सरकार को शराब की बिक्री से मोटा राजस्व 

देखिए शराब एक खराब चीज है और इसका अधिक मात्रा में सेवन स्वास्थ के लिए हानिकारक है. यही वजह है कि सरकार भी शराब की बोतलों पर इससे होने वाले नुकसान की चेतावनी देती है. अब आप सोच रहे होंगे की अगर शराब में इतनी खराबी है तो सरकार इसको बंद क्यों नहीं कर देती. इसका जवाब यह है कि सरकार को शराब की बिक्री से राजस्व का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है, जिसका इस्तेमाल सरकारी योजनाओं में किया जाता है. ऐसे में हर सरकार अपना राजस्व बढ़ाना चाहती है. यही दिल्ली सरकार के साथ भी हुआ. 

शराब नीति में कुछ बदलाव किए

दिल्ली सरकार ने अपना राजस्व बढ़ाने के लिए शराब नीति में कुछ बदलाव किए हैं.  जानकारी के अनुसार दिल्ली सरकार ने पिछले दिनों राजधानी में बाहरी राज्यों से बड़ी मात्रा में आ रही शराब की कई गाड़ियां पकड़ी थीं. जिसके आधार पर माना गया कि दिल्ली में प्राइवेट दुकानों पर धड़ल्ले से पड़ोसी राज्यों की शराब अवैध रूप से बेची जा रही है, जिसकी वजह से दिल्ली सरकार को भारी राजस्व घाटा उठाना पड़ रहा है. क्योंकि बाहर से आने वाली शराब दिल्ली के मुकाबले काफी सस्ती होती है, इसलिए इसकी खपत भी ज्यादा है. क्योंकि प्राइवेट दुकानों पर सरकारी दुकानों की तुलना में शराब की अधिक सेल हो रही थी तो दिल्ली सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए सरकारी दुकानों को खत्म कर दिया और प्राइवेट दुकानों को ही शराब बेचने का ऑफर दिया. जिसके चलते दिल्ली में शराब की 100 प्रतिशत दुकानें प्राइवेट हाथों में चली गईं. इसके साथ ही सरकार ने प्राइवेट प्लेयर्स को दुकान का लाइसेंस प्राप्त करने में भी भारी छूट दी व कई तरह के आकर्षक ऑफर भी दिए. 

राजधानी को 32 जोन में बांटा गया और 850 में 650 दुकानें खोली गईं

नई नीति के तहत दिल्ली में होटलों, बार, रेस्टोरेंट्स को रात 3 बजे तक खुले रखने और शराब परोसने की छूट दी गई. शराब की होम डिलीवरी की भी छूट दी गई. जबकि इससे पहले इस तरह के प्रावधानों पर रोक थी. शराब की नई नीति के तहत राजधानी को 32 जोन में बांटा गया और 850 में 650 दुकानें खोली गईं.  आम आदमी सरकार यह नीति नवंबर 2021 में लेकर आई, जिसके अंतर्गत दिल्ली की सभी सरकारी दुकानों को प्राइवेट कर दिया गया. आप सरकार की यह नीति काम कर गई और सरकार को 27 प्रतिशत अधिक राजस्व प्राप्त हुआ, जिससे दिल्ली सरकार को 89 हजार करोड़ का फायदा हुआ. 

उपराज्यपाल से लेनी थी स्वीकृति 

लेकिन यह नीति कैबिनेट को लानी थी और उस पर उपराज्यपाल से स्वीकृति भी लेनी थी. लेकिन इस नीति को अप्रूव नहीं कराया गया. इस बात से उप राज्यपाल और कैबिनेट सचिव नाराज हो गए. कैबिनेट सचिव ने उप राज्यपाल से इस मामले की शिकायत की, जिसमें मनीष सिसौदिया पर अनियमितताओं और अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के आरोप लगे.