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चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग( Photo Credit : News Nation)
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चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग( Photo Credit : News Nation)
China's overseas military bases: दुनिया किसी कीमत पर तीसरा विश्वयुद्ध नहीं चाहती. यही वजह है कि जंग के ऐसे कई मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय दबाव काम कर जाता है, लेकिन महाशक्तियों के बीच की होड़ लगातार महायुद्ध के हालात बनाती है. अब चीन को लेकर ऐसा खुलासा हुआ है जो दुनिया के लिए बड़ी चेतावनी है. चीन विदेशों में अपने कई सैन्य अड्डे बनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है. क्या ये ताइवान को लेकर अमेरिकी रणनीति का जवाब है और साथ ही क्या इसमें भारत के लिए भी खतरे का अंदेशा है. अगर ऐसा है तो भारत इसके लिए कितना तैयार है?
अपने सैन्य अड्डे क्यों बढ़ा रहा चीन?
चीन अपनी विस्तारवादी नीति पर लगातार आगे बढ़ रहा है. इस बात का खुलासा अमेरिकी थिंक टैंक माने जाने रैंड की एक ताजा रिपोर्ट में सामने आई है. रैंड कॉर्पोरेशन की नई रिपोर्ट के मुताबिक चीन कई देशों में अपना आर्मी बेस स्थापित करने की तैयारी जोर शोर से कर रहा है. साथ ही खुलासा किया गया है कि कैसे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी पीएलए और पीपुल्स आर्म्ड पुलिस यानी पीएपी के लिए अपनी वैश्विक सैन्य पहुंच को विस्तार देना चाहता है. पीएलए के विदेशी संचालन को और ज्यादा आक्रामक बनाने के लिए बेस एक्सेस समझौतों पर बातचीत आगे बढ़ा रहा है.
किन-किन देशों में चीनी सैन्य अड्डे
रैंड की ताजा रिपोर्ट में इस बात का खुलासा है कि चीन, कंबोडिया, इक्वेटोरियल गिनी, नामीबिया, सोलोमन द्वीप, संयुक्त अरब अमीरात और वानुअतु सहित कई देशों में अपनी सैन्य मौजूदगी के लिए लगातार कोशिशें कर रहा है. चीन का विदेश में पहले से केवल एक सैन्य अड्डा अफ्रीका के हॉर्न पर स्थित जिबूती में है, साथ ही वो ताजिकिस्तान में एक अर्धसैनिक चौकी संचालित कर रहा है. इन देशों के अलावा, न्यूजवीक ने मार्च 2024 में बताया था कि चीन क्यूबा, पाकिस्तान, तंजानिया, श्रीलंका और म्यांमार में भी जल्द से जल्द अपने सैन्य अड्डे बनाने की फिराक में है.
जिस तरह से चीन अपने सैन्य अड्डों को बढ़ा रहा है, उससे युद्ध भड़कने का जोखिम और कई गुना बढ़ जाता है. इस वक्त जब दुनिया दो भयानक युद्धों एक तरफ रूस-यूक्रेन वार है तो दूसरी तरफ इजरायल हमास जंग का सामना कर रही है. ऐसे में विदेशों में सैन्य अड्डे बढ़ाने की चीन की खुराफाती रणनीति को संदेह की नजरों से देखा जा रहा है. सवाल है क्या चीन अपनी सुरक्षात्मक जरूरतों को पूरा करने के लिए विदेशों में सैन्य अड्डे बढ़ाना चाहता है या चीन की इस चाल में एक और महायुद्ध की तैयारी की झलक है?
दिलचस्प तथ्य ये है कि चीन, विदेशों में अपने सैन्य अड्डे बनाने के लिए दुनिया भर के देशों में खास रणनीति के तहत पहले निवेश करता है. फिर धीरे-धीरे अपनी सैन्य मैजूदगी को पुख्ता करने की कोशिशें शुरू कर देता है. ताजा रैंड रिपोर्ट से पता चलता है कि विदेशी ठिकानों में पीएलए की नेवल और एयर फोर्स की डिफेंस एक्टिविटी में वृद्धि चीन के रुख को और आक्रामक कर सकती है.
चीन क्या मकसद बताता है?
हालांकि रैंड रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशों में सैन्य अड्डे बढ़ाने की चीन की रणनीति के पीछे गैर-युद्धक अभियानों के साथ ही खुफिया जानकारी इकट्ठा करने जैसे शांतिकालीन अभियान का उद्देश्य बताया गया है. साथ ही नए सैन्य ठिकानों से चीन की प्राथमिकता समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा और संभावित अमेरिकी नाकेबंदी का जवाब देना बताया गया है. लेकिन चीन की नियत और उसके आक्रामक रवैए को देखते हुए इस पर भरोसा कम हो जाता है और उन सैन्य ठिकानों का युद्ध में इस्तेमाल नहीं होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है.
यही वजह है कि रैंड रिपोर्ट में ये बताने के बावजूद कि चीन के ऐसे संभावित सैन्य ठिकाने से अगले दशक में अमेरिकी सैन्य हितों के लिए कोई बड़ा खतरा पैदा होने की संभावना नहीं है. कई रक्षा विशेषज्ञ चीनी सैन्य प्रौद्योगिकी और रणनीतिक योजना में तेजी से हो रही प्रगति को लेकर चिंतित हैं और ऐसा मानते हैं कि विदेशों में सैन्य अड्डे स्थापित कर चीन अमेरिका को काउंटर करने की फिराक में है.
संभावित खतरे
क्योंकि चीन किसी भी संभावित संघर्ष, जैसे ताइवान पर आक्रमण या नाकेबंदी में अपने कैरियर को फ्लोटिंग कमांड सेंटर के रूप में इस्तेमाल कर सकता है. क्यूबा में आर्मी बेस बनाने के साथ ही चीन अमेरिकी सेना के लिए चैलेंज बन सकता है. इसके अलावा चीन फ्लोरिडा में अमेरिकी नौसेना के ठिकानों पर हमला करने, अमेरिकी जहाजों की आवाजाही रोकने और दक्षिणपूर्वी अमेरिका के ऊपर विमानों को मार गिराने के लिए क्यूबा में लंबी दूरी की मिसाइलें तैनात कर सकता है.
इस बीच विदेशों में चीन के संभावित नए सैन्य अड्डे से भारतीय चिंता को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है. चीन अपनी आर्थिक ताकत का इस्तेमाल पाकिस्तान के ग्वादर और श्रीलंका के हंबनटोटा में बेस पहुंच हासिल करने के लिए करेगा, जिससे उसका जिबूती का आर्मी बेस और मजबूत होगा. ऐसी सूरत में चीन हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है. इससे घेरेबंदी जंग की आशंका भी तेज होगी. सवाल है भारत इसके लिए कितना तैयार है?
Source : News Nation Bureau