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मुक्ति दिवस की सियासत, बीजेपी साध रही केसीआर और ओवैसी पर निशाना

'हैदराबाद राज्य मुक्ति दिवस' पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सिकंदराबाद में तिरंगा फहराया, तो मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने हैदराबाद में राष्ट्रीय ध्वज फहराया. दिवस एक ही था, लेकिन इसे राज्य में दो अलग-अलग शहरों में अलग-अलग नामों से मनाया गया.

Updated on: 17 Sep 2022, 02:24 PM

highlights

  • हैदराबाद की रियासत के भारत में विलय को हो गए 75 साल
  • बीजेपी तीन राज्यों में इसे हैदराबाद मुक्ति दिवस बतौर रही मना
  • टीआरएस तेलंगाना राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में रही है मना

नई दिल्ली:

शनिवार को हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में विलय के 75 साल हो गए हैं. इस कड़ी में शनिवार को तेलंगाना में दो अलग-अलह शहरों में केंद्र और राज्य सरकार ने राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर मुक्ति दिवस को मनाया. 'हैदराबाद राज्य मुक्ति दिवस' के तहत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने सिकंदराबाद के परेड ग्राउंड में तिरंगा फहराया, तो सूबे के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (K Chandrasekhar Rao) ने 'तेलंगाना एकता दिवस समारोह' के नाम से हैदराबाद के पब्लिक गार्डन में राष्ट्रीय ध्वज फहराया. गौरतलब है कि भारत (India) को जब 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से आजादी मिली, तो 500 के आसपास रियासतों के भारतीय संघ में विलय की कवायद चल रही थी. हैदराबाद (Hyderabad Nizam) के निजाम ने रियासत के विलय से इंकार कर दिया था. तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) ने बेहद तल्ख लहजे में टिप्पणी की थी, 'स्वतंत्र हैदराबाद आजाद भारत के पेट में कैंसर जैसा लगेगा.' यह अलग बात है कि बाद के राजनीतिक घटनाक्रम में हैदराबाद ने भी भारत में विलय का निर्णय कर लिया था.

हैदराबाद के निजाम का भारत में विलय के खिलाफ अड़ियल रवैया
1940 के दशक में वामपंथियों की अगुवाई में निजाम की सरकार के खिलाफ हैदराबाद में किसान आंदोलन शुरू हुआ था. हैदराबाद रियासत के नवस्वतंत्र भारतीय संघ में विलय को लेकर जब चर्चा शुरू हुई तो निजाम और राजशाही के अन्य सदस्य स्वतंत्र हैदराबाद के पक्ष में थे. हालांकि रियासत की अवाम का एक बड़ा तबका और किसान आंदोलनकर्ता भारत में विलय के पक्षधर थे. इस आंदोलन को कुचलने के लिए निजाम ने रजाकार के नाम से गठित निजी सेना को उतार दिया. रजाकारों ने आंदोलनरत किसानों को आतंकित कर दबाना-कुचलना शुरू कर दिया. विलय के पक्षधर लोगों को कुचलने के लिए रजाकारों को निजाम को ओर से खुली छूट मिली हुई थी. नतीजतन रजाकारों ने गांव के गांवों में न सिर्फ लूटपाट की, बल्कि बड़े पैमाने पर कत्ले आम किया. 27 अगस्त 1948 को भैरन पल्ली के 96 गांव वालों की नृशंस हत्या कर दी गई. ऐसे में 17 सितंबर को भारतीय सेना ने रियासत में प्रवेश किया, जिसमें आज के तेलंगाना समेत महाराष्ट्र और कर्नाटक का कुछ हिस्सा आता था. ऑपरेशन पोलो के नाम से छेड़े गए भारतीय सेना के इस अभियान के हफ्ते भर बाद रजाकारों के दस्तों समेत निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया.

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राजनीतिक बिसात 
गौरतलब है कि अगले साल तेलंगाना में विधान सभा चुनाव होने हैं. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी इस ऐतिहासिक दिवस की वर्षगांठ को टीआरएस प्रमुख व सीएम के चंद्रशेखर राव और उनके सहयोगी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के सर्वेसर्वा और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ राजनीतिक बढ़त लेने का एक अवसर बतौर देख रही है. भाजपा नें सत्तारूढ़ दल पर अपने शासन के आठ सालों में एक बार भी इस दिवस को नहीं मनाने को लेकर तीखा हमला बोल रखा है. बीजेपी का यह हमला इसलिए भी तीखा है कि इस बहाने पार्टी टीआरएस सरकार पर यह आरोप लगा रही है कि केसीआर ने ओवैसी को नाराज नहीं करने का जोखिम मोल लेते हुए यह दिवस एक बार भी नहीं बनाया. 

रजाकारों के एमआईएम और फिर एआईएमआईएम से संबंध
रजाकारों के मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन या एमआईएम से संबंध थे. ऐसे में बीजेपी ओवैसी पर रजाकारों से जोड़ कर पेश कर रही है. इस आरोप के खिलाफ ओवैसी का कहना है कि मूल मजलिस का 17 सितंबर 1948 के बाद अस्तित्व ही खत्म हो गया. इतिहासवेत्ता मोहम्मद नूरुद्दीन खान के मुताबिक एमआईएम के तत्कालीन अध्यक्ष कासिम रिजवी और अन्य वरिष्ठ नेता अब्दुल वाहिद ओवैसी को एमआईएम की बागडौर सौंप कर पाकिस्तान चले गए थे. अब्दुल वाहिद वास्तव में असदुद्दीन ओवैसी के पड़दादा था. उसके पहले तक अब्दुल वाहिद ओवैसी का एमआईएम से कोई सरोकार नहीं था. 

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बीजेपी ने इस तरह ली बढ़त
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ का दावा है कि तेलंगाना राष्ट्रीय एकता दिवस मनाने की घोषणा टीआरएस ने तब की, जब केंद्र सरकार पहले ही राष्ट्रीय मुक्ति दिवस मनाने की घोषणा कर चुकी थी. गौरतलब है कि महाराष्ट्र और कर्नाटक इस दिवस को क्रमशः मराठवाड़ा मुक्ति दिवस और हैदराबाद-कर्नाटक मुक्ति दिवस के रूप में मनाते हैं. इन दोनों ही राज्यों के कुछ हिस्से तत्कालीन हैदराबाद की रियासत में आते थे. केंद्र सरकार तीनों ही राज्यों में मुक्ति दिवस के कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा कर चुकी थी. बीजेपी की राज्य ईकाई के प्रमुख बंदी संजय कुमार इस महीने की शुरुआत में ही कहते पाए गए थे, 'मुक्ति दिवस मनाने की केंद्र सरकार की घोषणा के बाद ही राज्य सरकारों ने इस दिशा में पहल की. न सिर्फ टीआरएस, बल्कि कांग्रेस और एआईएमआईएम ने भी इस दिवस को मनाने की घोषणा की. मुक्ति दिवस को तेलंगाना मुक्ति दिवस के रूप में मनाने की घोषणा विगत कई सालों से करती आ रही है.'