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Karnataka Elections: 66 वर्षों में बेंगलुरु ने सिर्फ 6 महिलाओं को विधायक चुना, इनमें भी 3 दो बार... जानें

सौम्या रेड्डी, प्रमिला नेसारगी और शोभा करंदलाजे उन छह महिलाओं में शामिल हैं, जो 1957 से अब तक बेंगलुरु शहर सीटों से विधानसभा के लिए चुनी गई हैं.

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Nihar Saxena
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सौम्या रेड्डी, शोभा करंदलाजे और प्रमिला नेसारगी.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Elections 2023) के लिए मतदान की तारीख हर गुजरते दिन के साथ और नजदीक आती जा रही है. इसके पहले बेंगलुरु (Bengaluru) शहर की विधानसभा सीटों को लेकर एक बेहद रोचक आंकड़ा सामने आया है. पिछले 66 सालों में नागरत्नम्मा हिरेमथ, लक्ष्मीदेवी रमन्ना, ग्रेस टकर, प्रमिला नेसारगी, शोभा करंदलाजे और सौम्या रेड्डी सरीखी चंद महिलाएं हैं, जो बेंगलुरु शहर की सीटों से विधानसभा पहुंचीं. इनमें से तीन क्रमशः नागरत्नम्मा, ग्रेस और प्रमिला दो बार निर्वाचित हुई हैं. इसका सीधा सा अर्थ यह निकलता है कि कर्नाटक (Karnataka) की राजधानी ने लगभग सात दशकों में सिर्फ नौ महिला विधायक चुनी हैं. यानी 1957 से 2018 के बीच बेंगलुरु से चुने गए 203 विधायकों में से केवल 4 फीसदी ही महिलाएं थीं. यही नहीं, अब तक हुए 14 चुनावों में 157 महिलाएं चुनावी समर में उतरीं, लेकिन निर्वाचित महिला विधायकों की संख्या 5 फीसदी से कुछ अधिक है. जाहिर है ऐसे में महिला आरक्षण कानून (Women's Reservation Bill) की प्राथमिकता और बढ़ जाती है. खासकर जब अन्य क्षेत्रों में महिलाएं शिखर को छू रही हैं. 

एचडी देवेगौड़ा ने महिला प्रतिनिधित्व बिल पर पीएम मोदी को लिखा पत्र
संभवतः इसी वजह से विगत दिनों पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए एक तिहाई आरक्षण की मांग करने वाले महिला प्रतिनिधित्व विधेयक को पारित करने पर विचार करने के लिए लिखा था. लक्ष्मी हेब्बलकर जैसी कुछ महिला विधायकों का कहना है कि बेहतर प्रतिनिधित्व हासिल करने का यही एकमात्र तरीका नहीं होना चाहिए. बीजेपी एमएलसी तेजस्विनी गौड़ा का भी तर्क है कि बेंगलुरु के मामले में यह एकमात्र तरीका हो सकता है. शहर से कई बार विधायक रह चुकीं प्रमिला ने बताया, 'पुरुषों की मानसिकता ही ऐसी होती है कि वे चाहते हैं कि महिलाएं प्राइमरी स्कूल की टीचर, नर्स, एयर होस्टेस हों न कि विधायक. जब तक महिला प्रतिनिधित्व आरक्षण नहीं होगा, कोई भी बड़ी पार्टी महिलाओं को मैदान में नहीं उतारेगी. मुझे यह पता है क्योंकि मैं इसके लिए दशकों से लड़ रही हूं. मैं पूर्व पीएम पीवी नरसिंहा राव, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी और अन्य के पास प्रतिनिधिमंडल ले गई हूं, लेकिन कुछ नहीं हुआ. एचडी देवेगौड़ा एकमात्र पुरुष राजनेता हैं, जो चाहते थे कि महिलाओं का संसद या विधानसभा में प्रतिनिधित्व हो और वे इस कारण के लिए लड़ रहे हैं. हालांकि उनके प्रयास भी अब तक तो व्यर्थ ही गए हैं. आपको विश्वास नहीं होगा हमें उमा भारती जैसी महिला नेताओं के विरोध का भी सामना करना पड़ा, जिन्होंने आरक्षण पर हमारा समर्थन नहीं किया.'

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8 चुनावों में शून्य महिला विधायक
डेटा के विस्तृत विश्लेषण से पता चलता है कि 1957 और 2018 के बीच हुए 14 चुनावों में आठ में से एक भी महिला को बेंगलुरु से विधायक नहीं चुना गया था. पहले दो विधानसभा चुनावों में सात उम्मीदवारों में से पांच क्रमशः 1957 में चार में से तीन और 1962 में तीन में से दो महिला उम्मीदवार बतौर चुनी गईं. बाद के चुनावों में उनकी संभावनाएं कम होती गई. 1978, 1994, 2008 और 2018 विधानसभा चुनावों में एक-एक महिला जीती. यह अलग बात है कि चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है. 2013 और 2018 विधानसभा चुनाव में बेंगलुरु शहर की सीटों से 157 में कम से कम 78 बेंगलुरु से चुनावी समर में उतरीं. इनमें से अधिकांश निर्दलीय खड़ी हुईं या अखिल भारतीय महिला सशक्तिकरण पार्टी जैसे छोटे दलों से थी, जो स्पष्ट रूप से महिलाओं को प्राथमिकता देते थे.

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बीबीएमपी में महिला आरक्षण से बंधी उम्मीद भी टूटी
महिलाओं को 2012 में नई उम्मीद बंधी थी जब सरकार ने महिलाओं के लिए वृहद बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) परिषद में 50 सीटें आरक्षित की थीं. यह अनुमान लगाते हुए कि यह अंततः एक अधिक समावेशी विधानसभा देखेगी. नगरसेवकों के रूप में महिलाओं की बढ़ती संख्या से उम्मीद जगी थी कि विधान सौंध की तस्वीर भी बदलेगी. हालांकि विधायक बनने के लिए ऐसी चुनिंदा आरक्षित सीटों पर राजनेता अपनी पत्नियों, बेटियों या रिश्तेदारों को प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल करते हैं. इस तरह राजनीति में पुरुष राजनेताओं का वर्चस्व जारी है. महिलाओं के लिए आरक्षित चुनिंदा सीटें वास्तविकता आकांक्षाओं को पूरा करने में विफल रही हैं. और तो और बीबीएमपी में महिलाएं केवल चेहरा भर हैं. असल में तो उनके पति या पिता वास्तव में नगरसेवक बने रहते हैं. वे ही वार्डों को नियंत्रित करते हैं और नागरिक निकाय के भीतर सत्ता चलाते हैं. 

HIGHLIGHTS

  • 1957 से 2018 के बीच बेंगलुरु से चुने गए 203 विधायकों में से केवल 4 फीसदी ही रहीं महिलाएं
  • 14 चुनावों में 157 महिलाएं उतरीं, लेकिन महिला विधायकों की संख्या 5 फीसदी से कुछ अधिक
  • एचडी देवेगौड़ा ने महिला प्रतिनिधित्व आरक्षण पर पीएम नरेंद्र मोदी को विगत दिनों लिखा है पत्र

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