logo-image

तो क्या शी जिनपिंग ही हैं वैश्विक स्तर पर चीन को लेकर बनी नकारात्मक राय की वजह...

प्यू रिसर्च का विश्लेषण कहता है कि शी जिनपिंग के 2013 में सत्ता संभालने के बाद अमेरिका समेत अन्य उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों में चीन की छवि और अधिक नकारात्मक हुई है.

Updated on: 29 Sep 2022, 03:05 PM

highlights

  • प्यू रिसर्च सेंटर का चीन और शी जिनपिंग को लेकर विश्लेषण
  • शी के कार्यकाल में बढ़ी चीन के प्रति लोगों की नकारात्मक राय
  • उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों में किया प्यू ने व्यापक सर्वेक्षण

नई दिल्ली:

इसमें कोई शक नहीं है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) इस वक्त चीन के बेहद शक्तिशाली नेता हैं और वह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) की अक्टूबर में होने जा रही 20वीं कांफ्रेंस में लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति बनने की अपनी मंशा पर मुहर भी लगवा लेंगे. यह अलग बात है कि शी जिनपिंग के 2013 में राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका (America) और उस जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की निगाह में चीन (China) की छवि 'कहीं तेजी से नकारात्मक' (Negative) हुई है. यही नहीं, हाल के सालों में चीन के दूसरे 'सर्वकालिक' नेता शी जिनपिंग के खिलाफ वैश्विक रवैये में भी नकारात्मकता का भाव तेजी से पनपा है. यह निष्कर्ष प्यू रिसर्च सेंटर का है, जिसे सीपीसी की 20वीं कांग्रेस से पहले जारी किया गया है. यह विश्लेषण चीन और शी पर केंद्रित है. पांच मुख्य बिंदुओं पर तैयार इस डेटा में चीन की सैन्य शक्ति और उसका प्रभाव, मानवाधिकार नीतियों, चीन की अर्थव्यवस्था, कोविड-19 और चीनी नागरिकों को आधार बनाया गया.  

सत्ता संभालने के साल भर बाद बनने लगी थी नकारात्मक राय
शी जिनपिंग के सत्ता संभालने के साल भर बाद 2014 में प्यू ने जहां-जहां सर्वेक्षण किया, वहां उनके रवैये के प्रति लोगों का नजरिया पहले ही काफी नकारात्मक था. चीन के राष्ट्रपति बतौर शी जिनपिंग को सकारात्मक मानने के बजाय अधिकतर उनके बारे में नकारात्मक राय बनाए ही मिले. 2019 और 2020 के बीच चीनी राष्ट्रपति का नजरिया और अधिक नकारात्मक पाया गया. 2020 तक तो उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में महज दो को छोड़कर सभी का मानना था कि वैश्विक मसलों के प्रति जिनपिंग का रवैया कतई विश्वास करने काबिल नहीं है. इस आधार पर प्यू रिसर्च सेंटर ने कहा शी जिनपिंग के 2013 में राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका और उस जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की निगाह में चीन की छवि 'कहीं तेजी से नकारात्मक' हुई है. अमेरिका में तो यह धारणा चरम पर थी कि शी जिनपिंग कोरोना महामारी को संभालने में बुरी तरह से नाकाम रहे. यही नहीं, अमेरिकियों ने उन्हें ही कोविड-19 के वैश्विक प्रसार के लिए जिम्मेदार माना. अमेरिका में शी के प्रति नकारात्मक राय के लिए कोरोना महामारी सबसे ऊपर थी, लेकिन अन्य कारणों ने भी उन्हें जबर्दस्त निगेटिव छवि प्रदान की. 

यह भी पढ़ेंः तो अब सेब बिगाड़ेगा जम्मू-कश्मीर की आब-ओ-हवा, हाईवे जाम पर राजनीति तेज

दो दशकों से चीन का चल रहा था विश्लेषण 
प्यू रिसर्च सेंटर बीते दो दशकों से चीन का विश्लेषण कर रहा था, जिसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया. प्यू के मुताबिक कई कारणों ने इस दौरान चीन की छवि को प्रभावित किया. अमेरिका में तो कोरोना महामारी के पहले से ही चीन को लेकर नकारात्मक छवि बनने लगी थी. कमोबेश यही हाल अन्य उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों का भी था. इनमें चीन के दक्षिण कोरिया, जापान और ऑस्ट्रेलिया सरीखे पड़ोसी देश शामिल हैं. हालांकि चीन की मानवाधिकार नीतियों, उसकी सैन्य शक्ति और व्यापार सरीखी उसके आर्थिक पहलुओं ने वैश्विक स्तर पर बाद में अप्रिय विचार पनपने का रास्ता प्रशस्त किया. यह वह समय था जब चीन के साथ-साथ इन्हीं आधार पर शी जिनपिंग की छवि भी नकारात्मक होती गई. यह तब है जब शी जिनपिंग के चीन के इतिहास में लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति बनने की महज औपचारिकता ही बाकी रह गई है. प्राप्त जानकारी के मुताबिक प्यू रिसर्च सेंटर 2002 से चीन को लेकर वैश्विक स्तर पर आम राय जानने का काम कर रहा है. इस दौरान प्यू रिसर्च सेंटर ने 60 से अधिक देशों से डेटा एकत्र किया. कोरोना महामारी की वजह से प्यू तेजी से उभऱती अर्थव्यवस्था वाले देशों में यह विश्लेषण करने में नाकाम रहा. फिर भी यह निष्कर्ष 2020 से 2022 के दौरान उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों के आधार पर तैयार किया गया.

चीन की सैन्य शक्ति गंभीर खतरा
इस विश्लेषण के प्रमुख निष्कर्षों में से एक तो यही है कि 'चीन की शक्ति और वैश्विक मंच पर उसका प्रभाव तेजी से और व्यापक स्तर पर बढ़ा है'. इसके साथ ही बड़े पैमाने पर चीन की सैन्य ताकत को लेकर चिंताएं भी उभरी हैं. अगर महज 2021 की बात करें तो 'चीन मानवाधिकारों का जरा भी सम्मान नहीं करता' वाला निगेटिव विचार वैश्विक स्तर पर अपने चरम पर था. 2022 में उन्नत अर्थव्यवस्था वाले 19 देशों में 66 फीसदी लोगों के बीच यह धारणा प्रखर थी कि चीन का विश्व के तमाम देशों में प्रभाव बढ़ा है. यह मानने वाले ऑस्ट्रेलिया, इटली, फ्रांस, इजरायल और ग्रीस में तो प्रत्येक 10 में से 7 लोग थे. चीन के बढ़ते प्रभाव के साथ ही 'बढ़ते खतरे' का विचार भी तमाम देशों के लोगों के मन में बस चुका था. इन्हीं 19 देशों के 72 लोगों के बीच सर्वेक्षण में पाया गया कि चीन की सैन्य शक्ति 'गंभीर समस्या' है, तो 37 फीसदी लोगों का मानना था कि उनके देश के लिए तो 'बेहद गंभीर समस्या' है. हालांकि 2022 में जब सर्वेक्षण के तहत पूछा गया कि संबंधित देश के बेहद गंभीर समस्या क्या है, तो अधिसंख्य का जवाब था सैन्य शक्ति के बजाय मानवाधिकार पर उसकी नीतियां. इन्हीं देशों ने माना कि चीन की आर्थिक स्पर्धा या उनके देश की राजनीति में दखलंदाजी भी एक बड़ी चुनौती है. 

यह भी पढ़ेंः जानें कौन हैं नए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान

चीन की अर्थव्यवस्था पर मिश्रित राय
हालांकि चीन की अर्थव्यवस्था और विभिन्न देशों पर पड़ने वाले उसके प्रभाव को लेकर सर्वेक्षण में लोगों के विचार अलग-अलग थे. उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों में आर्थिक प्रतिस्पर्धा को गंभीर समस्या माना गया. दक्षिण कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिकी नागरिक तो इसके लेकर खासे चिंतित दिखे. हालांकि इसके उलट कुछ देशों ने चीन के आर्थिक विकास को अपने देश के लिहाज से खराब नहीं माना. उत्तरी अमेरिका के आधे तो ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया की लगभग 50 फीसदी लोगों ने 2019 में माना कि चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था उनके देश के लिहाज से अच्छी बात है. चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था को लेकर इस मिश्रित राय के पीछे अमेरिका के बजाय चीन से उनके देशों के बेहतर आर्थिक संबंध इसका एक बड़ा आधार था. यह अलग बात है कि 2021 में हालांकि इस नजरिये में बदलाव आया और उन्नत अर्थव्यवस्था वाले अधिसंख्य देशों ने अमेरिका संग आर्थिक संबंधों को तरजीह दी.