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ऐतिहासिक चूक: क्या डूबते पाकिस्तान को बचा पाएगा IMF का Bailout Package

पाकिस्तानी रुपया (PKR) एक 'बेकाबू गिरावट' पर है. यह 21 जून को प्रति अमरीकी डालर 212 को पार कर गया था. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार एक खतरनाक स्तर तक कम हो गया है. वहीं देश में छह सप्ताह से भी कम का आयात कवर बचा है.

Updated on: 28 Jun 2022, 05:20 PM

highlights

  • पाकिस्तान का मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार 9 बिलियन USD से नीचे
  • पिछले एक महीने में तीसरी बार ईंधन की कीमतों में वृद्धि की गई
  • वित्तीय और रणनीतिक दोनों तरह से चीन के चंगुल में फंसा पाकिस्तान

नई दिल्ली:

पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ( Pakistan) दिवालिया होने की कगार पर है. इस्लामाबाद और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के बीच 6 बिलियन अमरीकी डालर ( US Dollar) के बेलआउट पैकेज को फिर से शुरू करने के लिए चल रही बातचीत के बावजूद देश की आर्थिक स्थिति फिलहाल एक गंभीर भविष्य का सामना कर रही है. पाकिस्तानी रुपया (PKR) एक 'बेकाबू गिरावट' पर है. यह 21 जून को प्रति अमरीकी डालर 212 को पार कर गया था. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार एक खतरनाक स्तर तक कम हो गया है. वहीं देश में छह सप्ताह से भी कम का आयात कवर बचा है.

पाकिस्तान ट्रिब्यून में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान का मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार 9 बिलियन अमरीकी डालर से नीचे है. पिछले एक साल में पाकिस्तानी रुपये में 34 फीसदी ( पीकेआर 53.67) का भारी अवमूल्यन हुआ है. इसके विपरीत पिछले साल जून में यह पीकेआर 157.54 पर बंद हुआ था. इसके चलते अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया लगभग 16.5 प्रतिशत (31 दिसंबर, 2001 से) की गिरावट के साथ साल 2022 में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गया है. जापानी येन, दक्षिण कोरियाई वोन और बांग्लादेशी टका वाली 13 समकक्षों के बास्केट में यह सबसे निचले पायदान पर है.

बेलआउट पैकेज के लिए IMF की हर शर्त मानने को तैयार

पाकिस्तान एक व्यापक चालू खाता घाटे से जूझ रहा है. इसके साथ ही स्टेट बैंक एनएसई 0.66 फीसदी पाकिस्तान (SBP) के पास नवंबर 2019 के बाद से अपने निम्नतम स्तर पर है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और इसकी आबादी के लिए और अधिक समस्याएं जोड़ते हुए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने हाल ही में पिछले एक महीने में तीसरी बार ईंधन की कीमतों में वृद्धि की है, ताकि बेलआउट पैकेज को पुनर्जीवित करने के लिए आईएमएफ की 'शर्तों' को पूरा किया जा सके. पीकेआर के मूल्य में ह्रास आने की एक बड़ी वजह ये भी सामने आई है.

दिनोंदिन बद से बदतर हो रहे पाकिस्तान के हालात

हाल ही में पाकिस्तान में ईंधन की कीमतों में वृद्धि के बाद कैब सेवाओं, रेस्तरां और होम डिलीवरी के बंद होने की खबरें आ रही हैं. इससे आम आबादी बुरी तरह प्रभावित हुई है. पाकिस्तान में पेट्रोल की कीमतों में 56 प्रतिशत या पीकेआर 84 (वर्तमान मूल्य: पीकेआर 233 प्रति लीटर) और हाई-स्पीड डीजल की कीमतों में 26 मई से 83 प्रतिशत (वर्तमान मूल्य: पीकेआर 263 प्रति लीटर) की भारी वृद्धि हुई है. इसकी वजह से आम लोगों पर और दबाव बन रहे हैं.

गल्फ न्यूज की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पाकिस्तान सरकार ने आईएमएफ कार्यक्रम को सख्त रूप से पुनर्जीवित करने के लिए ये कठोर उपाय किए हैं. इसे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण बताया जा रहा है. कई लोगों का मानना ​​है कि इससे अधिक विदेशी ऋण मिलेगा और विदेशी मुद्रा भंडार में सुधार होगा जो पिछले 10 महीनों में 50 प्रतिशत से अधिक गिर गया है.

इमरान पर ठिकरा फोड़ रहे वित्त मंत्री मिफ्ता इस्माइल 

पाकिस्तान के वित्त मंत्री मिफ्ता इस्माइल ने पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि की घोषणा करते हुए कहा कि सरकार के पास पाकिस्तान में उपभोक्ताओं को "अंतरराष्ट्रीय कीमतों के प्रभाव को पारित करने" के अलावा कोई विकल्प नहीं था. इन घटनाक्रमों ने देश में राजनीतिक उथल-पुथल को गहरा कर दिया है. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार को "अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाली" नीतियों के लिए दोषी ठहराते हुए कहा कि उनके चलते ही हाल में ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी हुई.

इमरान खान ने जताई ये खतरनाक आशंका

दूसरी ओर, इमरान खान ने "आईएमएफ के दबाव के आगे झुकने" के लिए गठबंधन सरकार को फटकार लगाई. उन्होंने चेतावनी दी कि ये बढ़ी हुई कीमतें आखिरकार पाकिस्तान में वेतनभोगी वर्ग के लिए "हड्डी तोड़ने वाली" साबित होंगी. उन्होंने बढ़ती ईंधन और खाद्य कीमतों के खिलाफ देशव्यापी विरोध का आह्वान किया है. उन्होंने चेतावनी दी है कि अधिक बढ़ोतरी और मुद्रास्फीति की आशंका है. खान ने लोगों से "आयातित सरकार" के खिलाफ अपने संघर्ष को तेज करने का आग्रह किया है.

चुनौतियों से घिरी शाहबाज शरीफ की गठबंधन सरकार

इस बीच, शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को यहां दो मुख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. पहला देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर करना और दूसरा पाकिस्तान में आम चुनावों के बीच आम लोगों को खुश रखना. पीएम शरीफ का मानना है कि मौजूदा हालात इमरान खान के पास गठबंधन सरकार को निशाना बनाने के लिए एक और हथियार है. इसके अलावा इस साल अप्रैल में उनके "विवादास्पद" सत्ता से बेदखल होने पर रोना जारी है. इसलिए, आईएमएफ के वित्तीय कार्यक्रम की तत्काल बहाली कुछ स्थिरता ला सकती है. शरीफ को लगता है ये कदम पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में उनके लिए चेहरा बचाने वाले के रूप में काम कर सकती है. इसे अगले चुनावों में गठबंधन सरकार की सफलता के रूप में पेश किया जा सकता है.

आर्थिक नीतियों के सर्वे में शाहबाज पर इमरान भारी

इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक ओपिनियन रिसर्च (IPOR) के सर्वेक्षण के मुताबिक, इस्लामाबाद स्थित सर्वेक्षण अनुसंधान संस्थान, 43 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने इमरान खान के नेतृत्व वाले पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) शासन के दौरान प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों की शिकायत की. इसके उलट 33 प्रतिशत ने महसूस किया कि उस अवधि (अगस्त 2018 - अप्रैल 2022) के दौरान अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ था. वहीं, 55 फीसदी उत्तरदाताओं ने मौजूदा सरकार से मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाने की अपील की. ये निष्कर्ष दोनों सरकारों की आर्थिक नीतियों के बारे में मिश्रित विचार सुझाते हैं.

केवल चुनाव को लेकर सोच रहे हैं शाहबाज शरीफ

शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार को पाकिस्तान में आर्थिक स्थिरता लाने के लिए आईएमएफ वित्तीय कार्यक्रम से एकमात्र उम्मीद है. वहीं आम चुनावों को लेकर सैन्य प्रतिष्ठान से एक स्पष्ट समर्थन को मददगार के तौर पर देखा जा रहा है. इसके अलावा, पाकिस्तान की मीडिया रिपोर्टों के अनुसार चीन ने पाकिस्तान को 2 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक के नए वाणिज्यिक कर्ज देने की इच्छा जताई है. बीजिंग इस बात से निराश है कि कैसे पाकिस्तान में बाद की सरकारों ने देश की अर्थव्यवस्था को गलत तरीके से संभाला है.

ड्रैगन के पंजे में और फंसता जा रहा पाकिस्तान

चीन को लगता है कि इमरान खान के बाद की सरकार ने चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) से संबंधित परियोजनाओं की प्रगति को धीमा कर दिया है. यह चीन के लिए नए कर्जों और उच्च ब्याज दरों के जरिए अपनी कुख्यात "कर्ज जाल" नीति में पाकिस्तान का गला घोंटने के लिए एक अनुकूल स्थिति मानी जा रही है. यह केवल वित्तीय और रणनीतिक दोनों तरह से बीजिंग पर इस्लामाबाद की निर्भरता को बढ़ाएगा. पाकिस्तान दिवालिया होने के दलदल में और अधिक फंसता जाएगा.

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पाकिस्तान के इतिहास में दूसरी सबसे बड़ी चूक

पाकिस्तान की राजनीति को समझने वालों का दावा है कि बढ़ती महंगाई, ईंधन और खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी, आवश्यक वस्तुओं की अनुपलब्धता, छोटे व्यवसायों को बंद करना और बिगड़ते राजनीतिक संकट के कारण पाकिस्तान मुल्क के इतिहास में दूसरी बार "चूक" साबित हो सकता है. वहीं आईएमएफ के वित्तीय कार्यक्रम की बहाली और मित्र देशों से आपातकालीन ऋण पाकिस्तान के आर्थिक संकट को दीर्घकालिक राहत नहीं देंगे. वहीं, राहत को लेकर पूर्ववर्ती और मौजूदा सरकार के पास कोई स्थायी हल फिलहाल नहीं दिख रहा.