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निर्भया के दोषियों को सात साल से नहीं हो पाई फांसी, कैसे मिलेगी हैदराबाद कांड के दोषियों को सजा

निर्भया समेत देश की तमाम अन्य निर्भया भी इंसाफ की प्रतीक्षा कर रही हैं. सवाल यह उठता है कि आखिर निर्भया के आरोपियों को अब तक फांसी क्यों नहीं दी जा सकी?

Updated on: 04 Dec 2019, 11:03 AM

highlights

  • निर्भया के दोषियों को फांसी पर सुप्रीम कोर्ट में 13 दिसंबर को सुनवाई.
  • इसके बाद ही पता चल सकेगा कि फांसी में अभी कितना वक्त और.
  • चारों दोषियों में से एक ने राष्ट्रपति के पास लगा रखी है दया याचिका.

New Delhi:

हैदराबाद में जानवरों की डॉक्टर से हुए गैंग रेप (Hyderabad Rape) और फिर उसकी जघन्य हत्या से पूरा देश उबल रहा है. ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली के निर्भया कांड (Nirbhaya Rape) के बाद देश भर में गुस्से की लहर थी. उस वक्त दिल्ली में शीला दीक्षित का सरकार थी और केंद्र में मनमोहन सिंह की. लोगों के गुस्से को समझते हुए केंद्र और प्रदेश सरकार ने त्वरित स्तर पर कई फैसले किए थे. इसमें ऑफिसों में निर्भया गाइड लाइन के अनुपालन समेत फास्ट ट्रैक अदालत (Fast Track Court) में ऐसे जघन्य मामलों की सुनवाई का फैसला भी शामिल था. यह अलग बात है कि बीते सात सालों से कुछ नहीं बदला है. बीते दिनों ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने निर्भया के हत्यारों पर उनकी सजा को लेकर जवाब दाखिल किया है. कह सकते हैं कि निर्भया समेत देश की तमाम अन्य निर्भया भी इंसाफ की प्रतीक्षा कर रही हैं. सवाल यह उठता है कि आखिर निर्भया के आरोपियों को अब तक फांसी क्यों नहीं दी जा सकी?

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सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखी सजा
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्भया केस के चारों दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखते हुए उनकी अपील को खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट से अपील खारिज होने के बाद इन चारों के पास कोर्ट से राहत लेने का कोई खास विकल्प नहीं रहा. क्यूरेटिव पिटीशन भी उन दुर्लभ मामलों में लगाई जाती है जिसमें कोर्ट के दिए जजमेंट में आधारभूत त्रुटियां (fundamental error) हो. साथ ही जिनका आधार इतना मजबूत हो कि अदालत का आदेश पलटा जा सकता है.

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दोषियों ने नहीं लगाई क्यूरेटिव पिटिशन
निर्भया के मामले में क्यूरेटिव पिटिशन लगती भी है, तो वह तुरंत खारिज हो जाएगी. इसीलिए इस मामले को और लंबा खींचने के लिए दोषियों की तरफ से क्यूरेटिव पिटीशन नहीं लगाई गई है. इसका आगे का रास्ता माफी का है यानी कि सुप्रीम कोर्ट से फांसी मिलने के बाद अगर राष्ट्रपति के सामने दया याचिका लगाई जाती है और वह उसे स्वीकार कर लेते हैं, तो अक्सर फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया जाता है. राष्ट्रपति दया याचिका को स्वीकार करेंगे या अस्वीकार, यह केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय से मिले सुझाव के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए तय किया जाता है, लेकिन इस मामले में उसके आसार भी बहुत कम नजर आ रहे हैं क्योंकि निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने इस पूरे मामले पर किसी तरह की कोई रहम निर्भया के केस के दोषियों पर नहीं बरती है.

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फांसी नहीं होने की ये है वजह
अब तक फांसी नहीं होने की बड़ी वजह भी क्यूरेटिव पिटीशन और राष्ट्रपति के पास दया याचिका है, क्योंकि ना तो इन दोषियों की तरफ से क्यूरेटिव पिटीशन के कानूनी विकल्प को अब तक इस्तेमाल किया गया है. इसके अलावा राष्ट्रपति के पास दया याचिका भी 4 दोषियों में से सिर्फ एक ही ने लगाई है, पर वह अभी राष्ट्रपति के पास लंबित है. राष्ट्रपति के पास दया याचिका खारिज होती है या उससे पहले सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन, तो उसके बाद इन चारों के फांसी पर लटकाने का रास्ता साफ हो जाएगा. इसके बाद सेशन कोर्ट को इस मामले में डेथ वारंट जारी करना होता है, वारंट के मिलने के बाद जेल प्रशासन फांसी देने की तैयारियों को अमलीजामा पहनाता है.

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पटियाला कोर्ट में जल्द फांसी के लिए याचिका
हाल ही में निर्भया के माता-पिता ने इन चारों को जल्द फांसी दिए जाने को लेकर पटियाला हाउस कोर्ट में याचिका लगाई है. इस पर कोर्ट ने इन चारों दोषियों को नोटिस जारी करते हुए 13 दिसंबर तक यह बताने को कहा है कि इस मामले में वह राष्ट्रपति के पास दया याचिका या सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन लगाना चाहते हैं या नहीं. इसको लेकर अपना पक्ष कोर्ट के सामने रखें. इस मामले में 13 दिसंबर को होने वाली सुनवाई बेहद महत्वपूर्ण होगी क्योंकि कोर्ट में दाखिल किए गए इन चारों के जवाबों से यह तय हो जाएगा कि निर्भया के दोषियों को फांसी पर चढ़ाने में कितना और वक्त लगना बाकी है. यानी इस मामले में फास्ट ट्रैक कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भले ही 6 साल के भीतर अपना आदेश सुना दिया हो, लेकिन फांसी में कितना वक्त लगेगा, यह कहना मुश्किल है.

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जस्टिस वर्मा कमेटी
16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में निर्भया गैंगरेप केस को अंजाम दिया गया. केंद्र सरकार ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था. कमेटी को देशभर से कुल 80 हजार सुझाव मिले थे, जिसमें यौन हिंसा, लिंग भेद, राजनीति का अपराधीकरण रोकने के उपाय सुझाए गए थे. कानूनविदों, सरकार और सामाजिक संगठनों से बातचीत के बाद 29 दिन में ये रिपोर्ट तैयार की गई. कमेटी में न्यायमूर्ति वर्मा के अलावा न्यायमूर्ति लीला सेठ और पूर्व सॉलीसिटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम शामिल थे. जनवरी 2013 में कमेटी ने अपनी सिफारिशें केंद्र सरकार को सौंपी थी. फरवरी 2013 में सरकार ने सिफारिशों में से कुछ को महिला कानून में शामिल किया था.

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कमेटी की ये हैं सिफारिशें

  • महिला के कपड़े फाड़ने की कोशिश पर 7 साल की सजा मिले.
  • बदनीयती से देखने, इशारे करने पर 1 साल की सजा मिले.
  • इंटरनेट पर जासूसी करने पर 1 साल की सजा दी जाए
  • मानव तस्करी में मिले कम से कम 7 साल की सजा
  • अदालतों में जजों की संख्या बढ़ाई जाए
  • लिस के ढांचे और काम करने के तरीके में सुधार हो
  • बच्चों की तस्करी के मामले में सरकार ठोस कदम उठाए और डेटाबेस बनाए
  • कानून का पालन करने वाली एजेंसियां नेताओं के हाथ का खिलौना न बनें
  • सरकारी संस्थाओं के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही लाई जाए
  • सभी शादियां रजिस्टर हों, दहेज लेनदेन पर निगरानी मजिस्ट्रेट करें
  • दुष्कर्म का मामला दर्ज करने में नाकाम या देरी करने वाले अफसरों पर कार्रवाई हो
  • पीड़ित की मेडिकल जांच के लिए दिया गया प्रोटोकॉल लागू किया जाए
  • सैन्य बलों की तरफ से यौन हिंसा को सामान्य कानून के तहत लाया जाए
  • आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट की समीक्षा की जाए
  • हिंसाग्रस्त इलाकों में महिला अपराध की जांच के लिए स्पेशल कमिश्नर तैनात हों.

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निर्भया केस के बाद क़ानून में बदलाव
देश भर को झकझोर को रख देने वाले निर्भया केस में 3 फरवरी 2013 को क्रिमिनल लॉ अम्नेडमेंट ऑर्डिनेंस आया. इसके तहत आईपीसी की धारा 181 और 182 में बदलाव किए गए. बलात्‍कार से जुड़े नियमों को और कड़ा किया गया. रेप करने वाले को फांसी की सजा भी मिल सके, इसका प्रावधान किया गया. 22 दिसंबर 2015 को राज्यसभा में जुवेनाइल जस्टिस बिल पास हुआ. इसके तहत 16 साल या उससे अधिक उम्र के बालक को जघन्य अपराध करने पर एक वयस्क मानकर मुकदमा चलाने का प्रावधान किया गया. बलात्‍कार, बलात्‍कार से हुई मृत्यु, गैंग रेप और एसिड-अटैक जैसे महिलाओं के साथ होने वाले अपराध जघन्य अपराध की श्रेणी में लाए गए. महिलाओं के खिलाफ वो सभी सभी कानूनी अपराध जिनमें सात साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान है, जघन्य अपराध की श्रेणी में शामिल किए गए.

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एक नजर क्रमिनिल लॉ अमेंडमेंट बिल पर
23 जुलाई 2018 को लोकसभा में पेश किया गया
30 जुलाई 2018 को लोकसभा में बिल पास हुआ
6 अगस्त 2018 को राज्य सभा से पास हुआ
12 साल से कम उम्र की बच्ची से रेप या गैंग रेप पर कम से कम 20 साल की सज़ा या फांसी
16 साल से कम उम्र की बच्ची से रेप पर 20 साल की सज़ा या उम्र क़ैद होगी