आयुर्वेद और एलोपैथ में कौन है बेहतर, लोगों की पसंद पर छोड़ देना चाहिए
आयुर्वेद तो हमारी आपकी ज़िन्दगी का हिस्सा है. इसे कैसे कोई अलग कर सकता है. खुद एलोपैथ की कई दवाइयां आयुर्वेद से निकली हैं. सिनकोना के छाल से बनाई जाने वाली दवा क्विनीन, मलेरिया के लिए बेहद कारगर दवाओं में से एक है.
highlights
- दिल की बीमारी हो ही नहीं इसके लिए आपको ख़ुद की लाइफ स्टाइल में बदलाव करना होगा
- सिनकोना के छाल से बनाई जाने वाली दवा क्विनीन, मलेरिया के लिए कारगर दवाओं में से एक है
नई दिल्ली:
आयुर्वेद (Ayurveda) और एलोपैथ (Allopathy) में बेहतर कौन, ये बहस ही बेमानी है. बहस इस बात पर होनी चाहिए की आयुर्वेद और एलोपैथ को कैसे और बेहतर बनाया जाए. कैसे आम आदमी को इसका ज़्यादा से ज़्यादा फायदा मिले. किसे क्या बेहतर लगता है, ये लोगों की ख़ुद की पसंद पर छोड़ देना चाहिए. मिसाल के तौर पर अगर किसी को दिल का दौरा पड़ चुका हो तो आप काढ़ा बनाने किचन में दौड़ने की बजाय अस्पताल की तरफ भागेंगे. डॉक्टर उस मरीज़ की सर्जरी करेंगे या कोई दवाई देकर उसे बचाने की कोशिश करेंगे, लेकिन दिल की बीमारी हो ही नहीं इसके लिए आपको ख़ुद की लाइफ स्टाइल बदलनी होगी और खान पान का ख़ास ख्याल रखना होगा. इसे आप नेचुरोपैथी या आयुर्वेद कुछ भी नाम दे सकते हैं.
आयुर्वेद तो हमारी आपकी ज़िन्दगी का हिस्सा है. इसे कैसे कोई अलग कर सकता है. खुद एलोपैथ की कई दवाइयां आयुर्वेद से निकली हैं. सिनकोना के छाल से बनाई जाने वाली दवा क्विनीन, मलेरिया के लिए बेहद कारगर दवाओं में से एक है. आज से 200 साल पहले 1820 में ही क्विनीन बन चुका था, जबकि क्विनीन बनने से लगभग 200 साल पहले 1632 से सिनकोना की छाल का इस्तेमाल मलेरिया की बीमारी ठीक करने के लिए किया जाता रहा था. अब बताइये अगर आज आपको मलेरिया हो तब आप सिनकोना के पेड़ को ढूंढने निकलेंगे या सिनकोना से ही बनी आसानी से उपलब्ध दवा क्विनीन खाना पसंद करेंगे.
ज़ाहिर है आपकी पसंद क्विनीन ही होगी, सिनकोना से क्विनीन का जो रिश्ता है यही आयुर्वेद और एलोपैथ का रिश्ता है, हमें इसे और बेहतर बनाने की कोशिश में अपनी ऊर्जा खर्च करनी चाहिए. सिर्फ क्विनीन ही नहीं दुनिया भर में दर्द से राहत के लिए इस्तेमाल होने वाली दवा मॉर्फिन, अफीम के पौधे से बनाई जाती है. ऐसी एक नहीं बल्कि 100 से ज़्यादा एलोपैथक दवाइयां हैं जो पेड़ पौधे से निकाले एक्सट्रैक्ट से बनाई गयी हैं. हमारे मसाले में इस्तेमाल होने वाली हल्दी से करक्यूमिन को अलग कर इसी नाम से बनी दवाई लीवर की बिमारी में इस्तेमाल हो रही है. पपीते से बनी दवाई पपीन नाम से मिल रही है. दुनिया भर के साइंटिस्ट ये साबित कर चुके हैं की लहसुन का इस्तेमाल कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने में फायदेमंद है.
एक अनुमान के मुताबिक 70 फीसदी मॉडर्न मेडिसिन का स्रोत पेड़ पौधे ही हैं. कैंसर की 60 फीसदी दवाई का स्रोत पेड़ पौधे ही हैं. 80 फीसदी एंटी बैक्टिरियल, एंटी माइक्रोबियल दवाई पेड़ पौधों से ही निकलाले एक्सट्रैक्ट से बनी हैं. दुनियाभर के डॉक्टरों द्वारा लिखी दवाइयों में से 25 फीसदी दवाइयों का स्रोत पेड़ पौधे हैं. डब्लूएचओ की एसेंशियल मेडिसीन की 252 दवाइयों की लिस्ट में शामिल 11 फीसदी दवाई का स्रोत पेड़ पौधे हैं. जाहिर है ऐसे में ये सवाल ही बेमानी हो जाता है की आयुर्वेद और एलोपैथ में बेहतर कौन. सवाल ये है की कैसे दोनों की ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंच बनाई जाए. कैसे आयुर्वेद और एलोपैथ को एक दूसरे से जोड़कर लोगों को फायदा पहुंचाया जाए.
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