अफगानिस्तान में तालिबान शासन को मान्यता देने पर क्या रुख अपनायेगा भारत
विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी विदेश सेवा के अधिकारी रहे हैं. विदेश मंत्री अब तालिबान मामले को कैसे डील करते हैं यह बड़ा सवाल है. फिलहाल भारत 'देखो और इंतजार करो' की नीति पर चल रहा है.
highlights
- चीन, रूस, पाकिस्तान और ईरान जल्द दे सकते हैं तालिबान को मान्यता
- तालिबान के पहले दौर1996 में पाकिस्तान,सउदी अरब और यूएई ने दी थी मान्यता
- तालिबान पर भारत का रूख 'देखो और इंतजार' की नीति
नई दिल्ली:
काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद अब अफगानिस्तान को कौन देश मान्यता देता है और नहीं, यह सवाल मह्तवपूर्ण हो गया है. चीन औपचारिक तौर पर तालिबान शासन को मान्यता देने का संकेत दे दिया है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि रूस, पाकिस्तान और ईरान भी जल्द तालिबान शासन को मान्यता दे सकते हैं. भारत भले ही अफगानिस्तान में तालिबान की गतिविधियों से अनजान बना रहा लेकिन चीन, रूस, पाकिस्तान और ईरान के साथ दुनिया के कई देश वहां पर घट रहे रह घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रहे थे. उनके प्रतिनिधि तालिबान के शीर्ष नेताओं के संपर्क में भी थे.
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने सोमवार को कहा कि चीन अफगान लोगों को अपना भाग्य तय करने के अधिकार का सम्मान करता है। वह अफगानिस्तान के साथ दोस्ताना और सहयोगी संबंध बनाना चाहता है। इससे पहले चीन ने 28 जुलाई को संकेत दिए थे कि वह अफगानिस्तान में तालिबान शासन को मान्यता दे सकता है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने तियांजिन में तालिबान के नौ सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी। इस मुलाकात में तालिबान का सह-संस्थापक और डिप्टी लीडर मुल्ला अब्दुल गनी बरादर भी मौजूद था।
तालिबान के पहले दौर की बात करें तो 1996 में उसको सिर्फ तीन देशों पाकिस्तान,सउदी अरब और यूएई ने मान्यता दी थी. लेकिन इस बार की परिस्थिति अलग है. महाबली अमेरिका अफगानिस्तान से हार मानकर चला गया है. भारत अमेरिका के कहने पर अफगानिस्तान में भारी पूंजी निवेश किया है. अफगानिस्तान में घट रहे घटनाक्रमों से या तो भारत का राजनयिक-कूटनीतिक तंत्र अनजान रहा ये ठंडा रूख अपनाए रखा. ऐसे में अब सवाल उठता है कि भारत सरकार का अफगानिस्तान को लेकर क्या रूख होगा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कई विदेशी राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों से बहुत नजदीकी संबंध हैं. विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी विदेश सेवा के अधिकारी रहे हैं. विदेश मंत्री अब तालिबान मामले को कैसे डील करते हैं यह बड़ा सवाल है. फिलहाल भारत 'देखो और इंतजार करो' की नीति पर चल रहा है.
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विदेश मंत्री एस जयशंकर के विदेश मामलों के अनुभव और कार्यकाल (Tenure)की बात करें तो वह जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव (Foreign Secretary) रहे. इससे पहले वह सिंगापुर में उच्चायुक्त, चीन और अमेरिका में भारतीय राजदूत जैसे पदों पर रह चुके हैं. उन्होंने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. अमेरिका में भारतीय राजदूत के रूप में उनके प्रदर्शन ने उन्हें विदेश सचिव के प्रतिष्ठित पद पर पहुंचाया. ऐसे में तालिबान से राजनयिक संबंध बनाने जैसे संवेदनशील विषय को कैसे डील किया जाए, वह बखूबी जानते-समझते हैं.
भारत इस विषय पर दुनिया के अन्य देशों का इंतजार कर रहा है. इसके साथ ही वह क्वाड देशों (Quad) भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के कदमों के देखकर ही कोई निर्णय करेगा. तालिबान के मामले में भारत कोई जल्दबाजी नहीं करना चाह रहा है.
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