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यूक्रेन में रूस को लेकर सबसे बड़ा डर, जानें- क्या हैं केमिकल वेपंस

आइए, जानते हैं कि केमिकल और बायो वेपन क्या होते हैं और कितने खतरनाक होते हैं? साथ ही दुनिया में इनका इस्तेमाल कहां-कहां हो चुका है और इनके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने वाला मौजूदा अंतरराष्ट्रीय नियम क्या है?

Updated on: 14 Mar 2022, 12:48 PM

highlights

  • केमिकल वेपंस और बायोलॉजिकल वेपंस दोनों अलग होते हैं
  • केमिकल वेपंस को केमिकल वेपन एजेंट्स से बनाया जाता है
  • ईसा पूर्व 429 में सबसे पहले केमिकल वेपंस का इस्तेमाल हुआ था

New Delhi:

रूस और यूक्रेन के बीच 19 दिनों से जारी युद्ध के बीच अमेरिका और ब्रिटेन ने खतरनाक आशंका जताई है. दोनों देशों का मानना है कि यूक्रेन के खिलाफ रूस रसायनिक हथियार या जैविक हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है. इस तरह के हमले से आशंकित यूक्रेन ने फिर से रूस को सावधान किया है कि अगर ऐसा हमला किया गया तो पश्चिमी देशों की ओर से उसे और कड़े प्रतिबंध झेलना पड़ेगा. इससे पहले रूस ने अमेरिका पर यूक्रेन में केमिकल और बॉयोलॉजिकल वेपन बनाने का आरोप लगाया था.

विश्व युद्ध और उसके बाद कई बार दूसरे देशों के बीच हुए युद्ध में पहले भी रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल हो चुका है. इस हमले में लाखों लोगों की जान जा चुकी है. आइए, जानते हैं कि केमिकल और बायो वेपन क्या होते हैं और कितने खतरनाक होते हैं? साथ ही दुनिया में इनका इस्तेमाल कहां-कहां हो चुका है और इनके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने वाला मौजूदा अंतरराष्ट्रीय नियम क्या है?

केमिकल वेपन क्या होता है

ऑर्गेनाइजेशन फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वेपंस ( OPCW ) के मुताबिक, केमिकल वेपन में जहरीले केमिकल का इस्तेमाल जानबूझकर लोगों को मारने या बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने के लिए होता है. इसके अलावा ऐसे सैन्य उपकरण जो खतरनाक जहरीले केमिकल को हथियार बना सकते हैं, उन्हें भी केमिकल वेपन या रासायनिक हथियार माना जा सकता है. ये इतने घातक होते हैं कि पलक झपकते ही हजारों लोगों को मौत की नींद सुला सकते हैं. वहीं बड़े पैमाने पर लोगों को अलग-अलग बीमारियों से पीड़ित कर तिल-तिल कर मरने पर मजबूर कर सकते हैं.

केमिकल वेपंस और बायोलॉजिकल वेपंस 

केमिकल वेपन और बायोलॉजिकल वेपन अलग- अलग होते हैं. बायोलॉजिकल हथियार में बैक्टीरिया और वायरस के जरिए लोगों को सीधे मारा या बुरी तरह बीमार कर मरने पर मजबूर किया जाता है. केमिकल और बायोलॉजिकल दोनों ही वेपन सामूहिक विनाश के हथियारों की कैटेगरी में आते हैं.

केमिकल वेपन एजेंट्स क्या है

केमिकल हथियार को खतरनाक पदार्थ केमिकल वेपन एजेंट्स ( CWA) से बनाया जाता है. युद्ध और कभी-कभी औद्योगिक हादसे से भी केमिकल वेपन बड़े पैमाने पर नरसंहार का खतरनाक दृश्य बना देते हैं. साल 1984 में भोपाल में फॉस्जीन और आइसोसाइनेट जैसे केमिकल से बने मिथाइल आइसोसाइनेट नामक जहरीली गैस लीक होने से हजारों लोगों की जान चली गई थी. इन्हीं केमिकल या गैसों यानी केमिकल वेपन एजेंट्स या तत्वों ( CWA ) के आधार पर सबसे घातक केमिकल हथियार को पांच कैटेगरीज में बांटा जाता हैं.

1. नर्व एजेंट- नर्व एजेंट्स को अक्सर नर्व गैस भी कहते हैं. इनसे सबसे घातक केमिकल हथियार बनते हैं. ये शरीर के नर्वस सिस्टम पर असर डालते हैं. स्किन या फेफड़ों के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं. इसकी छोटी सी डोज कुछ ही सेकेंड में किसी को भी मार सकती है. इनमें इनमें सबसे घातक केमिकल सरीन, सोमन, ताबुन और साइक्लोसरीन और VX शामिल हैं. ये सभी लिक्विड, एयरोसोल, वाष्प और धूल के रूप में फैलते हैं और बड़े पैमाने पर नरसंहार की वजह बनते हैं.

2. चोकिंग एजेंट - ये घातक केमिकल तत्व श्वसन अंगों पर असर डालते हैं. गैस के रूप में फैलने की वजह से ये खासकर नाक, गले और खासतौर पर फेफड़ों में जलन पैदा करते हैं. ये फेफड़ों के जरिए शरीर में घुसते हैं. इससे फेफड़ों में पानी बनने लगता है. इससे पीड़ित का दम घुट जाता है. इनमें सबसे खतरनाक क्लोरीन, क्लोरोपिक्रिन, डिफोसजीन, फॉस्जीन आदि गैसें शामिल हैं. 

3. ब्लड एजेंट- ये घातक केमिकल ब्लड सेल पर असर डालते हैं. गैस के रूप में फैलने की वजह से ये एजेंट भी शरीर में ऑक्सीजन ट्रांसफर को रोक देते हैं. इससे पीड़ित का दम घुट जाता है. ये सांसों के जरिए प्रवेश करते हैं. इनमें शामिल हाइड्रोजन साइनाइड, सायनोजेन क्लोराइड और आर्सिन गैसों को सबसे घातक माना जाता है.

4. ब्लिस्टरिंग एजेंट- यह केमिकल हथियारों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला वेपन एजेंट होता है. इनमें सबसे घातक सल्फर मस्टर्ड समेत नाइट्रोजन मस्टर्ड, लेविसाइट, और फॉस्जीन ऑक्सीम शामिल हैं. ये लिक्विड, एयरोसोल, वाष्प और धूल के रूप में स्किन और फेफड़ों के जरिए शरीर में एंट्री करते हैं. ये घातक केमिकल ऑयली पदार्थ आंखों, श्वसन अंगों और फेफड़ों को प्रभावित करते हैं. इससे घातक फफोले पड़ जाते हैं या शरीर में जलने जैसे घाव बन जाते हैं. इससे आदमी अंधा हो सकता है या मौत भी हो सकती है।

5. रॉयट कंट्रोल एजेंट- ये सबसे कम घातक केमिकल वेपन एजेंट्स हैं. इनका यूज आंखों, मुंह, गले, फेफड़े या स्किन में अस्थायी जलन पैदा करने के लिए होता है. मिसाल के तौर पर आंसू गैस (ब्रोमोएसीटोन) और पेपर स्प्रे ( कैप्साइसिन ) इस तरह के हल्के केमिकल हथियार हैं. लिक्विड, एयरोसोल के रूप में ये फेफड़ों और स्किन के जरिए शरीर में घुसते हैं. इससे आंखों में आंसू आना, आंखों, स्किन, नाक और मुंह में जलन होती है. कई बार इससे सांस लेने में भी दिक्कत होती है. आमतौर पर इसका इस्तेमाल अनियंत्रित भीड़ को काबू करने में होता है.

केमिकल वेपंस का इतिहास

सबसे पहले ईसा पूर्व 429 में केमिकल हथियारों का इस्तेमाल किया गया था. प्लाटिया की घेराबंदी के दौरान स्पार्टन सैनिकों ने शहर की दीवार के बाहर एक बड़ा लकड़ी का ढेर लगाया और उस पर तारकोल और सल्फर डालकर आग लगा दी थी. इससे नीली लपटें निकलीं और तीखी बदबू पैदा हुई. सल्फर जलाकर स्पार्टन सैनिकों ने जहरीली सल्फर डाई ऑक्साइड गैस रिलीज की. इस हमले की वजह से प्लाटिया के लोग जल्दी ही अपनी जगह छोड़कर भाग खड़े हुए.

पहला और दूसरा विश्व युद्ध

आधुनिक युग में पहले विश्व युद्ध के दौरान केमिकल हथियारों का सबसे पहले इस्तेमाल हुआ था. रिपोर्ट्स के मुताबिक इस युद्ध में घातक केमिकल गैसों के इस्तेमाल से करीब एक लाख लोग मारे गए थे. जर्मन सेना ने 1915 में बेल्जियम के खिलाफ 168 टन क्लोरीन गैस का इस्तेमाल किया था. इस हमले से कम से कम 5 हजार सैनिक मारे गए थे. पहले विश्व युद्ध के दौरान क्लोरीन, फॉस्जीन और सल्फर मर्स्टड गैसों जैसे केमिकल हथियार का इस्तेमाल किया गया था. पहले विश्व युद्ध में एक लाख 90 हजार टन केमिकल हथियार का इस्तेमाल किया गया था. इनमें से 93 हजार टन क्लोरीन और 36 हजार टन फॉस्जीन थी. पहले विश्व युद्ध के दौरान केमिकल हथियार से हुई कुल मौतों में से करीब 80 फीसदी मौतें फॉस्जीन गैस से हुई थी. 

वहीं दूसरे विश्व युद्ध में 1939 में जर्मनी ने पोलैंड के वॉरसा शहर पर कुछ मस्टर्ड गैस बम गिराए थे. इसके अलावा जापान ने चीन के खिलाफ काफी कम मस्टर्ड गैस और लेविसाइट से बने केमिकल हथियारों का इस्तेमाल किया था.

खाड़ी युद्ध और सीरिया का गृह युद्ध

पहले विश्व युद्ध के बाद से  इराक-ईरान युद्धों समेत दो खाड़ी युद्धों को मिलाकर कम से कम 12 लड़ाइयों में केमिकल हथियारों का इस्तेमाल हो चुका है. इराकी सेना ने 1980 के दशक में पहले खाड़ी युद्ध के दौरान ईरान के खिलाफ केमिकल हथियार का इस्तेमाल किया था. इससे कम से कम 50 हजार ईरानी मारे गए थे. इसके बाद तानाशाह सद्दाम हुसैन के निर्देश पर 1988 में इराकी सेना ने अपने ही देश के कुर्दों के खिलाफ घातक मस्टर्ड और नर्व एजेंट केमिकल गैसों का इस्तेमाल किया था. इसमें करीब एक लाख कुर्दों को बेहरमी से मौत के घाट उतार दिया गया था.

जापान में आतंकियों ने 90 के दशक में सरीन गैस से केमिकल हमला किया था. इससे 1994 में सात और 1995 में टोक्यो मेट्रो में इसके हमले से 12 लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद सीरिया के गृह युद्ध ( 2013-17 के दौरान ) में राष्ट्रपति बशर अल असद ने कथित तौर पर रूस की मदद से कई बार अपने देश के विद्रोहियों के खिलाफ केमिकल हथियारों का इस्तेमाल किया है. 

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, सोवियत संघ और अमेरिका के बीच शीत युद्ध (कोल्ड वॉर) के दौरान कम से कम 25 देशों ने केमिकल हथियार बनाने और इकट्ठा करने का काम किया. यह दूसरी बात है कि पहले विश्व युद्ध के बाद इनका बेहद कम इस्तेमाल हुआ है.

केमिकल वेपंस और रूस का दावा

अक्टूबर 2002 में 40 चेचेन्या आतंकियों ने मॉस्को के एक थिएटर में 850 लोगों को बंधक बना लिया था. वे दूसरे चेचेन्या युद्ध के खत्म होने के बाद चेचेन्या से रूसी सेना को हटाने की मांग कर रहे थे. तब रूस ने उनकी मांग ठुकराते हुए थिएटर में जहरीली गैस छोड़ी थी. इस हमले में 40 आतंकियों के साथ ही 130 बंधक भी मारे गए थे. रूस ने ये कभी नहीं बताया कि उसने थिएटर में किस गैस का इस्तेमाल किया था. इसको लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस की काफी लानत मलानत की गई थी.

केमिकल हथियारों को लेकर फिर से चर्चा में आए रूस का दावा है कि उसने साल 2017 में ही अपने केमिकल हथियारों को नष्ट कर दिया था. उसके बाद से मॉस्को में हुए दो केमिकल हमलों ने इन दावों को सवालों के घेरे में ला दिया है. रूस के दावे के अगले साल यानी 2018 में रूसी खुफिया एजेंसी के पूर्व जासूस सर्गेई स्क्रिपल को उनकी बेटी के साथ नर्व एजेंट नोविचोक जहर दिया गया था. इसमें कथित तौर पर रूस का हाथ था. रूस ने भले इसे कभी नहीं माना. वहीं  अगस्त 2020 में पुतिन के प्रमुख विरोधी नेता एलेक्सी नवलनी को नोविचोक जहर दिया गया था. इसमें बहुत मुश्किल से उनकी जान बच सकी थी.

केमिकल वेपंस और अंतरराष्ट्रीय कानून

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक जिनेवा प्रोटोकॉल 1925 और जिनेवा प्रोटोकॉल 1949 के जरिए 38 देशों के बीच हुई संधि से केमिकल हथियारों पर प्रतिबंध के साथ ही युद्ध में इन हथियारों के इस्तेमाल पर भी प्रतिबंध लगाने के लिए समझौता हुआ था. इन संधियों पर हस्ताक्षर के बावजूद सोवियत रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और जापान जैसे सामरिक दृष्टि से ताकतवर देशों ने गुप्त तरीके से केमिकल वेपन बनाना जारी रखा.
 
केमिकल वेपंस कन्वेंशन- 1993

इसेक बाद केमिकल हथियारों पर बैन लगाने के लिए पहला वैश्विक समझौता 1993 में हुए केमिकल वेपंस कन्वेंशन यानी CWC के तहत हुआ. CWC का मसौदा 1992 में तैयार हुआ, 1993 में इसे हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत किया गया और अप्रैल 1997 से प्रभावी रूप से लागू हुआ. इस समझौते से युद्ध में केमिकल हथियारों के इस्तेमाल, उनके डेवलपमेंट, रखने या उनके ट्रांसफर पर रोक लगा दी गई थी. 2021 तक CWC के 193 सदस्य थे. इनमें से 165 ने इस समझौते पर दस्तखत किए थे. भारत, रूस और अमेरिका ने केमिकल हथियारों पर बैन लगाने वाले CWC पर 1993 में साइन किए थे. वहीं संयुक्त राष्ट्र के चार सदस्य देशों मिस्र, इजराइल, नॉर्थ कोरिया और साउथ सूडान ने CWC पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं.

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ऑर्गेनाइजेशन ऑफ प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वेपंस

केमिकल वेपंस कन्वेंशन 1993 (CWC) समझौते को लागू कराने के लिए 1997 में ऑर्गेनाइजेशन ऑफ प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वेपंस ( OPCW) नामक एक अंतर सरकारी संगठन बना था. इसका हेडक्वॉर्टर नीदरलैंड के द हेग में है. इसके 193 सदस्य हैं. मिस्र, इजराइल, नॉर्थ कोरिया और साउथ सूडान इससे नहीं जुड़े हैं. OPCW का काम केमिकल हथियारों के गैरकानूनी इस्तेमाल की निगरानी करना और उनके प्रसार पर रोक लगाना है. साल 2000 में हुए एक समझौते के तहत OPCW संयुक्त राष्ट्र संघ को रिपोर्ट करता है.