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उत्तर प्रदेश: क्या मंत्रिमंडल विस्तार से सधेगा जातिगत समीकरण

उत्तर प्रदेश और बिहार में  चुनाव जीतने के लिए जातिगत समीकरण बहुत मायने रखती है. लेकिन भाजपा पिछले दिनों यह कहती रही है कि जाति के आधार पर सत्ता तक पहुंचने वाले दलों के दिन अब लद चुके हैं.

Updated on: 21 Aug 2021, 07:10 PM

highlights

  • जितिन प्रसाद,संजय निषाद,आशीष पटेल, अरविंद शर्मा और लक्ष्मीकांत वाजपेई बन सकते हैं मंत्री  
  • जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह से मिल चुके हैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
  • पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नेताओं को मंत्रिंमंडल विस्तार में मिल सकती है ज्यादा जगह

 

नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश में एक बार फिर मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा है. संभावित विस्तार की रूपरेखा तय हो गई है. दो दिन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह समेत संगठन मंत्री सुनील बंसल की मुलाकात राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह से हुई. कहा जा रहा है कि रक्षाबंधन के बाद किसी दिन मंत्रिमंडल का विस्तार होना तय किया गया है. इस विस्तार में ब्राह्मण, दलित, अति पिछड़ा, जाट और गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधत्व बढ़ाया जा सकता है. पूर्व नौकरशाह एवं विधान परिषद सदस्य अरविंद शर्मा भी मंत्री बन सकते हैं.

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में महज चंद महीने बाकी हैं. इस तरह मंत्रिमंडल का यह विस्तार प्रदेश के जातिगत समीकरण को साधने के लिए होगा. पिछले साढ़े चार साल में योगी सरकार जिन तबकों को अपने साथ लेकर चलने या उन्हें यह भरोसा दिलाने में नाकाम रही है, उनके जाति के कुछ नेताओं को मंत्री बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की जायेगी कि यह सरकार-सबका साथ, सबका विकास करने वाली है.

यह सच है कि हिंदी क्षेत्र के दो राज्य-उत्तर प्रदेश और बिहार में  चुनाव जीतने के लिए जातिगत समीकरण बहुत मायने रखती है. लेकिन योगी-मोदी पिछले दिनों यह कहते रहे हैं कि जाति के आधार पर सत्ता तक पहुंचने वाले सपा-बसपा के नेताओं के दिन अब लद चुके हैं. ऐसे जातीय समीकरण साधने के लिए मंत्रिमंडल का विस्तार क्या भाजपा को उसी श्रेणी में नहीं खड़ा कर रहा है. दूसरा सवाल यह है कि चंद महीनों के लिए मंत्री बनाये जा रहे लोग क्या भाजपा को चुनावी लाभ दिला सकते हैं. 

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राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तमाम परिस्थितियों के बाद भी चुनाव से पहले होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार का असर आने वाले चुनाव में जरूर पड़ता है. खासकर जब सहयोगी दलों से या दूसरी पार्टी से आए लोगों को मंत्री बनाया जाता है. सहयोगी दल अपने क्षेत्रों में और अपने प्रभाव वाली जातियों में इस बात को प्रचारित और प्रसारित करते हैं कि उन्हें मौका चुनाव से कुछ महीने पहले मिला है. चुनाव पश्चात जब उनकी सरकार दोबारा बनेगी तो उनको एक लंबे वक्त के लिए मौका मिलेगा. यह सब एक रणनीति के तहत किया जाता है. 

किसान आंदोलन के चलते भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संभावित नुकसान को देखते हुए डैमेज कंट्रोल में जुट गयी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पूर्वांचल से होने के कारण प्रदेश के पूर्वी भाग में प्रतिनिधित्व का सवाल नहीं है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश को साधना इस समय भाजपा के लिए चुनौती है. ऐसे में मंत्रिमंडल विस्तार भाजपा को कुछ लाभ पहुंचा सकता है.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की नाराजगी को दूर करने के लिए ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है. यही वजह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तीन विधायकों के नामों की चर्चा आलाकमान के साथ हुई है. इसमें जाट समुदाय की डॉ. मंजू सिवाच, मेरठ से गुर्जर समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विधायक सोमेंद्र तोमर और दादरी के विधायक तेजपाल नागर का नाम भी शामिल है।

इसके अलावा कांग्रेस से भारतीय जनता पार्टी में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर शामिल हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद, निषाद पार्टी के संजय निषाद, अपना दल से आशीष पटेल , पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेई को मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है.