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अनंत में विलीन अरुण जेटली की वो अनसुनी बातें, जिन्‍हें जानना चाहेंगे आप

प्रखर वक्‍ता, कुशल रणनीतिकार और सबको अपने तर्कों से निरुत्‍तर कर देने वाले अरुण जेटली की 25 ऐसी अनसुनी बातें जिन्‍हें बहुत कम लोग ही जानते है. आइए पढ़ें उनकी अनसुनी कहानियां..

नई दिल्‍ली:

पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली अब पंचतत्‍व में विलीन हो चुके हैं. 66 साल की उम्र में उनका शनिवार को एम्स में निधन हो गया. उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान (AIIMS) में दोपहर 12 बजकर 07 मिनट पर आखिरी सांस ली. रविवार को निगम बोध घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया. प्रखर वक्‍ता, कुशल रणनीतिकार और सबको अपने तर्कों से निरुत्‍तर कर देने वाले अरुण जेटली की 25 ऐसी अनसुनी बातें जिन्‍हें बहुत कम लोग ही जानते है. आइए पढ़ें उनकी अनसुनी कहानियां..

1. अरुण जेटली ने अपने व्यक्तिगत संबंधों से सभी राजनीतिक दलों में अपने मित्र बनाए थे. उन्होंने प्रतिद्वंद्वी दलों के रुख का मुखर विरोध किया, लेकिनअपने सूझबूझ भरे व्यक्तिगत संबंधों से विपक्षी नेताओं के दिलों में अपनी खास जगह भी बनाई थी. ऐसा ही एक वाक्या संसद के हंगामेदार शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन पांच जनवरी, 2018 को हुआ था, जब तीन तलाक विधेयक पर बीजेपी और कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष के बीच काफी नोकझोंक हुई थी, लेकिन उसी शाम अरुण जेटली के चैंबर में एक केक लाया गया और यह केक राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा के जन्मदिन के लिए लाया गया था. इससे पता चलता है कि जेटली अपनी राजनीति को व्यक्तिगत संबंधों के साथ आगे बढ़ाते थे. वह विपक्षी दलों के रुख का जोरदार विरोध करते थे लेकिन उन्होंने कभी अपनी इस भावना को नहीं छोड़ा और यहीं कारण है कि उन्होंने सभी राजनीतिक दलों में अपने मित्र बनाए. अरुण के घर में एक कमरा हुआ करता था जिसे 'जेटली डेन' कहा जाता था, जहाँ वो अपने ख़ास दोस्तों से मिलते थे जो अलग-अलग व्यवसायों और दलों से आते थे.

2. 1999 में जेटली को अशोक रोड के पार्टी मुख्यालय के बग़ल में सरकारी बंगला एलॉट किया गया. उन्होंने अपना घर बीजेपी के नेताओं को दे दिया ताकि पार्टी के जिन नेताओं को राजधानी में मकान न मिल सके, उनके सिर पर एक छत हो.इसी घर में क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग की शादी हुई और वीरेंद्र कपूर, शेखर गुप्ता और चंदन मित्रा के बच्चों की भी शादियाँ हुईं.

3. अरुण जब वाजपेयी मंत्रिमंडल में मंत्री बने तो वो अपने कुछ दोस्तों के साथ नैनीताल गए जहाँ उन्हें राज भवन के गेस्ट हाउस में ठहराया गया.उनके दोस्त सुहेल सेठ ने 'ओपन' पत्रिका में एक लेख लिखा- 'माई फ़्रेंड अरुण जेटली.' इसमें उन्होंने लिखा कि 'चेक आउट करने से पहले उन्होंने सभी कमरों का किराया अपनी जेब से दिया. वहाँ के कर्मचारियों ने मुझे बताया कि उन्होंने पहले किसी केंद्रीय मंत्री को इस तरह अपना बिल देते नहीं देखा.'इन्हीं दोस्त का कहना है कि कई बार लंदन जाने पर वहाँ के चोटी के उद्योगपति उनके लिए हवाई अड्डे पर बड़ी बड़ी गाड़ियाँ भेजते थे, लेकिन अरुण हमेशा हीथ्रो हवाई अड्डे से लंदन आने के लिए 'ट्यूब' (भूमिगत रेल) का इस्तेमाल करते थे.बहुत से लोग ऐसा तब करते हैं जब लोग उन्हें देख रहे होते हैं, लेकिन अरुण तब भी ऐसा करते थे जब उन्हें कोई नहीं देख रहा होता था.

4. अरुण जेटली की शख्सियत का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि जिस स्कूल से उनके बच्चों ने पढ़ाई की चाणक्यपुरी स्थित उसी कार्मल कॉन्वेंट स्कूल में उन्होंने अपने ड्राइवर और निजी स्टाफ के बच्चों को भी पढ़ाया. जेटली अपने बच्चों (रोहन व सोनाली) को जेब खर्च भी चेक से देते थे. इतना ही नहीं, स्टाफ को वेतन और मदद सबकुछ चेक से ही देते थे. उन्होंने वकालत की प्रैक्टिस के समय ही मदद के लिए वेलफेयर फंड बना लिया था. इस खर्च का प्रबंधन एक ट्रस्ट के जरिए करते थे. जिन कर्मचारियों के बच्चे अच्छे अंक लाते हैं, उन्हें जेटली की पत्नी संगीता भी गिफ्ट देकर प्रोत्साहित करती हैं.

5. जेटली परिवार के खान-पान की पूरी व्यवस्था देखने वाले जोगेंद्र की दो बेटियों में से एक लंदन में पढ़ रही हैं. जेटली के साथ हरदम रहने वाले सहयोगी गोपाल भंडारी का एक बेटा डॉक्टर और दूसरा इंजीनियर बन चुका है. इसके अलावा समूचे स्टाफ में सबसे अहम चेहरा थे सुरेंद्र. वे कोर्ट में जेटली के प्रैक्टिस के समय से उनके साथ थे. घर के ऑफिस से लेकर बाकी सारे काम की निगरानी इन्हीं के जिम्मे थी. जिन कर्मचारियों के बच्चे एमबीए या कोई अन्य प्रोफेशनल कोर्स करना चाहते थे, उसमें जेटली फीस से लेकर नौकरी तक का मुकम्मल प्रबंध करते थे. जेटली ने 2005 में अपने सहायक रहे ओपी शर्मा के बेटे चेतन को लॉ की पढ़ाई के दौरान अपनी 6666 नंबर की एसेंट कार गिफ्ट दी थी.

6. एम्स में जेटली का इलाज कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि जेटली जीवंत व्यक्ति थे और वे दर्द में भी मुस्करा देते थे. एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि वे गंभीर रूप से बीमार थे बावजूद इसके उनमें जीने की अद्भुत क्षमता थी. वे दर्द में भी हंसते रहे.गुलेरिया ने बताया कि जैसे-जैसे उनके अंगों ने काम करना बंद किया वे अशक्त होते चले गए. उन्हें मशीनों पर रखा गया. बावजूद इसके वे जब होश में आते थे तो मंद-मंद मुस्करा कर ही जबाव देते थे.

7. अरुण जेटली अच्छे खाने के भी काफी बड़े शौकीन थे. उनकी इस आदत के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक काफी परेशान रहते थे और उन्हें अक्सर अपनी डायट को कंट्रोल करने की सलाह देते रहते थे. दिल्ली के सबसे पुराने क्लबों में से एक रोशनारा क्लब का खाना उन्हें बहुत पसंद था. कनॉट प्लेस के मशहूर 'क्वॉलिटी' रेस्तराँ के चने भटूरों के वो ताउम्र मुरीद रहे.

8. अरुण पुरानी दिल्ली की स्वादिष्ट जलेबियाँ, कचौड़ी और रबड़ी फ़ालूदा खाते हुए बड़े हुए. लेकिन जैसे ही ये पता चला कि उन्हें मधुमेह है, उनके ये सारे शौक़ जाते रहे और उनका भोजन मात्र एक रोटी और शाकाहारी भोजन तक सिमट कर ही रह गया.

9. अरुण जेटली को फ़िल्में देखने का बहुत शौक था. 'पड़ोसन' उनकी फ़ेवरेट फ़िल्म थी जिसे उन्होंने बहुत बार देखा था. अरुण जेटली दोस्तों के बिच होते तब कई बार फ़िल्मी डायलॉग भी बोलते थे. 'जॉनी मेरा नाम' में देवानंद ने किस रंग की कमीज़ पहन रखी थी, ये तक अरुण जेटली को याद रहता था."

10. अरुण जेटली ने अपनी स्कूली पढ़ाई दिल्ली के सेंट जेवियर्स स्कूल और ग्रेजुएशन श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से की थी. उस जमाने में जेटली के बाल लंबे हुआ करते थे और वह 'बीटल्स' वाले जॉन लेनन के अंदाज में चश्मा पहनते थे. वह दिखने में भी काफी स्मार्ट हुआ करते थे, जिसके चलते कॉलेज में उनके खूब चर्चे थे, अपने अलग अंदाज के चलते वह काफी मशहूर थे. उनके चश्मे की बनावट गोल होने के कारण कुछ लोग उनके चश्मे को 'गांधी गॉगल्स' भी कहते थे.

11. अरुण जेटली अपने ज़माने में भारत के चोटी के वकील थे जिनकी बहुत मंहगी फ़ीस हुआ करती थी.उनको महंगी घड़ियाँ ख़रीदने का हमेशा शौक रहा. उन्होंने उस समय 'पैटेक फ़िलिप' घड़ी ख़रीदी थी जब ज़्यादातर भारतीय 'ओमेगा' के आगे सोच नहीं पाते थे.अरुण का 'मो ब्लाँ' पेनों और जामवार शॉलों का संग्रह भी ग़ज़ब का है. 'मो ब्लाँ' कलम का नया एडिशन सबसे पहले ख़रीदने वालों में अरुण जेटली हुआ करते थे.. कई बार जब वो भारत में नहीं मिलते थे तो उनके दोस्त राजीव नैयर, जो कि मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर के बेटे हैं, अपने संपर्कों से उन्हें उनके लिए विदेश से मंगवाते थे.उन दिनों अरुण लंदन में बनी 'बेस्पोक' कमीज़ें और हाथ से बनाए गए 'जॉन लॉब' के जूते ही पहनते थे. जीवित रहते वो हमेशा 'जियाफ़ ट्रंपर्स' की शेविंग क्रीम और ब्रश इस्तेमाल करते रहे.

12. वह छात्र जीवन में काफी शर्मीले हुआ करते थे. स्टूडेंट लाइफ में उन्हें कई लड़कियां पसंद करती थीं, लेकिन वह किसी से बात तक नहीं करते थे. जब लड़कियां खुद उनसे बात करने की कोशिश करतीं तो वह वहां से भी चले जाते. वैसे तो वह डिबेट्स में घंटों बात कर लेते थे, लेकिन उसके बाद वह वहां से चले जाते. छात्र राजनीति में आने से पहले अरुण और उनके दोस्त दिल्ली के एकमात्र डिस्कोथेक 'सेलर' में जाया करते थे.

13. जेटली की शादी में इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी दोनों शामिल हुए थे, क्योंकि उनकी शादी संगीता डोगरा से हुई थी, जो कि कांग्रेस के दिग्गज नेता गिरधारी लाल डोगरा की बेटी थी.

14. जब 1977 में जनता पार्टी बनी तो जेटली को उसकी राष्ट्रीय कार्य समिति में रखा गया . 1977 में वाजपेयी जेटली को लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहते थे, लेकिन उनकी उम्र चुनाव लड़ने की न्यूनतम सीमा से एक साल कम थी. वहीं जेल में रहने के कारण उनकी पढ़ाई का एक साल भी खराब हो गया था. जिसके चलते उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री पूरी करने का फैसला किया.

15. जेटली कॉलेज के दिनों से ही ABVP से जुड़ गए थे और राजनीति में सक्रिय हो गए थे. इस दौरान जब देश में आपातकाल लगा था, उन्होंने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. जिसके चलते अरुण जेटली पर पुलिस ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया और उनकी गिरफ्तारी के लिए 25 जून 1975 को रात दो बजे उनके घर के बाहर पहुंच गई और जोर-जोर से दरवाजा खटखटाने लगी. अचानक उन्हें अपने पिता महाराज कृष्ण जेटली के किसी से बहस करने की आवाज आई, जिससे उनकी नींद खुल गई. जेटली को समझते देर नहीं लगी की पुलिस उन्हें पकड़ने आई है और गिरफ्तारी से बचने के लिए वह रात के दो बजे घर के पिछले दरवाजे से भाग निकले.वो रात उन्होंने उसी मोहल्ले में अपने दोस्त के यहाँ बिताई. अगले दिन उन्होंने सुबह साढ़े दस बजे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के करीब 200 छात्रों को दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर के दफ़्तर के सामने जमा किया.वहाँ जेटली ने एक भाषण दिया और उन लोगों ने इंदिरा गाँधी का एक पुतला जलाया. थोड़ी देर में डीआईजी पी.एस. भिंडर के नेतृत्व में पुलिस वालों ने इलाक़े को घेर लिया और अरुण जेटली गिरफ़्तार कर लिए गए.

16. आपातकाल के दौरान सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के बाद जेटली को लंबा समय जेल में गुजारना पड़ा थे. इस दौरान उन्हें तिहाड़ और अंबाला जेल में कैदी बनाकर रखा गया. आपातकाल के दौरान उन्हें 1975 से 1977 के बीच करीब 19 महीने मीसा के तहत जेल में रहना पड़ा था.

17. तिहाड़ जेल में अरुण जेटली को उसी सेल में रखा गया जिसमें अटलबिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और के. आर. मलकानी के अलावा 11 और राजनीतिक कैदी रह रहे थे. इसका उन्हें बहुत फ़ायदा हुआ.

18. आपातकाल हटने के बाद उन्होंने वकालत शुरू की और 1980 में दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल द्वारा इंडियन एक्सप्रेस की इमारत को गिराने के फैसले को चुनौती दी.इस दौरान वह रामनाथ गोयनका, अरुण शौरी और फली नरीमन के करीब से संपर्क में आए.

19. 1989 में जब वीपी सिंह की सरकार सत्ता में आई तो मात्र 37 साल की उम्र में जेटली को भारत का अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बनाया गया. .वह इस पद पर काबिज होने वाले सबसे युवा व्यक्ति हैं. जनवरी 1990 से जेटली इनफ़ोर्समेंट डायरेक्टरेट के अधिकारी भूरे लाल और सीबीआई के डीआईजी एम. के. माधवन के साथ बोफ़ोर्स मामले की जाँच करने कई बार स्विट्ज़रलैंड और स्वीडन गए लेकिन आठ महीने बाद भी उनके हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा.

20. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जेटली अभी ही नहीं, पहले से ही संकट मोचक रहे हैं. 2002 में जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात दंगों को लेकर राजधर्म की बात कही, तो जेटली खुलकर मोदी के बचाव में आए और उन्हें नैतिक समर्थन दिया. मोदी जब दंगों को लेकर कानूनी पचड़ों में घिरे तो भी एक वकील के रूप में जेटली उनके लिए मददगार साबित हुए. गुजरात दंगा केस में भी उन्होंने अदालत में मोदी की तरफ़ से वकालत की थी.

21. 1995 में जब गुजरात में बीजेपी सत्ता में आई और नरेंद्र मोदी को दिल्ली भेज दिया गया तो जेटली ने उनको हाथोंहाथ लिया. उस समय के पत्रकारों का कहना है कि उस ज़माने में मोदी अक्सर जेटली के कैलाश कॉलोनी वाले घर में देखे जाते थे. 2014 में अमृतसर से लोकसभा का चुनाव हार जाने के बाद भी नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ़ उन्हें मंत्रिमंडल में रखा , बल्कि उन्हें वित्त और रक्षा जैसे दो बड़े मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी भी दी.उनके वित्त मंत्री रहते ही नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी और जीएसटी लागू करने का बड़ा फ़ैसला लिया था. पिछले वर्ष जेटली के गुर्दों का प्रत्यारोपण हुआ था. ख़राब स्वास्थ्य की वजह से ही उन्होंने 2019 का चुनाव नहीं लड़ा. उन्होंने खुद ही घोषणा की कि वो नरेंद्र मोदी टीम का सदस्य नहीं होना चाहेंगे.

22. जब उन्होंने 2014 का बजट भाषण दिया तो इसके बीच उन्होंने लोकसभाध्यक्ष से बैठकर भाषण पढ़ने की अनुमति माँगी. नियम के अनुसार वित्त मंत्री को हमेशा खड़े हो कर अपना बजट भाषण पढ़ना होता है लेकिन सुमित्रा महाजन से उन्हें बैठ कर भाषण पढ़ने की ख़ास अनुमति दी.दर्शक दीर्घा में बैठी हुई उनकी पत्नी को अंदाज़ा हो गया कि अरुण के साथ कुछ गड़बड़ है, क्योंकि वो बार-बार अपनी पीठ छूने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि वहाँ उनको दर्द की लहर उठ रही थी.

23. अरुण जेटली मंत्री बनने पर 2014 में वकालत से हटने के बाद अंतिम बार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मानहानि मुकदमे में पेश हुए थे. यह मुकदमा दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहा था. 10 करोड़ रुपये की दीवानी मानहानि के इस मुकदमे में जेटली क्रास एग्जामिनेशन करवाने के लिए पेश हुए थे. इस मामले में केजरीवाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी थे और उन्होंने सवाल जवाब की आड़ में जिस तरह से जेटली के साथ वाकयुद्ध किया वह चर्चा का विषय बना. लेकिन यह क्रास एग्जामिनेशन एक तरह से कानून का एक पाठ था जिसे कानून के हर छात्र को पढ़ने के लिए सिफारिश की गई थी. इसमें सवाल करने तथा जवाब देने वाले दोनों ही सिविल कानून के वृहद जानकार और वरिष्ठ अधिवक्ता थे.

24. 1991 के लोकसभा चुनाव में जेटली नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र से लालकृष्ण आडवाणी के चुनाव एजेंट थे.बहुत मशक्कत के बाद वो आडवाणी को फ़िल्म स्टार राजेश खन्ना के ख़िलाफ़ मामूली अंतर से जीत दिलवा पाए. हाँ, अदालतों मे ज़रूर उन्होंने आडवाणी के पक्ष में पहले बाबरी मस्जिद विध्वंस का केस लड़ा और फिर मशहूर जैन हवाला केस में सफलतापूर्वक आडवाणी को बरी कराया.

25. जेटली सिर्फ राजनीति में ही सक्रिय नहीं थे, बल्कि खेल से भी उनका नाता रहा है. तभी आज उनके गुजर जाने पर क्रिकेट जगत भी गहरा दुख व्यक्त कर रहा है. पूर्व विस्फोटक ओपनर वीरेंद्र सहवाग का जेटली के साथ कई किस्से जुड़े हैं, जिनमें से एक यह भी है जब वो दिल्ली छोड़ हरियाणा के लिए खेलने चले थे तो उन्हें जेटली ने रोका था.सहवाग के करियर में एक समय ऐसा भी आया जब उनके डीडीसीए के साथ रिश्तों में कुछ खटास आ गई. मामला यहां तक बढ़ गया कि सहवाग ने दिल्ली छोड़कर हरियाणा के लिए खेलने का मन बना लिया. सहवाग के हरियाणा की ओर से खेलने की तैयारी भी चुकी थी, तभी ये बात अरुण जेटली को पता चली तो उन्होंने सीधे सहवाग से बात की और उन्हें दिल्ली नहीं छोड़कर जाने के लिए मनाया. जेटली डीडीसीए के सबसे लंबे समय रह अध्यक्षों में से एक थे. जेटली करीब 14 साल तक डीडीसीए तक प्रमुख रूप से सक्रिय रहे. उनके कार्यकाल में दिल्ली क्रिकेट को कई सुविधाएं मिल जिसमें एक विश्व स्तरीय क्रिकेट स्टेडियम, शामिल हैं.