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संविधान दिवस पर विशेष : प्रस्तावना से लेकर संशोधन तक, जानिए पूरी कहानी

15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली थी और 26 जनवरी 1950 को हम भारतीय संविधान के प्रवर्तन को चिह्नित करने के लिए गणतंत्र दिवस मनाते हैं. 1934 में वापस संविधान सभा की मांग की गई थी. कम्युनिस्ट पार्टी के नेता एम. एन. रॉय ने इस विचार को पेश किया.

Updated on: 26 Nov 2021, 01:23 PM

highlights

  • 26 नवंबर को भारत के संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है
  • इस साल यह ऐतिहासिक घटना की 72वीं वर्षगांठ है
  • आज ही के दिन 1949 में संविधान को अंगीकार किया गया था

 

नई दिल्ली:

स्वतंत्र भारत के संविधान को अपनाने के उपलक्ष्य में 26 नवंबर को भारत के संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस साल यह ऐतिहासिक घटना की 72वीं वर्षगांठ है जिसने 1949 में एक नए युग की शुरुआत को चिह्नित किया था. वह दिन जिसे संविधान दिवस या राष्ट्रीय कानून दिवस या राष्ट्रीय संविधान दिवस के रूप में भी जाना जाता है. यह विशेष दिन भारतीय संविधान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए भी मनाया जाता है. भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने संविधान निर्माताओं के योगदान को स्वीकार करने और उनका सम्मान करने और संविधान द्वारा समायोजित प्रमुख मूल्यों पर लोगों को जागरूक करने के लिए 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में घोषित किया है. आज ही के दिन 1949 में भारत के संविधान को अंगीकार किया गया था और यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था.

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भारत का संविधान दिवस 2021  

वर्ष 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी ने डॉ. बी आर अंबेडकर की स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी स्मारक की आधारशिला रखते हुए 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में घोषित किया था. उसी वर्ष बाबा साहेब अंबेडकर की 125वीं जयंती भी मनाई गई. इसकी विचारधारा को बनाए रखने और उसका पालन करने की हमारी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए संविधान की प्रस्तावना को पढ़ना उत्सव का एक अभिन्न और अनिवार्य हिस्सा है. भारतीय संविधान के संवैधानिक मूल्यों पर केंद्रित वार्ता या वेबिनार सहित अन्य गतिविधियां भी हर साल आयोजित की जाती हैं.  

भारतीय संविधान के जन्म के पीछे का इतिहास

15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली थी और 26 जनवरी 1950 को हम भारतीय संविधान के प्रवर्तन को चिह्नित करने के लिए गणतंत्र दिवस मनाते हैं. 1934 में वापस संविधान सभा की मांग की गई थी. कम्युनिस्ट पार्टी के नेता एम. एन. रॉय ने इस विचार को पेश किया. इसे कांग्रेस पार्टी ने अपने हाथ में ले लिया और आखिरकार 1940 में ब्रिटिश सरकार ने इस मांग को स्वीकार कर लिया. आजादी से पहले 9 दिसंबर 1946 को पहली बार संविधान सभा की बैठक हुई. डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा के पहले अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था. बैठक 24 जनवरी, 1950 तक चली. इस दौरान कुल 11 सत्र बुलाए गए और करीब 166 दिनों तक चले. यह दो महीने भारतीय संविधान को अपनाने और लागू करने के बीच पूरी तरह से पढ़ने के लिए लगाए गए थे. इस दौरान अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद भी किया गया. 29 अगस्त 1947 को डॉ. बी. आर. अंबेडकर अध्यक्ष बने. 26 नवंबर, 1949 को समिति ने अपना काम पूरा कर लिया था. 24 जनवरी 1950 को प्रक्रिया पूरी हुई और समिति के सदस्यों ने दस्तावेज़ की हिंदी और अंग्रेजी में दो हस्तलिखित प्रतियों पर हस्ताक्षर किए.  26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ और देश का कानून बन गया.

भारत के संविधान की प्रस्तावना क्या है?

"हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई० "मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं." 


42वें संविधान संशोधन के जरिये जोड़े गए थे तीन शब्द

समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और सत्यनिष्ठा- इन तीनों शब्दों को बाद में तब शामिल किया गया जब 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसमें संशोधन किया गया.  संविधान के अनुसार, भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है, जो अपने नागरिकों के न्याय, समानता और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है और बंधुत्व को बढ़ावा देने का प्रयास करता है. भारतीय संविधान सरकारी संस्थानों के मौलिक राजनीतिक कोड, संरचना, प्रक्रियाओं, शक्तियों और कर्तव्यों को चित्रित करता है. यह मौलिक अधिकारों, निर्देशक सिद्धांतों और नागरिकों के कर्तव्यों को भी व्यापक रूप से समझाता है. भारत का संविधान दुनिया में सबसे लंबे समय तक लिखित संविधान होने की प्रतिष्ठा रखता है. संविधान को बनने में करीब 2 साल 11 महीने और 17 दिन लगे थे.