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महाकाल लोक में मूर्तियां टूटकर गिरने की असली वजह ये है

ये पहली बार नहीं था, जब महाकाल लोक में मूर्तियां टूटकर गिरीं. इस आंधी में कॉरिडोर की छह प्रतिमाएं हवा में उड़ गईं और नीचे गिरकर टूट गईं.

Updated on: 03 Jun 2023, 09:06 PM

नई दिल्ली:

मध्य प्रदेश में उज्जैन का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है महाकालेश्वर मंदिर. इसे 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है. इसी के आसपास एक विशाल भव्य कॉरिडोर बना है. इसे ही श्री महाकाल लोक गलियारा कहा जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 11 अक्टूबर को गलियारे के पहले चरण का लोकार्पण किया था. लगभग 856 करोड़ की इस परियोजना के पहले चरण पर करीब 351 करोड़ रुपये खर्च हुए. जोर-शोर से गुणगान हुआ. देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं. लेकिन पिछले कुछ समय से महाकाल कॉरिडोर गलत वजहों से चर्चा में हैं. इसकी मूर्तियां टूट-टूटकर गिर रही हैं. शुक्रवार 2 जून को नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल प्रचंड का यहां दर्शन करने का कार्यक्रम था. मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगू भाई पटेल भी आने वाले थे. लेकिन इनके आने कुछ घंटे पहले ही महाकाल लोक में घटना हो गई. प्रवेश के लिए बने 26 फुट ऊंचे नंदी द्वार के पिलर पर लगा सजावटी कलश टूटकर नीचे गिर गया. इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ, लेकिन अफरातफरी जरूर मच गई.

ये पहली बार नहीं था, जब महाकाल लोक में मूर्तियां टूटकर गिरीं. 28 मई रविवार की दोपहर उज्जैन में तेज आंधी आई थी. शहर में करीब 45 किलोमीटर प्रति घंटे के रफ्तार से हवाएं चली थीं. इस आंधी में कॉरिडोर की छह प्रतिमाएं हवा में उड़ गईं और नीचे गिरकर टूट गईं. ये प्रतिमाएं सप्त ऋषियों की थीं. इनकी ऊंचाई लगभग 11 फुट थी. जमीन से करीब 9 फुट ऊपर इन्हें स्थापित किया गया था. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जिस वक्त ये घटना हुई, मंदिर में काफी श्रद्धालु मौजूद थे. गनीमत रही कि किसी को चोट नहीं आई.

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778 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान

महाकाल लोक गलियारा करीब 900 मीटर लंबा है. यह वाराणसी के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से लगभग चार गुना बड़ा है. महाकाल लोक का पहला चरण पूरा हो चुका है. इस पर करीब 351 करोड़ रुपये का खर्च आया था. अब दूसरे चरण का निर्माण कार्य चल रहा है. इस पर 778 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है. इस कॉरिडोर का इतिहास बताएं तो साल 2017 में राज्य की बीजेपी सरकार ने महाकाल लोक मंदिर कॉरिडोर बनाने का फैसला किया था. इसके अगले साल टेंडर की प्रक्रिया शुरु हुई. बाद में जब कांग्रेस सरकार आई, तब 7 जनवरी 2019 को प्रोजेक्ट को अप्रूवल मिला. तब के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने योजना के पहले चरण महाकाल वन प्रोजेक्ट को मंजूरी दी. इसके लिए 300 करोड़ रुपये भी जारी किए. प्रोजेक्ट के टेंडर भी उसी समय निकाले गए थे. प्रोजेक्ट की नींव भी तभी रखी गई. बाद में कमलनाथ सरकार गिरने के बाद बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया.

कॉरिडोर में 136 मूर्तियां लगाई गई हैं
कॉरिडोर में करीब 136 प्रतिमाएं हैं. ये मूर्तियां 10 से 25 फुट ऊंची हैं. इनका वजह करीब 3 क्विटल तक है. इसमें से लगभग 105 मूर्तियां FRP यानी फाइबर रीइन्फोर्स्ड प्लास्टिक से बनी हैं. इसे आम भाषा में फाइबर की मूर्तियां भी कहते हैं. इन्हें लगभग 15 करोड़ रुपये खर्च करके तैयार किया गया है. मूर्तियों को गुजरात, ओडिशा और राजस्थान के कलाकारों ने करीब 5 साल में तराशा है. गुजरात की एमपी बावरिया कंपनी ने इन्हें बनाया है. आंधी में गिरीं सप्तऋषियों की मूर्तियों के बारे में दावा किया जा रहा है कि इनका बेस मजबूत नहीं था. फाइबर की इतनी विशाल मूर्तियों को टिकाने के लिए अंदर सरिये लगाए जाते हैं, फोम वाला केमिकल डालकर मजबूती दी जाती है, लेकिन टूटी मूर्तियों में ऐसा कुछ भी नहीं था. कॉरिडोर में लगी कई अन्य प्रतिमाओं की स्थिति भी अच्छी नहीं बताई जा रही. खबरें बताती हैं कि त्रिपुरासुर संहार वाली प्रतिमा के रथ में दरारें आ चुकी हैं. शिव की प्रतिमा भी चटक गई है. समुद्र मंथन की मूर्तियां भी तेज हवा में हिलने लगती हैं. कमल सरोवर में लगी शिव की प्रतिमा और शेरों की मूर्तियों का रंग उड़ चुका है. कई मूर्तियां अपने बेस से खिसक चुकी हैं.

फाइबर की मूर्तियां बनाने की ये है अहम वजह

महाकाल कॉरिडोर में फाइबर की ही मूर्तियां क्यों बनाई गईं, अब ये भी समझ लीजिए. भगवान की मूर्तियां मुख्य रूप से तीन चीजों से बनाई जाती हैं. पहली पत्थर से, दूसरी धातु या अष्टधातु से और तीसरी फाइबर से. मूर्ति अगर छोटी हो तो पत्थर और धातु से आसानी से बन जाती हैं. लेकिन अगर विशाल मूर्तियां बनानी हों तो पत्थर और धातु दोनों ही खर्चीला और समय लेने वाला सौदा होता है. धातु की मूर्तियां आमतौर पर टूटती नहीं हैं, लेकिन इन्हें बनाने की लागत बहुत ज्यादा आती है. पत्थर की मूर्तियां इससे कम खर्च में तैयार हो जाती हैं, लेकिन उन्हें बनाने में बहुत समय लगता है.

ऐसे में महाकाल लोक में विशाल मूर्तियां बनाने के लिए फाइबर का विकल्प चुना गया. ये मूर्तियां न सिर्फ दिखने में सुंदर लगती हैं बल्कि बेहद सस्ती भी पड़ती हैं. अंदर से खोखली होने की वजह से हल्की होती हैं. लेकिन ये मूर्तियां पत्थर और धातु की मूर्ति के मुकाबले काफी नाजुक होती हैं. इनका रखरखाव भी काफी करना पड़ता है. समय के साथ मूर्तियों के चटकने की समस्या आ जाती है. सर्दी, गर्मी, बारिश का भी इन पर असर पड़ता है. समय-समय पर इनकी मरम्मत और रंग-रोगन भी करवाना होता है. इन मूर्तियों को बनाना भी आसान होता है. मूर्ति बनाने से पहले मिट्टी का सांचा तैयार किया जाता है. सांचे से डाई बनाई जाती है. उस डाई पर फाइबर का जाल रखकर केमिकल और हार्डनर की मदद से मूर्ति तैयार कर दी जाती है.

बहरहाल, आंधी में महाकाल लोक की मूर्तियां टूटकर गिरने पर हंगामा जारी है. सियासी आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं. कांग्रेस के नेता बीजेपी पर दोष मढ़ रहे हैं तो बीजेपी के नेता कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. कांग्रेस नेता कमलनाथ ने तो शिवराज सरकार 50 पर्सेंट कमीशन मॉडल पर काम करने का आरोप लगा दिया. हाईकोर्ट के जज से मूर्तियां टूटने की जांच की मांग कर दी. प्रदेश कांग्रेस ने एक कमिटी भी बना दी. कमिटी ने गलियारे का दौरा करके आरोप लगाया कि प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार हुआ है. बीजेपी भी कहां चुप रहने वाली थी. उसने पलटवार करते हुए कांग्रेस पर धार्मिक मामलों में राजनीति करने का आरोप लगा दिया. शहरी विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा कि मूर्तियां खंडित हो चुकी हैं इसलिए इन्हें फिर नहीं लगाया जाएगा. इनकी जगह नई मूर्तियां लगेंगी. यह काम ठेकेदार कंपनी करेगी.

मूर्तियों के मरम्मत के लिए गुजरात की टीम उज्जैन पहुंची
उज्जैन के कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम  महाकालेश्वर मंदिर समिति के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने बताया कि ये मूर्तियां महाकाल मंदिर के अंदर नहीं थीं. गलियारे में लगी थीं. इन मूर्तियों की लाइफ करीब 10 साल होती है. उन्हें ठीक किया जाएगा. परिसर में लगी फाइबर की अन्य मूर्तियों को भी मजबूत किया जाएगा. उन्होंने कहा कि मूर्तियों के 5 साल तक रखरखाव की जिम्मेदारी ठेकेदार की है. ठेकेदार कंपनी के 25 करोड़ रुपये अभी सरकार के पास जमा हैं. अगर कोई लापरवाही या त्रुटि पाई जाती है तो कड़े कदम उठाए जाएंगे. बहरहाल, मूर्तियों की मरम्मत और मजबूती के लिए गुजरात के सूरत से 8 मूर्तिकारों का दल उज्जैन आ गया है.

इस बीच, लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता ने खुद संज्ञान लेकर मूर्तियां टूटने की जांच के आदेश दे दिए हैं. मूर्तियों के मटीरियल आदि की जांच के लिए एक कमिटी भी बना दी है. हालांकि इससे पहले भी एक बार लोकायुक्त कॉरिडोर निर्माण में गड़बड़ी के आरोपों की जांच के आदेश दे चुके हैं. पिछले साल जब पीएम मोदी ने महाकाल लोक का उद्घाटन किया था, उसके बाद कांग्रेस विधायक महेश परमार ने लोकायुक्त के यहां शिकायत कर दी थी. वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप लगाए थे. लोकायुक्त ने केस दर्ज करके उज्जैन के कलेक्टर समेत 15 अधिकारियों को नोटिस भी जारी किया था. लेकिन बाद में मामला ठंडे बस्ते में चला गया. अब देखना ये है कि शासन-प्रशासन महाकाल कॉरिडोर में दरकती मूर्तियों को लेकर किस हद तक कार्रवाई करता है. भविष्य में ऐसा न हो, इसके लिए क्या कदम उठाता है.

लेखक-मनोज शर्मा के ये निजी विचार है