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तबलीगी जमात पर कई देशों में उठ रहा संशय, वजह बन रही विचारधारा

तबलीगी जमात मुख्य रूप से पूरे इस्लामिक वर्ल्ड में छोटे-छोटे स्वायत्त समूहों में बंटा हुआ है. इन समूहों का आपस में संबंध बहुत कम होता है.

Updated on: 16 Dec 2021, 01:44 PM

highlights

  • जिहादी विचारधारा अबु-मुसाब अल-सूरी के कट्टर विचारों से प्रेरित
  • सलाफी विचारधारा से प्रेरित 200 देशों में चला रहा अपना नेटवर्क
  • तबलीगी जमात रूस समेत दुनिया के कई देशों में है प्रतिबंधित

नई दिल्ली:

सऊदी अरब ने तबलीगी जमात (Tablighi Jamaat) पर प्रतिबंध यूं ही नहीं लगाया है. अगर दुनिया की खुफिया एजेंसियों से जुड़े सूत्रों के निष्कर्षों की मानें तो सुन्नी इस्लामिक संगठन तबलीगी जमात दुनिया के लिए एक बड़ा गंभीर खतरा है. यह संगठन जिहादी (Jihad) विचारधारा अबु-मुसाब अल-सूरी के कट्टर विचारों का प्रतिनिधित्व करता है. यही नहीं, इसका लक्ष्य दुनिया में एक जिहादी तंत्र स्थापित करना है. जमात वास्तव में एक नेतृत्वविहीन स्वायत्त मूवमेंट है, जो कहने को तो इस्लाम (Islam) धर्म का प्रचार-प्रसार करता है, लेकिन हकीकत में यह इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी गुटों के लिए रिक्रूटमेंट का काम करता है. 

सलाफी विचारधार से 200 देशों में है पहुंच
सामरिक जानकारों के मुताबिक बीते कुछ समय से आतंक विरोधी अभियानों की वजह से अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठनों का प्रभाव कमजोर हुआ है, लेकिन तबलीगी जमात पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है. यह संगठन इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठनों के लिए रिक्रूटमेंट में सहयोग करता है. सूत्रों का कहना है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जमात अपने सदस्यों को वैचारिक तौर पर तैयार करता है. सूत्रों के मुताबिक ये संगठन फिलिपींस में मारावी जैसे एंटी-स्टेट संगठन को हमले में मदद कर रहा है. तबलीगी जमात रूस समेत दुनिया के कई देशों में प्रतिबंधित किया जा चुका है. इसके बावजूद सलाफी विचारधारा से प्रेरित संगठनों के साथ जमात दुनिया के करीब 200 देशों में अपना नेटवर्क चला रहा है.

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जिहाद की अगली लहर लाना है लक्ष्य
खुफिया सूत्रों के मुताबिक दुनिया में जिहाद की अगली लहर के लिए जमात दुनिया में सबसे ज्यादा सदस्यों का वाला संगठन है. ये संगठन लो प्रोफाइल रहकर अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए काम करता है. तबलीगी जमात मुख्य रूप से पूरे इस्लामिक वर्ल्ड में छोटे-छोटे स्वायत्त समूहों में बंटा हुआ है. इन समूहों का आपस में संबंध बहुत कम होता है. इन समूहों के सामान्य कामकाज के लिए केंद्रीय नेृतृत्व बिल्कुल औचित्यविहीन है. ये समूह अल-सूरी जिहादी ग्रुप से मिलता-जुलता है. सूरी ग्रुप का भी कोई सांगठनिक ढांचा नहीं है.

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ढांचागत व्यवस्था करती है मदद
जमात मदरसों से अनौपचारिक संबंधों के आधार पर अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए काम कर रहा है. कई मस्जिद और मरकज सेंटर हैं जिनका हेड कोई अमीर या नेता होता है. इस पद पर नियुक्ति परस्पर बातचीत से की जाती है. यही यूनिट आसपास में मौजूद अन्य मस्जिदों और पढ़ाई के केंद्रों की जिम्मेदारी देखते हैं. इस तरह की व्यवस्था का फायदा जमात को मिलता है. जमात की ऐसी ढांचागत व्यवस्था से ही इसकी जांच करना मुश्किल काम है. ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व के लिए गुपचुप तरीके से काम आसान हो जाता है और जरूरत पड़ने पर आतंकी तत्वों के बारे में अनजान बन जाते हैं.